Friday, April 21, 2017

यह जीवन है....


बस यूं ही
कल शुक्रवार रात सवा नौ बजे के करीब फेसबुक पर मैसेज रिक्वेस्ट आई। स्वीकार करने के बाद देखा तो ग्वालियर के कोई राम उपाध्याय थे। उनका पहला संदेश था 'हैलो'। बाद में लिखा 'क्या आप स्वर्गीय प्रभुसिंह शेखावत जो कि 30-35 साल पहले ग्वालियर (एमपी) में निवास करते थे, उनके दो पुत्र विजेन्द्र व महेन्द्र हैं आप जानते हैं प्लीज।' संदेश पढ़कर मैं पहले तो हल्का सा मुस्कुराया। फिर उनके संदेश का जवाब दिया 'माफी चाहूंगा श्रीमान जी, शेखावत सरनेम के लोग बड़ी संख्या में हैं। मूगलकाल के दौरान शेखावतों का आविर्भाव हुआ तथा यह राजस्थान के झुंझुनूं व सीकर में ही ज्यादा होते थे लेकिन बाद में यह समूचे देश में फैलते चले गए। वैसे शेखावत मूल रूप से कुशवाहा राजपूत हैं जो ग्वालियर से ही राजस्थान आए थे। अगर आप गांव वगैरह का नाम बता पाएं तो शायद मैं आपकी कुछ मदद कर पाऊं।' रात को संभवत: उन्होंने मेरा संदेश नहीं देखा। शनिवार सुबह उनका जवाब आया 'बड़ागांव, झुंझुनूं' इस पर मैंने जवाब दिया ' मेरे गांव के पास ही है, शाम तक आपको पता करके बताता हूं।' उन्होंने पलटकर धन्यवाद दिया तथा मेरे मोबाइल नंबर मांगे। मैंने उनको मोबाइल नंबर दिए तो उनका फोन आ गया। कहने लगे भाईसाहब मैं ग्वालियर मध्यप्रदेश से राम उपाध्याय बोल रहा हूं। प्रभुसिंह शेखावत व उनका परिवार यहीं रहता था। हमारी माताजी उनको धर्म का भाई मानती थी। प्रभुसिंह की तो मृत्यु हो चुकी है लेकिन दोनों बेटे अभी जिंदा हैं। मैंने उनकी तलाश के लिए बहुत प्रयास किए। फेसबुक पर महेन्द्र शेखावत की कई आईडी सर्च की। आखिरकार आपका सरनेम देखा तो उम्मीद जगी कि शायद आप बता देंगे। इसलिए आप को मैसेज किया। आप अगर उनका पता बता देंगे तो मेहरबानी होगी। मैंने उनको भरोसा दिलाया कि अभी पता करके बताता हूं। 
इसके बाद मैंने बड़ागांव में परिचित अशोकसिंह जी बड़ागांव का फोन लगाया तो उन्होंने नामों की पुष्टि कर दी और मोबाइल नंबर थोड़ी देर में देने की बात कही। आधा घंटे बाद उनका दुबारा फोन आया और मोबाइल नंबर दे दिए। इसके बाद मैंने राम उपाध्याय को फोन लगाया और नंबर बताए तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्होंने कम से दस बार धन्यवाद दिया। इसके बाद मैं आफिस चला आया। इसके बाद फिर फोन आया। कहने लगे भाईसाहब हमारी बात हो गई। आज तीस साल बाद उनसे संपर्क हुआ है। हमारी माताजी भी आपको आशीर्वाद दे रही हैं। बात-बात पर उनकी जुबान पर धन्यवाद था। बरसों पुरानी मुराद पूरी होने की खुशी राम उपाध्याय जी की बातों में झलक रही थी, जिसे मैं महसूस भी कर रहा था। इधर, मेरे को भी खुशी थी कि मेरे प्रयास रंग लाए।

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