Thursday, July 26, 2018

सब कुछ राम भरोसे

टिप्पणी
सीवरेज के लिए सडक़ें तोड़ी रही हैं। बारिश का मौसम है, फिर भी खुदाई हो रही है। यह जानते हुए भी कि बारिश में जमीन धंसेगी, फिर भी काम बदस्तूर जारी है। तोड़ी गई सडक़ें भी दो-दो माह से जस की तस पड़ी हैं। प्रयोग के नाम पर उन्हें बार-बार तोड़ा जरूर जा रहा है। इधर, सामान्य बारिश से ही सडक़ें छलनी हो गई हैं। उनमें बड़े-बड़े गड्ढे हैं। उनको ठीक करने के नाम पर मकानों का मलबा डाला जा रहा है, जो गड्ढों से भी ज्यादा परेशानी पैदा कर रहा है, क्योंकि इसको जमाया नहीं जा रहा है। बारिश के पानी की निकासी नहीं होती, इसलिए वह पानी शहर के पार्कों व मैदानों में छोड़ा जाता है। पार्क तालाब बन चुके हैं। मैदान भी लबालब हैं। जिम्मेदारों को यही कारगर व सस्ता समाधान नजर आता है। सफाई व्यवस्था चौपट है। शहर का कोई भी कोना चकाचक नजर नहीं आता। कहीं-कहीं तो गंदगी से उठती दुर्गन्ध वातावरण को प्रदूषित कर रही है। अधूरे काम कछुआ गति से हो रहे हैं। कहीं शिलान्यास हो गया तो कहीं उद्घाटन, लेकिन जनता को काम पूर्ण होने का इंतजार है।
कमोबेश यही हाल कानून व्यवस्था का है। दूरदराज ग्रामीण क्षेत्रों की बात छोडि़ए, जिला मुख्यालय पर सरेआम वाहन उठ रहे हैं। राह चलते लोगों से मारपीट हो रही है। अवैध शराब देर रात या यूं कहिए सारी रात बिकती है। सट्टे की दुकानें गली-गली में खुली हैं। वाहन सडक़ों पर बेतरतीब खड़े हैं। प्राइवेट बसें पुलिस अधिकारियों के आवास के सामने सडक़ घेरकर सवारियां बैठाती हैं। पार्र्किंग की व्यवस्था कहीं नहीं हैं, फिर भी पार्र्किंग के नाम पर चालान जरूर कटते हैं।
नेताओं व नेतृत्व की तो पूछो ही मत। गिनाने के लिए सब के पास अपनी-अपनी मजबूरियां जरूर हैं, लेकिन जनहित या विकास के लिए कोई एजेंडा दिखाई नहीं देता। नासूर होती समस्याओं के समाधान के लिए कोई ठोस योजना नहीं है। दूरदर्शिता का तो नामोनिशान तक दिखाई नहीं देता। इन सबको को देखकर सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर यह शहर किसके भरोसे चल रहा है? कामों पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं हैं। सब कुछ मनमर्जी से हो रहा है। सब जगह जन गौण है, उपेक्षित है, तो फिर शहर कौन चला रहा है? कैसे चला रहा है और किसके लिए चला रहा है? व्यवस्था नाम की कोई चिडिय़ा कहीं नजर नहीं आ रही है। आखिर कब तक यह शहर रामभरोसे चलता रहेगा? जिम्मेदार जाग नहीं रहे हैं, लेकिन अब जनता को चेत जाना चाहिए। यह शहर जनता का है, जनता से ही बना है। जनता को नजरअंदाज करने वाला चाहे शासन हो.. प्रशासन हो... नेता हो या फिर नेतृत्व, इनके समझ में तभी आएगी जब जनता जागेगी और शहर हित की बात करेगी

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 26 जुलाई 18 के अंक में प्रकाशित 

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