Saturday, March 10, 2018

इक बंजारा गाए-21

📌कमाल की एकजुटता
श्रीगंगानगर को अक्सर खामोश शहर कहा जाता है। यहां के लोग कभी विरोध जताने की पहल नहीं करते। इसी एकजुटता की कमी के कारण शहर बदहाल है। परंतु कोई मौका हो तो नेता कभी नहीं चूकते। शहर के जनप्रतिनिधियों का इस मामले में कोई जवाब नहीं है। वैचारिक मतभेद व अलग-अलग पार्टी होने के बावजूद उनकी आपस की समझ इतनी गजब की है वे जब चाहें एक जाजम पर बैठ जाते हैं। यह अलग बात है कि इस गजब की एकजुटता में फायदा जनता का न होकर जनप्रतिनिधियों का ही ज्यादा होता है। नगर परिषद तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। यहां तो सर्वदलीय सरकार है। पक्ष-विपक्ष यहां सब एक हैं। इसी तरह एक युवक की मौत की संदिग्ध के बाद सभी दल एक साथ हो गए हैं। जनप्रतिनिधियों की इस एकजुटता पर लोग दबे स्वर में चुटकी लेने से भी नहंी चूक रहे। लोगों का कहना है कि काश बैठकों में लडऩे वाले तथा जनहित पर चुप्पी साधने वाले जनप्रतिनिधि इस तरह की एकजुटता कभी शहर के लिए भी दिखाएं तो कोई बात बने।
📌विशुद्ध राजनीति
मटका चौक स्कूल में प्रधानाचार्य व पीटीआई को एपीओ करने के बाद बुधवार को अचानक फिर से नया मोड़ आने से लगता है कि प्रकरण में कोई है, जो छात्राओं की आड़ लेकर पर्दे के पीछे खेल रहा है। छात्राओं का मोहरा बनाकर विभाग पर भरपूर दबाव बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इससे यह तो जाहिर हो गया है कि इस मामले में राजनीति हो रही है और इस राजनीति की आड़ में भोली भाली छात्राओं को आगे किया जा रहा है। मार्च का माह वैसे भी महत्वपूर्ण होता है, लेकिन विवाद से नाता रखने वालों को इस बात की परवाह ही कहां है। गुरु का यह काम तो कतई नहीं होता है कि वह शिष्यों के भविष्य से खिलवाड़ करे। गुरु तो शिष्यों का भविष्य बनाता है न कि अपने हित के लिए उनको आगे करे। इस मामले में अभिभावकों को चुप्पी तोडऩी चाहिए। उनको तह तक जाना चाहिए कि आखिर छात्राओं के इस आक्रोश की वजह कोई दूसरी तो नहीं?
📌पैरवी की वजह
शहर के जनप्रतिनिधि अक्सर सस्ती लोकप्रियता के रास्ते खोजते रहते हैं। वह जायज है या नहीं, इससे उनको कोई सरोकार नहीं होता। बस किसी न किसी बहाने चर्चा में बने रहना चाहते हैं। अब शिव चौक से जिला अस्पताल के बीच सड़क सौन्दर्यीकरण का मामला ही देख लीजिए। यूआईटी इस छोटे से टुकड़े पर लाखों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन जिस उद्देश्य से कर रही है, वह अगर पूरा ही नहीं हो तो फिर इतना खर्चा करने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। इस सड़क को न केवल चौड़ा करना प्रस्तावित है बल्कि जाली भी लगाई जानी है। जाली की बात से उन व्यापारियों की भौंहें तन गई हैं, जो बीच सड़क पर अतिक्रमण करके व्यापार कर रहे हैं। दबाव बनाने के लिए सभी व्यापारी एकजुट हुए और प्रस्तावित जाली लगाने का विरोध जताना शुरू किया। संकट में फंसे व्यापारियों की सहानुभूति बटोरने का इससे मुफीद मौका और होता भी क्या। लिहाजा शहर के एक नेताजी इनके समर्थन में कूद पड़े। देखना है अब ऊंट किस करवट बैठता है।
📌आश्वासनों की झड़ी
नेताओं के पास देने के लिए कुछ न कुछ होता ही है। भले ही वह आश्वासन ही क्यों न हो। छोटे से लेकर बड़े नेता सब अपनी हैसियत व योग्यता के हिसाब से आश्वासनों की रेवडिय़ा बांटते हैं। जो जनता को आश्वासन देकर प्रभावित कर ले वही पारंगत नेता माना जाता है। अब शहर में एक युवक की मौत के बाद हुई सभा में नेताओं ने जो-जो आश्वासन दिए उनका तो बस कहना ही क्या। ऐसे ही एक नेताजी जो सतारूढ़ पार्टी के हैं। इस बार विधानसभा चुनाव के लिए जीभ लपलपा रहे हैं। प्रेस नोट आदि भिजवाने के लिए दो चार चेले चपाटे भी पाल लिए हैं। इन नेताजी को आजकल जहां भी भीड़ दिखाई देती है, निसंकोच चले जाते हैं। भले ही उनकी पार्टी उस भीड़़ से दूरी ही बनाए। वैसे यह नेताजी कुछ खबरनवीसों के भी खास बने हुए हैं। तभी तो कल धानमंडी में मजदूरों की सभा के बाद इन नेताजी के प्रेस नोट जारी हो गए। समय के साथ नेताजी आश्वासन देना भी सीख गए हैं, जैसे कि उन्होंने कल दिए। गनीमत रही है चौतरफा दबाव से कार्रवाई हो गई और नेताजी की बात रह गई। वरना तो पोल खुलनी तय थी।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 01 मार्च 18 के अंक में प्रकाशित..

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