Thursday, July 26, 2018

चंडीगढ़ यात्रा-1

संस्मरण 
चंडीगढ़ के लिए भतीजा सिद्धार्थ कई बार आग्रह कर चुका था। भानजा कुलदीप भी इसी शहर में पदस्थापित है। आखिरकार काफी हां ना, हां ना के बाद चंडीगढ़ जाने का फैसला कर ही लिया गया। ऊहापोह इस बात की थी कि ट्रेन में जाया जाए या बस में। चूंकि अवकाश एक दिन था और एक साप्ताहिक अवकाश। इस तरह दो दिन थे। ट्रेन मेरे टाइम टेबल के हिसाब से मैच नहीं हो रही थी। आखिर तय हुआ कि शुक्रवार रात को बस से चंडीगढ़ रवानगी और रविवार शाम को वहां से बस से वापसी होगी। टिकट की बुकिंग ऑनलाइन की गई थी। श्रीगंगानगर से चंडीगढ़ के लिए राजप्रीत ट्रेवल्स की बस में सीट बुक हुई तो वापसी में टांटिया ट्रेवल्स की। दोनों ट्रेवल्स एजेंसी श्रीगंगानगर की हैं। दोनों बसों का किराया भी समान है और दोनों ही गंतव्य स्थल पहुंचाने में एक जैसा समय लगाती हैं। इन सब के बावजूद दोनों ट्रेवल्स में दिन रात का अंतर है। यह अंतर है सेवा का, व्यवहार का और समय की पालना का। ऑनलाइन टिकट में राजप्रीत का रिपोर्टिंग व डिपार्चर टाइम नौ बजे का दिया हुआ था मतलब दोनों एक साथ, जबकि टांटियां में रिपोटिंग टाइम 7.25 तथा डिपार्चर टाइम 7.40 का। टांटिया ट्रेवल्स की बस निर्धारित समय 7.40 पर चंडीगढ़ से श्रीगंगानगर के लिए रवाना हो गई, लेकिन राजप्रीत ट्रेवल्स के साथ एेसा नहीं था। यह बस अपने निर्धारित समय से काफी देर बाद श्रीगंगानगर से चंडीगढ़ के लिए रवाना हुई। टांटियां में सभी यात्रियों को सीट पर बैठते ही ठंडे पानी की एक-एक बोतल दे दी गई जबकि राजप्रीत में एेसा कुछ नहीं था। टांटिया ट्रेवल्स का परिचालक जब भी कोई स्टैंड आता है आवाज लगाता लेकिन राजप्रीत में एेसा नहीं था।
बस ट्रेवल्स से अपनी बात इसीलिए शुरू की ,क्योंकि इन दोनों में से एक ट्रेवल्स के बुकिंग काउंटर पर बैठे स्टाफ का व्यवहार इतना रुखा और अखड़ था, जिसने मेरा मूड ऑफ किया। मैं बस रवानगी के निर्धारित समय नौ बजे से पांच मिनट पहले राजप्रीत के काउंटर पर पहुंच गया था। काउंटर पर उस वक्त काफी भीड़ थी तथा तीन बसें आगे पीछे कतार में खड़ी थीं। मैंने काउंटर पर जाकर चंडीगढ़ की बस के बारे में जानकारी ली तो बताया गया कि बस पौने दस बजे के करीब चलेगी।
क्रमश:.....

No comments:

Post a Comment