Saturday, August 4, 2018

चंडीगढ़ यात्रा-11

संस्मरण
थोड़ी सी ओर जानकारी जुटाई तो पता चला कि उस वक्त चीफ़ एडमिनिस्ट्रेटर डॉ. एमएस रंधावा ने नेकचंद की इस कल्पना को रॉक गार्डन का नाम दिया था। करीब 40 एकड़ में बने इस गार्डन का उदघाटन 1976 में किया गया। यह गार्डन तीन चरणों में बनकर तैयार हुआ बताते हैं। पहले चरण में वह काम हुआ जो नेकचंद से गुपचुप तरीके से किया था। दूसरा चरण 1983 में खत्म हुआ। इसके तहत गार्डन में झरना, छोटा सा थियेटर, बगीचा जैसी कई चीज़ें शामिल थीं। इनके साथ ही कंक्रीट पर मिट्टी का लेप चढ़ाकर पांच हजार के करीब छोटी-बड़ी कलाकृतियां बनाई गई थी। तीसरे चरण के तहत भी कई बड़े काम हुए। इनमें मेहराबों की सूची शामिल थी। इन मेहराबों पर झूले लगाए गए हैं। इन सब के साथ-साथ मूर्तियों प्रदर्शन के लिए एक मंडप, मछलीघर और ओपन सिंच थियेटर भी बनाया गया। एक मोटे अनुमान के अनुसार यहां रोजाना पांच हजार के करीब पर्यटक आते हैं। गार्डन में झरनों, रंग बिरंगी मछलियों और जलकुंड के अलावा ओपन एयर थियेटर भी है.
बिना किसी प्रशिक्षण और अकेले दम पर एक पूरा गार्डन बनाकर नेकचंद ने आउट साइडर आर्ट नाम के कॉन्सेप्ट को ख्याति दिलाई। इसका अर्थ होता है खुद से सीखी गई कला, जहां इंसान के पास किसी तरह की ट्रेनिंग नहीं होती और न ही मेनस्ट्रीम आर्ट की दुनिया से कोई वास्ता होता है। टूटे-फूटे सामान और मलबे से एकत्रित की गई सामग्री से रॉक गार्डन जैसी अदभुत व हैरतअंगेज़ रचना के लिए केंद्र सरकार ने 1984 में नेकचंद को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। 11 जून, 2015 कैंसर की बीमारी चलते नेकचंद ने आखिरी सांसें ली। इस गार्डन में एक फोटो दीर्घा भी है , जिसमें रॉक गार्डन के ही फोटो लगाए गए हैं। इस दीर्घा में आप समूचे गार्डन के फोटो देख सकते हैँ। अलग-अलग एंगल से लिए गए फोटो पर्यटकों का ध्यान खीचंते हैं। इस दीर्घा में नेकचंद के फोटो तथा उनसे संबंधित इतिहास लगा है। इसी दीर्घा के सामने आेपन थियेटर है, जहां कला संस्कृति से ओतप्रोत कार्यक्रम होते रहते हैं। रंग बिरंगी मछलियां भी पर्यटकों को लुभाती हैं। कई तरह के शीशे तथा उनमें बनने वाली उल्टी, सीधी, चपटी आकृति देखने वालों को स्वयं गुदगुदाती हैं। इसके अलावा मेहराबों पर लटकते झूले तो दिन भर आबाद रहते हैं। विशेषकर युगलों को इन झूलों पर बैठे या झूलते हुए देखा जा सकता था। रॉक गार्डन के झरने तो एक तरह से सेल्फी स्पॉट बने गए हैं। वैसे फोटो के मामले में महिलाएं कोई कंजूसी नहीं करती हैं। शायद यही कारण है कि रॉक गार्डन में अधिकतर जगह मैंने पुरुष को ही मोबाइल से फोटो खींचते देखा, वह भी महिलाओं की। खैर, सेल्फी का लोभ संवरण मैं भी नहीं कर पाया। एक सेल्फी लेता तो एक फोटो किसी कलाकृति की।
- क्रमश:

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