Saturday, August 4, 2018

चंडीगढ़ यात्रा-13

संस्मरण
रॉक गार्डन से अब हम रोज गार्डन के लिए रवाना हो लिए थे। रोज गार्डन भी रॉक गार्डन से दूर नहीं है। कार की एसी में थोड़ी सी राहत मिली। बाहर धूप और उमस अपने चरम पर थी। करीब पांच-सात मिनट ही चले होंगे कि रोज गार्डन आ गया। यहां पार्किंग कोई शुल्क नहीं है। सुखना झील की तरह यहां भी कोई ज्यादा चहल पहल नहीं थी। भीड़ का पता पार्किंग में लगी गाड़ियों से हो जाता है। खैर, हम तीनों पार्क की तरफ बढ़े। प्रवेश द्वार पर दो तीन बोर्ड व संकेतांक दिखाई दिए तो मैंने तत्काल मोबाइल से क्लिक कर लिए। मुझे पक्का यकीन था, जरूर इसमें पार्क से संबंधित जानकारी है, जो बाद में लिखने के दौरान संदर्भ के रूप में भी काम आएगी। पार्क में प्रवेश करते ही दोनों तरफ काफी लंबे पेड़ों की कतार श है। एेसे पेड़ पहाड़ी क्षेत्रों में ज्यादा होते हैं। यहां भी मेरे मोबाइल का कैमरा चालू था। थोड़ा आगे बढ़े तो हरियाली से आच्छादित एक स्टैंड मिला। यहां बैंच लगी हैं, और यहां आने वाले ठंडी छांव में बैठकर सुस्ताते हैं। हम यहां बिना रुके ही सीधे आगे बढ़ते गए। रास्ते में रंग-बिरंगे गुलाब दिखाई देते तो उनको भी मोबाइल में कैद कर रहा था। वैसे रोज गार्डन आने का यह समय उपयुक्त नहीं है, क्योंकि गुलाब के फूलों पर शबाब सर्दियों में ही आता है, इसलिए सर्दियों में रोज गार्डन की रंगत देखने लायक होती है। हां इस बात से जरूर दिल को तसल्ली दी जा सकती है कि रोज गार्डन देख लिया लेकिन इसमें सर्दी के आनंद वाली बात नहीं है। गर्मी में तो औपचारिकता सी ही पूरी होती है। चलते-चलते गला फिर सूख गया था। पास ही एक वाटर कूलर लगा था। वहां से बोतल भर हमने प्यास बुझाई और फिर चल पड़े। यह पार्क कोई छोटा मोटा पार्क नहीं है। यह न केवल भारत बल्कि एशिया का सबसे बड़ा पार्क है। बोर्ड पर लिखी जानकारी के अनुसार यह पार्क 40.25 एकड़ में फैला है। इसमें गुलाबों की 825 प्रजातियां हैं। इस पार्क में कुल 32 हजार पांच सौ के करीब पौधे हैं। पार्क में घूमने के लिए फुटपाथ बना हुआ है। हम चले जा रहे थे। पेड़ कुछ कम हैं लेकिन उनकी छांव में युगल बैठे थे। कोई दुनिया से बेखबर तो कोई अठखेलियों में मगन ...।
क्रमश:

No comments:

Post a Comment