Saturday, March 10, 2018

इक बंजारा गाए-22

नमकीन के पैकेट
सट्टे की दुकानों पर पिछले दिनों छिटपुट कार्रवाई करने के बाद खाकी इन दिनों खामोश है। इतना समय बीतने के बाद इस कारोबार से जुड़े लोग फिर उसी अंदाज में लौट आए हैं। हां इस बार कुछ अलग तरह की तैयारी जरूर करके आए हैं। कहने का आशय यह है कि पहले इन सट्टे की दुकानों पर एक टेबिल-कुर्सी के अलावा कोई सामान नहीं होता था। ऐसे में इस तरह की दुकानें जल्द ही शक के दायरे में आ जाती थी। बताते हैं कि किसी खाकी के व्यक्ति ने इन्हें एक सुझाव दिया है, जिससे दुकानें सट्टे की न लगकर हकीकत की दुकानें लगें। अब इन सट्टे की दुकानों पर नमकीन व चिप्स के पैकेट टंगे हुए दिखाई दे जाएंगे। यह अलग बात यह है कि इन पैकेट को न तो कोई खरीदता है और न ही यह लोग उसको बेचते हैं। बस जनता में इस बात का वहम बना रहे कि वाकई यह किसी गैरकानूनी काम की नहीं वरन हकीकत की दुकान है। फिलहाल यह आइडिया लगभग सभी ने सट्टे के दुकानदारों ने कॉपी कर रखा है।
विवाद के मायने
राजनीति के कई रंग होते हैं। शतरंज की बिसात की तरह इसमें भी शह और मात का खेल चलता रहता है। बात चाहे दो दलों की हो या फिर एक ही दल की लेकिन सभी की आपस में बने यह जरूरी नहीं होता है। हाल ही विवादों में रहे एक दल के धरने का पटाक्षेप तो किसी तरह से हो गया। विवाद का निबटारा जरूरी भी हो गया था, क्योंकि पार्टी के मुखिया का पड़ोसी जिले में दौरा था। ऐसे में पार्टी के अंदरूनी विवाद की खबर मुखिया की भौंहें तन सकती थी, लिहाजा किसी न किसी तरह से दोनों पक्षों को राजी कर लिया गया। क्योंकि जिस तरह अपने-अपने नेताओं के समर्थन में समाज के लोग लामबंद हो रहे थे, उससे पार्टी की चिंता बढ़ाना स्वाभाविक भी था। खैर, ताजा मामला है कि छोटी सी बात पर शुरू हुआ यह विवाद निबटा जरूर है लेकिन अब इसका श्रेय लेने का खेल शुरू हो गया है। हालांकि इस श्रेय का जनता में कोई लाभ मिलने से रहा, लेकिन पार्टी में जरूर पीठ थपथपाई जा सकती है। फिर भी श्रेय की जंग जारी है।
मुहरों का मिलना
श्रीगंगानगर के जिला कलक्ट्रेट में करीब दो माह पूर्व न्याय शाखा से मुहरें गायब होना काफी चर्चा में रहा था। जिस अंदाज में यह मुहरें गायब हुई थीं, उससे यह तो जाहिर हो गया था कि जरूर यह अंदरूनी लड़ाई है और इस काम को किसी विभाग के आदमी ने ही अंजाम दिया है। मामला पुलिस तक पहुंचा। जांच भी शुरू हुई। इसके बाद मामला एक तरह से ठंडा पड़ गया। मंगलवार को इस मामले में अचानक से मोड़ आया जब डेढ़ दर्जन मुहरों में से करीब दस मुहरें स्टोर में मिल गई। मुहरें गायब होने के बाद जिस अंदाज में मिली हैं, उससे शक की सुई और भी गहरा गई है। मुहरों को देखकर प्रतीत भी होता है कि इनको यहां फेंका गया है। खैर, अब चोर का पकड़ा जाना ज्यादा जरूरी हो गया है। उसने न केवल मौका देखकर इन मुहरों को इधर-उधर किया बल्कि मौका पाकर यहां फेंक भी गया। देखने की बात है कि पुलिस चोर तक कब पहुंचती है या पहुंच ही नहीं पाती है।
गाड़ी का गम
अपनी जेब से अगर एक रुपया भी कहीं गिर जाए तो एकबार तो उसका भी गम होता है लेकिन बात जब लाखों की हो तो सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कुछ ऐसा ही हाल शहर में एक ब्लड बैंक चलाने वाले महाशय के साथ हो गया। लाखों रुपए की इनकी लग्जरी गाड़ी कोई धोखे से ले गया। मामला पुलिस तक पहुंचा है और पुलिस जांच में जुटी है। लोग बताते हैं कि किसी समय में ये महाशय एक छोटी सी प्राइवेट लैब पर नौकरी करते थे। वहां से पता नहीं कौनसे गुर सीखकर यह लाखों तक पहुंच गए। इसलिए गाड़ी जाने का दर्द तो होगा ही। वैसे जानकार बताते हैं कि खून के धंधे में भी मुनाफा कम नहीं होता है। शिविरों के माध्यम से आने वाले खून का लेखा जोखा कौन लेता है? ब्लड बैंक के खून के बदले खून भी लिया जाता है और पैसा भी। खैर, यह तो हुई जानकारों की बात, बहरहाल, गाड़ी वाले महाशय जी जरूर चिंता में डूबे हैं। बस किसी तरह से उनकी गाड़ी का पता लग जाए।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 8 मार्च 18 के अंक में प्रकाशित

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