Wednesday, January 31, 2018

तो फिर कौन जाएगा देश सेवा करने?

टिप्पणी 
शहीद का नाम आते ही मन में श्रद्धा का भाव आता है और सिर सम्मान में स्वत: ही झुक जाता है। शहीद मतलब जिसने देश की खातिर अपने प्राणों की आहुति दे दी। जिसने अपने बच्चों, परिवार की बजाय देश को सबसे पहले रखा। हम चैन से जी सके, इसके लिए उसने शहादत दे दी। देश के लिए मर मिटने वाले ऐसे शहीदों के प्रति श्रीगंगानगर का प्रशासन कैसा व्यवहार करता है, इसका ज्वलंत उदाहरण देखना है तो चहल चौक चलें आएं। 1971 के भारत-पाक युद्ध में देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले मेजर हरबंससिंह चहल की याद में बनाया गया चौक व शहीद प्रतिमा बदहाल है। पूरा चौक क्षतिग्रस्त हो चुका है। शहीद की प्रतिमा मिट्टी व पक्षियों की बीटों से अटी पड़ी है। शहीद प्रतिमा के चौक से पीतल से बनी नेम प्लेट भी कोई चुरा ले गया। इतना ही नहीं, जिस मार्ग का नामकरण मेजर चहल के नाम पर हुआ है, उसका शिलापट्ट ही गायब हो चुका है। इससे भी बड़ी बात है कि शहीद की वीरांगना जिला प्रशासन से चौक की बदहाली की दशा सुधारने तथा मार्ग का नामकरण का शिलापट्ट लगाने की गुहार करीब चाह माह पूर्व कर चुकी हैं, लेकिन उनकी गुहार सरकारी फाइलों में ही दफन हो गई। 
अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा होने के कारण श्रीगंगानगर के लोगों का सैन्य गतिविधियों से रोज ही वास्ता पड़ता है। देशभक्ति के जज्बे को जगाने के लिए भी यहां कई तरह के कार्यक्रम होते हैं। शहीदों की वीरांगनाओं का सम्मान होता है, शहीदों को याद किया जाता है, उनकी शहादत से प्रेरणा लेने के संकल्प लिए जाते हैं। इस तरह के माहौल के बीच यदि किसी शहीद की उपेक्षा होती है तो फिर इससे शर्मनाक बात और क्या होगी? शहीद की प्रतिमा लगाई ही इस उद्देश्य से जाती हैं ताकि आने वाली पीढिय़ों को प्रेरणा मिलें, उनमें देशभक्ति का जज्बा पैदा हो, लेकिन श्रीगंगानगर में चहल चौक व चहल मार्ग की हालत देख कर ऐसा रत्तीभर भी प्रतीत नहीं हो रहा। इतना ही नहीं है, सरकारें भी शहीद परिवारों के प्रति सहानुभूति दिखाने और बताने में कोई कसर नहीं छोड़ती, लेकिन शहीद मेजर चहल सर्किल को देखकर सरकार व उनके नुमाइंदों की मानसिकता पर सवाल खड़े होते हैं।
बहरहाल, जिला प्रशासन को, शहर के जनप्रतिनिधियों को एवं जागरूक लोगों को इस मामले में पहलकरनी चाहिए। क्यों न इस चौक की साफ सफाई की जाए, क्यों न इसके सौन्दर्यीकरण का संकल्प लिया जाए। शहर में पार्कों व चौकों को गोद लेने वाले इस चौक की भी सुध लें। हमारे लिए शहीद सर्वोपरि हैं। उनका सम्मान सबसे पहले होना चाहिए। शहीद का सम्मान मतलब श्रीगंगानगर का सम्मान है, तभी आने वाले पीढिय़ां उनसे प्रेरणा लेंगी। वरना हर साल कार्यक्रम मनाने या वीरांगनाओं का सम्मान करने का कोई औचित्य नहीं है।
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 13 जनवरी 18 में अंक में प्रकाशित 

No comments:

Post a Comment