Wednesday, January 31, 2018

इक बंजारा गाए-17

मेरे साप्ताहिक कॉलम  में हमेशा की तरह इस बार भी चार.रंग। राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 18 जनवरी 18 के अंक में प्रकाशित....
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सट्टे पर हलचल
श्रीगंगानगर में खाकी की कार्यशैली आजकल ऐसी हो गई है कि कोई शिकायत मिले तो ही र्कारवाई की कुछ उम्मीद बंधती है, अन्यथा कुछ होता नहीं। अब सट्टे का मामला ही ले लीजिए। श्रीगंगानगर में सट्टा पर्ची की बहुत सी दुकानें खुली हुई हैं, लेकिन खाकी को यह सब दिखाई नहीं देती। देती नहीं या जानबूझकर आंखें मंंूद रखी हैं, यह अलग विषय है। बहरहाल, शहर में एक संगठन ने सट्टे के खिलाफ धरना-प्रदर्शन शुरू किया, लेकिन खाकी में कोई हलचल नहीं हुई। खलबली तो तब शुरू हुई, जब सट्टे के खिलाफ अनशन पर बैठे युवकों में से एक की तबीयत बिगड़ गई। आनन-फानन में खाकी ने कुछ दुकानों पर कार्रवाई भी। मतलब दबाव बढ़ा तो सट्टे की दुकानें भी मिल गई। लेकिन अनशन पर बैठने वालों का कहना है कि यह कार्रवाई तो बेहद छिटपुट लोगों पर हुई है। मोटी मुर्गी पर खाकी ने अभी तक हाथ नहीं डाला। देखने की बात यह है कि खाकी का उस ओर ध्यान कब जाता है।
जिम्मेदार कर रहे गड़बड़
कानून व नियम सबके लिए बराबर होते हैं। इनमें छोटे-बड़े, अमीर-गरीब किसी तरह का कोई भेद नहीं होता। लेकिन श्रीगंगानगर के कतिपय जनप्रतिनिधि न केवल खुद नियमों व कानून की धज्जियां उड़ा रहे हैं, बल्कि ऐसा करने की खुले हाथ से छूट भी रहे हैं। मामला शहर के चौक-चौराहों पर होर्डिंग्स लगाने से जुड़ा है। हालात यह है कि शहर के प्रमुख चौक-चौराहों की सुंदरता को बदरंग करने में इन जनप्रतिनिधियों के अलावा सरकारी विभाग खुद भी पीछे नहीं हैं। ऐसी-ऐसी जगह होर्डिंग्स टांग दिए जाते हैं, जो जगह अधिकृत ही नहीं हैं। अब शहर की एक धार्मिक संस्था को होर्डिंग्स लगाने के लिए खुली छूट दे दी गई। इधर, संस्था ने छूट का फायदा यह उठाया कि उसने निर्धारित तिथि से पहले ही शहर के चौक-चौराहों पर सब जगह होर्डिंग्स टांग दिए। सुंदर शहर सभी को अच्छा लगता है लेकिन अपने हित के लिए सुंदरता पर बट्टा लगाने वालों को समझाए कौन ?
अपने-अपने हित
अपने हित देखने वाले तो सभी होते हैं लेकिन परहित देखने वाला लाखों में एक होता है। बात कड़वी जरूर है लेकिन मौजूदा समय में अपना हित देखने वालों का बोलबाला ज्यादा है। हित कई प्रकार के होते हैं। इसलिए जरूरी नहीं कि हित आर्थिक फायदे के लिए ही हो। यह फायदा एक दिन के अवकाश का है। जिला प्रशासन की तरफ से साल में दो अवकाश घोषित किए जाते हैं। इनमें एक अवकाश लोहड़ी पर्व का भी होता है। ऐसा लंबे समय से होता आ रहा है लेकिन इस बार लोहड़ी पर्व पर अवकाश घोषित नहीं किया गया। लोहड़ी पर अवकाश घोषित न करने की वजह जुटाई गई तो चर्चा यह सामने आई कि लोहड़ी के दिन सैकंड शनिवार था। इस दिन सरकारी कार्यालयों में वैसे ही अवकाश होता है। इस दिन अवकाश घोषित किया जाता तो एक दिन का अवकाश मारा जाता है। इस चर्चा में दम है लेकिन उनको पर्व मनाने वालों को यह जिला प्रशासन का यह निर्णय अखरा जरूर।
उधार की आदत
उधार को लेकर न जाने कितने ही किस्से व कहानियां बने हुए हैं। मसलन, उधार मांग कर शर्मिंदा न करें... उधार प्रेम की कैंची हैं... नकदी बड़े शौक से, उधार अगले चौक से आदि-आदि। वैसे किसी धंधे में उधार लेनदेन का काम ज्यादा होता है लेकिन व्यक्तिगत रूप से उधार लेने के उदाहरण भी सब जगह मिल जाएंगे। श्रीगंगानगर भी इससे अछूता नहीं हैं। यहां भी उधार का काम चलता है लेकिन खास बात यह है कि यहां कतिपय कथित खबरनवीस भी उधार लेने में पीछे नहीं हैं। वो यह काम नि:संकोच करते हैं, और देने वाला कैसे भी हो मना करता भी नहीं है। हालांकि, उधार की राशि अंगुलियों पर गिनने लायक होती है, बोले तो पांच सौ से भी कम। इससे भी बड़ी बात उधार देने वालों के नाम सुनकर हो सकती है। उधारी भी खाकी या शराब ठेकेदारों से से ली जाती है। राशि बड़ी नहीं होती, लिहाजा देने वाला यह सोचकर खुश कि चलो सस्ते में निबट गया और लेने वाला इसीलिए कि इतनी छोटी राशि को कौन याद रखता है।

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