▪जनप्रतिनिधियों में हडक़ंप
इन दिनों गांवों की सरकारों में जोरदार हलचल मची हुई है। कहीं बिना अनुमति के रंगीन कुर्सियां खरीदने का मामला चर्चा में तो है कहीं पर स्ट्रीट लाइट खरीद में गड़बड़ी की बातें चर्चा में हैं। यह मामले सामने आने के बाद इस तरह का काम करने वाले जनप्रतिनिधियों में हडक़म्प मचना लाजिमी है। वैसे इस तरह की अनियमिताएं जिला परिषद में नेतृत्व परिवर्तन के बाद ज्यादा दिखाई दे रही हैं। इतना ही नहीं है, अब तो बकायदा पुराने वाले नेतृत्व व मौजूदा नेतृत्व के बीच तुलना भी होने लगी है। फिर भी कुछ तो है जो नए नेतृत्व को अलग खड़ा करता है। देखने की बात यह है कि पंचायत राज में आगे और क्या उजागर होता है।
▪भूमिका पर सवाल
इन दिनों लालगढ़ पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। बताया जा रहा है कि मामला एक दुर्घटना कारित करने वाली कार में शराब मिलने से जुड़ा है। चर्चा यहां तक है कि जिस कार में शराब मिली, उसका आबकारी के तरफ से कोई परमिट नहीं था। शराब की बोतलें आजकल आ नहीं रही, लेकिन उसमें बोतलें मिली। इसके अलावा शराब निकालकर दूसरे गाड़ी में डालने संबंधी बातें भी सुनने में आ रही हैं। वैसे बताया जा रहा है कि इस दिन थाने के मुखिया अपने ही एक अधीनस्थ के खिलाफ थाने से बाहर किसी कार्रवाई में जुटे थे। मान भी लें कि अगर उनको इस कार्रवाई में कहीं कोई चूक नजर आई या आएगी तो फिर सवाल यह उठता है कि वह शराब कहां से आई ?
इन दिनों लालगढ़ पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। बताया जा रहा है कि मामला एक दुर्घटना कारित करने वाली कार में शराब मिलने से जुड़ा है। चर्चा यहां तक है कि जिस कार में शराब मिली, उसका आबकारी के तरफ से कोई परमिट नहीं था। शराब की बोतलें आजकल आ नहीं रही, लेकिन उसमें बोतलें मिली। इसके अलावा शराब निकालकर दूसरे गाड़ी में डालने संबंधी बातें भी सुनने में आ रही हैं। वैसे बताया जा रहा है कि इस दिन थाने के मुखिया अपने ही एक अधीनस्थ के खिलाफ थाने से बाहर किसी कार्रवाई में जुटे थे। मान भी लें कि अगर उनको इस कार्रवाई में कहीं कोई चूक नजर आई या आएगी तो फिर सवाल यह उठता है कि वह शराब कहां से आई ?
▪जल्दबाजी का नतीजा
कहते हैं कि जल्दबाजी में अक्सर नुकसान का अंदेशा बना रहा है। तभी तो ठंडी करके खाने की सलाह दी जाती है। पदमपुर टिन शैड हादसे की सूचना देने में भी कुछ खबरनवीसों ने जरूरत से ज्यादा ही जल्दबाजी दिखाई। उससे कहीं ज्यादा जल्दबाजी जनप्रतिनिधियों ने संवेदना व्यक्त करने में दिखा दी। यह बात अलग है कि बाद में किसी ने अपने संवेदना संदेश डिलीट किए तो किसी ने संशोधित संदेश प्रसारित करवा दिए। बहरहाल, खबरनवीसों की इस जल्दबाजी ने पुलिस व प्रशासन की अच्छी खासी मशक्कत करवा दी। अब जल्दबाजी दिखाने वाले को पहचान की जा रही हैं। देखते हैं गाज कहां व किस पर गिरती है।
कहते हैं कि जल्दबाजी में अक्सर नुकसान का अंदेशा बना रहा है। तभी तो ठंडी करके खाने की सलाह दी जाती है। पदमपुर टिन शैड हादसे की सूचना देने में भी कुछ खबरनवीसों ने जरूरत से ज्यादा ही जल्दबाजी दिखाई। उससे कहीं ज्यादा जल्दबाजी जनप्रतिनिधियों ने संवेदना व्यक्त करने में दिखा दी। यह बात अलग है कि बाद में किसी ने अपने संवेदना संदेश डिलीट किए तो किसी ने संशोधित संदेश प्रसारित करवा दिए। बहरहाल, खबरनवीसों की इस जल्दबाजी ने पुलिस व प्रशासन की अच्छी खासी मशक्कत करवा दी। अब जल्दबाजी दिखाने वाले को पहचान की जा रही हैं। देखते हैं गाज कहां व किस पर गिरती है।
▪बदलाव का असर
खाकी में नेतृत्व परिवर्तन आ असर बाकी जगह भले ही दिखाई न दे लेकिन कहीं कहीं पर इसकी आंशिक झलक दिखाई देने लगी है। विशेषकर ज्ञापन देने/ लेने के फोटो में यकायक कमी आई है। वैसे ज्ञापन देने वालों की यह दिली इच्छा होती है कि अधिकारी को ज्ञापन देते समय की उनकी फोटो समाचार पत्रों में प्रकाशित हो लेकिन अब नई व्यवस्था के तहत फोटो पर एक तरह से पाबंदी लगा दी गई है। कार्यालय में फोटोग्राफरों का प्रवेश वर्जित कर दिया बताया। इतना ही नहीं थाने के मुखिया भी आजकल कप्तान का हवाला देकर खबरनवीसों को बाइट व या बयान देने से कतराने लगे हैं। वैसे खाकी के लिए सख्ती व अनुशासन बेहद जरूरी हैं। देखते हैं खाकी बदलाव को कितने दिन बरकरार रखती है।
खाकी में नेतृत्व परिवर्तन आ असर बाकी जगह भले ही दिखाई न दे लेकिन कहीं कहीं पर इसकी आंशिक झलक दिखाई देने लगी है। विशेषकर ज्ञापन देने/ लेने के फोटो में यकायक कमी आई है। वैसे ज्ञापन देने वालों की यह दिली इच्छा होती है कि अधिकारी को ज्ञापन देते समय की उनकी फोटो समाचार पत्रों में प्रकाशित हो लेकिन अब नई व्यवस्था के तहत फोटो पर एक तरह से पाबंदी लगा दी गई है। कार्यालय में फोटोग्राफरों का प्रवेश वर्जित कर दिया बताया। इतना ही नहीं थाने के मुखिया भी आजकल कप्तान का हवाला देकर खबरनवीसों को बाइट व या बयान देने से कतराने लगे हैं। वैसे खाकी के लिए सख्ती व अनुशासन बेहद जरूरी हैं। देखते हैं खाकी बदलाव को कितने दिन बरकरार रखती है।
▪तबादलों का राज
चुनावी मौसम में अधिकारियों के तबादले होना आम बात हो चली है। इन दिनों खूब अधिकारी इधर से उधर हो रहे हैं। इस बदलाव से श्रीगंगानगर जिला भी अछूता नहीं रहा। यहां के कई अधिकारी भी इस बदलाव की जद में आए हैं। वैसे इन तबादले के पीछे दबे स्वर में और भी कारण गिनाए जा रहे हैं। कोई अधिकारी लंबे समय से यहां कुंडली मारे बैठा था तो किसी को अपने से सीनियर अधिकारी से तालमेल नहीं बैठा पाने का खमियाजा भुगतना पड़ा। कुछ को किसी हादसे की सजा मिली तो किसी को बेहतर काम न करने के कारण बदल दिया गया। फिर भी तबादलों के पीछे के राज चुनावी मौसम के आगे गौण हो गए।
चुनावी मौसम में अधिकारियों के तबादले होना आम बात हो चली है। इन दिनों खूब अधिकारी इधर से उधर हो रहे हैं। इस बदलाव से श्रीगंगानगर जिला भी अछूता नहीं रहा। यहां के कई अधिकारी भी इस बदलाव की जद में आए हैं। वैसे इन तबादले के पीछे दबे स्वर में और भी कारण गिनाए जा रहे हैं। कोई अधिकारी लंबे समय से यहां कुंडली मारे बैठा था तो किसी को अपने से सीनियर अधिकारी से तालमेल नहीं बैठा पाने का खमियाजा भुगतना पड़ा। कुछ को किसी हादसे की सजा मिली तो किसी को बेहतर काम न करने के कारण बदल दिया गया। फिर भी तबादलों के पीछे के राज चुनावी मौसम के आगे गौण हो गए।
▪समर्थकों की मौज
नेताओं के पास समर्थकों की फौज तो होती ही है। नेता समर्थकों का ख्याल रखता है तो समर्थक अपने नेता के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। ऐसा की कुछ नजारा मंगलवार को नई टे्रन के उद्घाटन के समय का है। उद्घाटन समारोह में नेताओं के साथ बड़ी संख्या में उनके समर्थक भी आए। जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, समर्थक भी उसमें सवार हो गए। अब नेताजी के समर्थक हैं, लिहाजा कौन पूछ परख करे। बताते हैं कि अधिकतर समर्थकों ने बिना टिकट के ही सुपर फास्ट ट्रेन में बैठने का आनंद लिया। अपना काम धंधा छोडकऱ, इतनी गर्मी में आने वाले कुछ तो हासिल करते ही। सो उन्होंने भरपाई रेल यात्रा से कर ली।
नेताओं के पास समर्थकों की फौज तो होती ही है। नेता समर्थकों का ख्याल रखता है तो समर्थक अपने नेता के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। ऐसा की कुछ नजारा मंगलवार को नई टे्रन के उद्घाटन के समय का है। उद्घाटन समारोह में नेताओं के साथ बड़ी संख्या में उनके समर्थक भी आए। जैसे ही ट्रेन रवाना हुई, समर्थक भी उसमें सवार हो गए। अब नेताजी के समर्थक हैं, लिहाजा कौन पूछ परख करे। बताते हैं कि अधिकतर समर्थकों ने बिना टिकट के ही सुपर फास्ट ट्रेन में बैठने का आनंद लिया। अपना काम धंधा छोडकऱ, इतनी गर्मी में आने वाले कुछ तो हासिल करते ही। सो उन्होंने भरपाई रेल यात्रा से कर ली।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 02 अगस्त 18 के अंक में प्रकाशित..
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