Friday, April 21, 2017

वाकई दुनिया गोल है....

बस यूं ही
सरकारी स्कूलों में इन दिनों शीतकालीन अवकाश चल रहे हैं। यह सात जनवरी तक चलेंगे। दो जनवरी को श्रीगंगानगर के जिला शिक्षा अधिकारी ने एक निर्देश जारी किया, जिसमें बताया गया था कि विभाग को शिकायत मिली है कि कुछ गैर राजकीय विद्यालय शीतकालीन अवकाश में भी कक्षाएं लगा रहे हैं। इस तरह कक्षाएं लगाने वाले स्कूलों पर विभागीय कार्रवाई की जाएगी। यह तो हुई निर्देशों की बात। संयोग से मैं दो जनवरी को सुबह नोहर से श्रीगंगानगर लौट रहा था, मैंने रास्ते में कई जगह स्कूल बसें भी देखी तो कुछ जगह विद्यार्थियों को स्कूल बस के इंतजार में खड़े भी देखा। दोपहर को हनुमानगढ़ से किसी विकास शर्मा का फोन आया। उनका कहना था कि हनुमानगढ़ में शीतकालीन अवकाश के बावजूद स्कूल लग रहे हैं। हमने इन स्कूलों की सूची प्रशासन को दी है, आप खबर लगाए ताकि मासूमों को सर्दी के मौसम में परेशानी न हो। खैर, शाम को जिला शिक्षा अधिकारी के निर्देशों को आधार बनाते हुए खबर बनाई। हनुमानगढ़ से भी इनपुट मंगवाया। साथ में टिप्पणी भी लिखी। दूसरे दिन जिला शिक्षा अधिकारी के निर्देशों की खबर अन्य समाचार पत्रों में भी थीं। संयोग देखिए अगले दिन तीन जनवरी को सुबह ही एक महिला का फोन आया। उन्होंने मेरे से पूछा कि आपने तो सात जनवरी तक का अवकाश बताया है लेकिन मेरे बच्चे की स्कूल लग रही है। इतनी सर्दी में बच्चे को स्कूल भेजना किसी सजा से कम नहीं है। मैंने उनको कहा कि हमने भी यही लिखा है कि सात तक अवकाश हैं लेकिन कुछ स्कूल लग रहे हैं, लेकिन वो तो तत्काल राहत पाने के मूड में थी। किसी तरह उनको जवाब देकर मैंने बात समाप्त की। दोपहर को फिर घर के बाहर खड़ा था तो कुछ बच्चों को बस्ता पीठ पर लटकाए हुए गुजरते देखा तो माथा फिर ठनका। अब मेरे पास दो प्रमाण थे कि स्कूल लग रहे हैं। इस आधार पर शाम को फिर खबर बनवाई गई कि आदेशों की पालना नहीं हो रही है। अगले दिन चार जनवरी को एक मेल मिलता है। प्रेषक ने अपने नाम की जगह संगठन का नाम लिखा और साथ में इस तरह की खबर न छापने व अखबार के बहिष्कार की चेतावनी तक दे डाली। प्रेषक ने अपनी पीड़ा काफी विस्तार से लिखी। मसलन, हम तो शिक्षित बेरोजगार युवाओं को नौकरी देते हैं, वरना वो अपराध की दुनिया में जाते या आत्महत्या कर लेते। हम गरीब एवं कमजोर बच्चों को अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर पढ़ाते हैं तो कौनसा गुनाह करते हैं। और न जाने कितने की सुझाव, सलाहें व शिकायतें, लेकिन सारी की सारी पूर्वाग्रह से लिपटी हुई। प्रेषक ने न तो नाम दिया न ही सम्पर्क करने के लिए कोई नंबर। मैंने उसकी मेल आईडी को गूगल प्लस पर सर्च किया लेकिन उसमें भी मुझे हकीकत कम फर्जीवाड़ा ज्यादा नजर आया।
इन तमाम घटनाक्रमों के बाद हद तो तब हो गई जब दोपहर बाद एक फोन आया। खुद को पुरानी आबादी निवासी बताने वाले शख्स ने पहले मेरा परिचय पूछा और कहा कि आपसे एक बात कहनी है कृपया इसको अन्यथा ना लें। मैंने प्रत्युत्तर में हामी भरी तो बोले, आप अवकाश में स्कूल खुलने का जो समाचार लगा रहे हैं वो छोटे बच्चों के लिए तो ठीक है लेकिन बड़ों के स्कूल जाने में क्या हर्ज है। बड़े बच्चे घर पर शैतानी करते हैं, इससे अच्छा तो है वो स्कूल ही जाएं। हम बच्चे को स्कूल जाने की कहते हैं तो वो उलटा हमको को टोकता है कि अखबार में आया है। कृपया आप इस तरह के समाचार प्रकाशित न करें। बहरहाल दो तीन दिन के इस घटनाक्रम के बाद मैंने अपना माथा पकड़ लिया। मतलब शिकायत हर तरफ से है। वाकई यह दुनिया गोल है। यहां कुछ भी कर लो शिकायत फिर भी रहती है।

 

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