Thursday, July 26, 2018

इक बंजारा गाए-37


सम्मान की चाह
सम्मान की चाह किसे नहीं होती। आदमी सम्मान के लिए लालायित रहता है और पाने के प्रयास भी खूब करता है। हाल ही श्रीगंगानगर के एक ट्रस्ट को राष्ट्रीय स्तर का सम्मान मिला है। सम्मान लेने बाकायदा दो बंदे दिल्ली पहुंचे भी लेकिन सम्मान तो उसी को मिलना था, जिसका नाम था। खैर, ट्रस्ट मुखिया जी को यह सब कैसे बर्दाश्त होता। लिहाजा होर्डिंग्स में खुद का फोटो तथा बाद में अभिनंदन करवाकर संतुलन बनाने का प्रयास तो किया लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान हासिल न करने का मलाल तो रहेगा ही। यह एक ऐसी टीस है जो रह-रहकर सालती रहेगी।
जिम्मेदारी का बोझ
पीएम की जयपुर में होने वाली सभा ने कई कर्मचारियों की रातों की नींद व दिन का चैन गायब कर रखा है। विशेषकर उन कर्मचारियों के समक्ष ज्यादा दुविधा है, जिनको जिम्मेदारी मिली है। इन कर्मचारियों को चिंता जयपुर जाने की नहीं है, बल्कि उस खर्चे की है जो उनको खुद की जेब से भरना पड़ सकता है। उनको उम्मीद की कोई किरण भी नजर नहीं आ रही है कि यह खर्चा उनको वापस कहां से मिलेगा। इस दुविधा के चलते बहुत से कर्मचारी तो जिम्मेदारी लेने से बचने की कोशिश में जुटे हैं, लेकिन लगता नहीं उनका इस तरह पीछा छूट जाएगा।
दिहाड़ी का संकट
यह मामला भी पीएम की सभा से संबंधित है। जयपुर के लिए बसें अधिग्रहित की जा रही हैं। बस वाले भी राजी-राजी बसें दे रहे हैं। मजबूरी है, इसलिए मना भी करेंगे तो बात बनेगी नहीं। फिलहाल बस वालों की दो दिन की दिहाड़ी तो मारी ही जाएगी। तेल का खर्चा भी पल्ले से देना पड़ सकता है। बसें चलानी हैं, लिहाजा शासन-प्रशासन से तालमेल तो रखना ही पड़ेगा। कल को अधिकारी पता नहीं किसी तरह की कोई कमी बताकर बस को सीज कर दें और कितना नुकसान हो जाए, बस इसी चिंता को जेहन में रखकर बस वाले फिलहाल बुझे मन से लेकिन बनावटी मुस्कान से हां कर रहे हैं।
सारी खुदाई एक तरफ
'सारी खुदाई एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफ' वाली कहावत इन दिनों परिषद के मुखिया और उप मुखिया पर सटीक बैठ रही है। परिवार के लोगों को उपकृत करने के कारण आजकल वे ठेकेदार थोड़े कड़की में चल रहे हैं जो कभी इन दोनों मुखियाओं के खासमखास हुआ करते थे। स्वाभाविक सी बात है कोई कितना भी खासमखास हो लेकिन बात जब पत्नी के भाई की आएगी तो फिर प्राथमिकता उसी को मिलना तय है। फिलहाल पुराने ठेकेदार इस संकट से पार पाने की जुगत भिड़ा तो रहे हैं लेकिन उनको सफलता मिलेगी, लगता नहीं है।
खाकी की जांच
श्रीगंगानगर में एक हिस्ट्रीशीटर की सरेआम हत्या के बाद हरकत में आई खाकी ने अधिकतर आरोपी पकडऩे में सफलता तो हासिल की है लेकिन मुख्य आरोपी अभी भी पकड़ से दूर है। इतना ही नहीं खाकी की जांच पर भी कुछ चटखारे लिए जा रहे हैं। मसलन, खाकी की जांच शूट किसने किया तथा कैसे किया इस पर बात तो चल रही है लेकिन अभी वह यह नहीं बता पाई है कि यह हत्या किसके कहने पर हुई। मतलब इस हत्या का सूत्रधार कौन हैं। जब आरोपी पकड़ में हैं तो इस बात का खुलासा करने में देर किस बात की।
सर्किल का मोह
सदर थाने व चहल चौक के बीच यूआईटी ने एक चौक बनवाया है। यहां ठीक से जगह नहीं है लेकिन धक्के से एक गोल सर्किल बनाकर उसका बाकायदा नामकरण भी कर दिया। नाम दिया गया है बेटी गौरव सर्किल। यह सर्किल बना तो दिया गया है लेकिन यातायात के दृष्टिकोण से बिल्कुल भी सही नहीं है। पहले वाला कुछ बड़ा बन गया तो यूआईटी ने तोड़ दिया और दुबारा बना तो किसी वाहन की टक्कर से वह टूट गया। सर्किल के नाम पर मलबे का ढेर जरूर पड़ा है। पता नहीं यूआईटी को यहां सर्किल बनाने का ख्याल कैसे आया। सर्किल से मोह के प्रति कोई कारण या राज तो जरूर है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 05 जुलाई 18 के अंक में प्रकाशित 

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