Wednesday, January 31, 2018

गूंगे के गुड़ पर भारी सरकारी 'छूट'

टिप्पणी
शराब दुकानों को बंद करने का समय रात आठ बजे इसीलिए निर्धारित किया गया था ताकि लोग देर रात तक शराब न पीएं, क्योंकि जब शराब मिलेगी ही नहीं तो पीएंगे कहां से। समय सीमा तय करते समय यह भी सोचा गया था कि शराब के कारण देर रात किसी तरह की शांति भंग भी नहीं होगी। सड़कों पर हादसे भी कम होंगे। लेकिन सरकार की 'छूट' के चलते न केवल समय सीमा तार-तार हो रही है बल्कि रात आठ बजे बाद निर्धारित मूल्य से ज्यादा कीमत भी वसूली जा रही है। शराब उपभोक्ताओं के लिए यह मनमर्जी की कीमत 'गूंगे के गुड़' की तरह है। शराब पीने वाले को ज्यादा कीमत देने की पीड़ा तो है लेकिन देर तक शराब मिलने की सुविधा के चलते चाहकर भी वह इस बात का कहीं विरोध नहीं कर सकता। 
यह बात दीगर है कि देर रात शराब उपलब्ध होने के कारण सुराप्रेमियों के लिए कीमत कोई मायने भी नहीं रखती है, लेकिन जो नहीं पीते हैं, उनके लिए शराब दुकानों का देर तक खुलना बड़ी सिरदर्दी है। शराब ठेकों के आसपास का माहौल न पीने वालों के लिए कितना पीड़ादायक होता है, सहज ही कल्पना की जा सकती है। खैर, सवाल शराब देर रात बिकना व निर्धारित मूल्य से ज्यादा पर बिकना तो गैरकानूनी तो है ही, इससे भी बड़ी पोलपट्टी तो यह दिखाई देती है कि इस मनमर्जी पर अंकुश लगाने वाले पता नहीं इतने लाचार, बेबस व मजबूर क्यों हैं। पुलिस व आबकारी विभाग क्षेत्राधिकार की बात कहकर न केवल जिम्मेदारी से मुंह मोड़ रहे हैं बल्कि इस बहाने अवैध काम करने वालों के मददगार भी बन रहे हैं। दोनों ही विभागों में एक बात जरूर समान है। दोनों शिकायत मिलने पर कार्रवाई करने की बात जरूर कहते हैं। पर यहां शिकायत करेगा कौन? और क्यों करेगा? और कोई पीडि़त हिम्मत जुटाकर करता भी है तो उसकी कोई सुनवाई होती भी कहां है?
बड़ा व यक्ष सवाल तो यही है कि देर रात बिक्री होते क्या पुलिस व आबकारी विभाग के अधिकारियों को दिखाई नहीं देता? क्योंकि इस मामले में राजस्थान पत्रिका में विशेष संपादकीय प्रकाशित होने के बाद शराब ठेकों के बाहर देर रात तक खड़ी रहने वाले रेहडिय़ों की संख्या जरूर कम हो गई है लेकिन शटर के नीचे से या बगल में बनाए गए बड़े सुराखों (मोखो) से बिक्री बेखौफ जारी है। पुलिस व आबकारी विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के बयानों से इतना तय है कि दोनों ही विभाग इस गैरकानूनी काम को कानून सम्मत बनाने के प्रति गंभीर नहीं हैं। और जब इस तरह से गैरकानूनी काम होंगे तो फिर कानून व्यवस्था चाक चौबंद होने की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 6 जनवरी 18 के अंक में प्रकाशित 

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