Saturday, August 4, 2018

चंडीगढ़ यात्रा-14

संस्मरण
वैसे मुझे एक बात खटकी। पार्क का नाम है, जाहिर हुसैन रोज गार्डन लेकिन बोर्ड आदि में भी पूर्व राष्ट्रपति के नाम का कहीं पर भी उल्लेख दिखाई नहीं देता। सब लोग शोर्ट नाम रोज गार्डन की कहते हैं। इस पार्क की स्थापना 1967 में हुई थी तथा इसका नामकरण चंडीगढ़ के पहले कमिश्नर डा. एमएस रंधावा ने किया था। पार्क में लगे फूलों को लेकर वैसे जगह जगह सूचना पट्ट पर चेतावनी दी गई है कि फूल ना तोड़ें। फूल तोडऩे पर पांच सौ रुपए जुर्माना की चेतावनी लिखे बोर्ड भी जहां तहां टंगे हैं। पार्क में कई जगह कचरा पात्र भी रखे हुए हैं। और भी कई तरह की नसीहतें हैं, जो बोर्ड पर लिखी गई हैं। पार्क वैसे तो साल.भर.खुलता है लेकिन सर्दी गर्मी के दौरान.मामूली सा परिवर्तन किया जाता है। एक अप्रेल से 30 सितम्बर तक पार्क का समय सुबह पांच से रात दस बजे तक रहता है जबकि सर्दियों में मतलब एक अक्टूबर से 31 मार्च तक सुबह छह से रात दस बजे तक रहता है। घूमते घूमते एक बात और पता चली कि आप फुटपाथ पर जूते पहन कर चल सकते हो लेकिन पार्क के अंदर किसी गुलाब के पास जाना है तो नंगे पांव जाना पड़ेगा, हालांकि मैं जूतों में ही एक दो गुलाब के पौधों के पास गया लेकिन भानजे के अलावा किसी ने नहीं टोका। हो सकता है, उस वक्त मुझ पर किसी की नजर न हो। बच्चों के लिए पार्क के एक कोने में झूले आदि भी लगे हैं लेकिन उस वक्त वहां सन्नाटा पसरा था। वैसे गर्मियों में भी चहल-पहल शाम के वक्त ज्यादा होती है। पार्क में लगे रंगीन फव्वारे तो यहां के खास आकर्षण हैं। पार्क में घूमने वाला इनके पास जाकर फोटो जरूर खिंचवाता है। एक तरह से फव्वारे सेल्फी प्वाइंट बने हुए हैं। हमने दूर से ही इनको देखो पास नहीं गए। बहुत दूर थे। चलते-चलते हम थक गए थे, ऊपर से मौसम भी एेसा ही था। बताया गया कि पार्क के रखरखाव के लिए यहां पचास के करीब माली कार्यरत हैं। फरवरी माह के आखिर में यहां तीन दिवसीय रोग फेस्टिवल आयोजित होता है, इसमें देश-विदेश के सैलानी शामिल होते हैं। चंडीगढ़ का रोज फेस्टिवल अच्छा खासा लोकप्रिय है।
क्रमश:

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