Wednesday, January 31, 2018

रामभरोसे श्रीगंगानगर

टिप्पणी
श्रीगंगानगर शहर सुंदर रहे, साफ रहे, स्वच्छ रहे, यह विकास के पथ पर अग्रसर हो, यहां की तमाम तरह की व्यवस्था चाक चौबंद रहे, वे सुचारू रूप से चलती रहें, इसके लिए प्रमुख रूप से नगर परिषद व यूआईटी तो जिम्मेदार हैं ही, व्यवस्थाओं में सहयोग बनाए रखने तथा नियमों व निर्देशों की पालना के लिए आम आदमी की भागीदारी भी जरूरी है। खैर, श्रीगंगानगर के ये दोनों ही विभाग अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन उस प्रकार से नहीं कर रहे हैं, जैसा करना चाहिए। नतीजतन दोनों विभाग की उदासीनता या शह का फायदा हर कोई उठाने को आतुर है। शहर न सुंदर है, साफ है और न ही स्वच्छ दिखाई देता है। पिछले दस दिन से नालियों का पानी सड़कों पर आकर फैल रहा है, लेकिन इस समस्या का कारगर समाधान दिखाई नहीं दे रहा। निराश्रित गोवंश की समस्या तो नासूर बन ही चुकी है। पालतू जानवर भैंस-खच्चर भी रात को शहर की सड़कों पर स्वछंद दौड़ते हैं। बिलकुल बेरोक-टोक। आवारा श्वानों की फौज दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से बदस्तूर बढ़ रही है। शहर में जिधर देखो वहां अतिक्रमण की भरमार है। यहां तक कि प्रमुख सड़कें भी अतिक्रमण से अछूती नहीं रही हैं। शिव चौक से जिला अस्पताल तक तो सड़कों पर व्यापार हो रहा है। यातायात भले ही बाधित होता रहे, लेकिन जिम्मेदार आंखें खोलने के लिए तैयार नहीं हैं।
सबसे खराब हालात तो शहर के चौक-चौराहों की हैं। सौन्दर्य को पलीता लगाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ रहा है। नगर परिषद व यूआईटी के नुमाइंदे खुद शहर को बदरंग करने में आगे हैं, तभी तो वे खुले हाथ शहर को बदरंग करने की छूट भी दे रहे हैं। वर्तमान में नगर परिषद सभापति ने एक धार्मिक संस्था को शहर बदरंग करने की खुली छूट दे दी, वह भी निशुल्क। चूंकि भगवान किसी प्रचार के भूखे नहीं होते हैं, लेकिन संस्था पदाधिकारियों को भगवान से खुद के प्रचार की चिंता ज्यादा है। शहर के अंदर और शहर से भी बाहर हाइवे पर बड़ी संख्या में लगाए गए इन होर्डिंग्स में धार्मिक कार्यक्रम के साथ लगाने वाले अपना व अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान का भी प्रचार भी जम कर रहे हैं। शहर में इस तरह की कई धार्मिक संस्थाएं हैं। क्या नगर परिषद प्रशासन व सभापति भविष्य में उनको भी यह सब निशुल्क करने देंगे? उपकृत करने की यह ' परंपरा' क्या शहर हित में है? शहर के मुख्य चौक-सर्किल्स के अंदर होर्डिंस तो लगाना ही गलत है, फिर भी एक अंधी होड़ की दौड़ मची है। बड़ी मुश्किल से होर्डिंग्स मुक्त हुए चहल चौक व सुखाडि़या सर्किल के हालात फिर से बदत्तर हो गए हैं। जो नियम विरुद्ध है, गलत है, उस पर कार्रवाई करने का साहस यूआईटी व परिषद प्रशासन क्यों नहीं दिखा पाते? यह दोनों विभागों की उदासीनता है, अकर्मण्यता है। मनमर्जी है, शह है या कोई दबाव, लेकिन कुछ तो है जरूर।
बरहाल, इस तरह के हालात से यह प्रतीत होता है कि शहर में व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं रह गई है। नियम कायदों को जेब में रखने वालों पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है। दोनों जिम्मेदार विभागों ने आंखें मूंद रखी हैं और कानून-नियमों को तोडऩे वाले इस हालात का जमकर फायदा उठा रहे हैं। पूरे प्रशासनिक सिस्टम के मुखिया की खामोशी भी शहरवासियों को अखर रही है। शहर का कोई धणी धोरी दिखाई नहीं दे रहा। राजनीतिक शून्यता व कमजोर नेतृत्व के कारण हालात दिन प्रतिदिन बद से बदत्तर ही हो रहे हैं। वैसे भी शहर में सरकार सर्वदलीय है। सभी के समर्थन चल रही है। यहां विपक्ष नाम की कोई चीज नहीं है। नियमों के मखौल उड़ाने के इस खेल में सब साथ-साथ हैं। जनप्रतिनिधि, अधिकारी व प्रभावशाली व पहुंच वाले लोग मनमर्जी कर रहे हैं और इधर आमजन इस तरह के हालात से त्रस्त है। परेशान लोग धरना-प्रदर्शन या ज्ञापन देने के सिवाय कुछ करने में सक्षम या समर्थ भी नहीं है। एेसे में बड़ा सवाल यही है कि शहर की सुध लेगा कौन?

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
 राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 21 जनवरी 18 के अंक में प्रकाशित

No comments:

Post a Comment