Saturday, August 4, 2018

सबक लेने की जरूरत

टिप्पणी
रसूखदारों का साथ व सान्निध्य हो तो फिर कानून किस तरह कठपुतली बनता है, यह पदमपुर हादसे ने साबित कर दिया। जोखिम भरी और सशुल्क प्रतियोगिता, वह भी बिना किसी अनुमति के करवाने के पीछे भी कहीं न कहीं यही कारण रहे हैं। यह तो गनीमत रही कि हादसे में कोई बड़ी जनहानि नहीं हुई, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही एवं उदासीनता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा? हां, इस हादसे से जुड़े कई सवाल जरूर हैं, जो पुलिस व प्रशासन को कठघरे में खड़ा करते हैं। ट्रैक्टरों की रस्साकशी प्रतियोगिता का नाम ही अपने आप में अजूबा है। इस तरह की प्रतियोगिता का नाम सुनकर चौंकना लाजिमी है।
संभवत: यही कारण रहा कि इस स्टंट प्रतियोगिता को देखने हजारों लोग जुटे। इतना बड़ा आयोजन गुपचुप तरीके से हो जाना तथा पुलिस व प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं हो, यह बात किसी के गले नहीं उतरती। दरअसल, आजकल एक परिपाटी बन गई है कि किसी कार्यक्रम के लिए अगर पुलिस व प्रशासन की अनुमति नहीं मिलती है तो उसके लिए गली तलाश ली गई है। बचाव के लिए या बेरोक-टोक आयोजन करवाने के लिए रसूखदारों को इसमें शामिल कर लिया जाता है। इसके बाद कुछ करने की जरूरत भी नहीं रह जाती। कड़वी हकीकत यह भी है कि रसूखदारों की सिफारिश पर लगाए गए अधिकारियों में इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह उनको ही चुनौती दे या उनके किसी गैरकानूनी काम में जानबूझकर टांग अड़ाए। पदमपुर में भी ऐसा ही हुआ। प्रतियोगिता तय हो गई। पंफलेट्स तक बंट गए। अतिथि व आयोजकों के फोटो लगे पोस्टर आदि छप गए। इसलिए ‘यह सब गुपचुप हुआ’ कहना कतई संभव नहीं है। आयोजकों को भी पैसे बटोरने की ही चिंता ज्यादा रही। प्रत्येक प्रतिभागी से एक हजार रुपए लिए गए, लेकिन प्रतियोगिता देखने उमड़े लोगों के बैठने की माकूल व्यवस्था नहीं की गई। चूंकि यह एक तरह की स्टंट प्रतियोगिता थी, फिर भी सुरक्षा तक के कोई प्रबंध नहीं थे। बैठने के स्थान के अभाव में ही दर्शक टिन शेड पर चढ़ गए। मौके पर मौजूद इक्का-दुक्का पुलिसकर्मी भी मूकदर्शक बनकर औपचारिकता निभाने से ज्यादा कुछ नहीं कर सके।
बहरहाल, मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं, लेकिन इस हादसे के जिम्मेदार कई हैं। जांच केवल जांच तक सीमित नहीं रहे। जांच का परिणाम निकले और प्रतियोगिता के आयोजकों व हादसे के जिम्मेदारों के खिलाफ उचित कार्रवाई हो ताकि नियम-कायदों को ताक पर रख कर इस तरह का काम करने वाले कुछ सबक ले सके। पुलिस व प्रशासन को भी किसी रसूखदार का नाम सुनकर आंख मूंदने की बजाय कानून के हिसाब से काम करना चाहिए। अगर पुलिस व प्रशासन रसूखदारों के दबाव या प्रभाव में आकर इसी तरह काम करते रहे तो फिर जान जोखिम में डालने वालों को रोकेगा कौन?
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 राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 30 जुलाई 18 के अंक में प्रकाशित

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