Thursday, July 26, 2018

इक बंजारा गाए-39

मेरे साप्ताहिक कॉलम की अगली कड़ी। इस बार भी छह रंग।
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इंजन का खौफ
श्रीगंगानगर से जयपुर के बीच हवाई सेवा तो शुरू हो गई लेकिन इसके साथ हवाई पट्टी पर सुविधाओं का अभाव भी प्रमुख रूप से समाचार पत्रों की सुर्खियां बना। अब और नहीं तो कुछ लोग हवाई जहाज को लेकर ही टीका टिप्पणी व चटखारे लेने लगे हैं। कई तो इस बात से चुटकी लेने से नहीं चूक रहे कि हवाई जहाज में इंजन एक ही है। अब कमजोर दिल वाले इस बात से ही खौफजदा हैं। खुदा न खास्ता कल को इंजन में कोई दिक्कत आ जाए तो फिर विकल्प क्या है। भगवान न करे कभी एेसा हो लेकिन मानव स्वभाव है, एक बार डर बैठ जाता है, वह जल्दी से निकलता भी तो नहीं है।
टिकट मिल गई
कहते हैं जीवन में जो काम पहली बार होता है, उसकी खुशी कुछ अलग ही होती है और लंबे समय तक याद रहता है। अब हवाई सेवा में पहली बार यात्रा करने वालों के अनुभव भी कुछ एेसे ही हैं। हो सकता है इन लोगों ने पहले हवाई यात्रा की हो लेकिन यहां बात जयपुर से श्रीगंगानगर के लिए पहली बार हवाई यात्रा करने वालों की भी हो रही है। यात्रा करने वालों में जिला भाजपा के एक पदाधिकारी का पुत्र भी शामिल था, अब कहने वाले हवाई टिकट को चुनावी टिकट से जोड़ रहे हैं और यहां तक कह रहे हैं कि यह टिकट तो सीएम ने दी है। अब यह सब चर्चा और कयास हैं, कयासों का क्या?
जुमलों का दौर
हवाई सेवा शुरू होने के बाद बधाई देने वालों के साथ चुटकले व जुमले बनाने वाले भी कम नहीं है। जुमले भी कोई सीधे नहीं बल्कि व्यंग्यात्मक शैली में बनाए जा रहे हैं। कई एेसे भी जो हवाई जहाज के साथ अपनी सेल्फी लेकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं। अब जुमलों में हवाई पट्टी की सुरक्षा की जमकर खिल्ली उड़ाई जा रही है कि यहां कोई रोकटोक नहीं है। एेसी सुविधा भला और कहां मिलेगी। इतना नहीं हवाई पट्टी को किसी बस स्टैंड जैसा ही बताया जा रहा है। वैसे हकीकत है भी एेसी ही। देखते हैं सुविधाओं का विस्तार कब होता है।
समय की कीमत
समय को लेकर पता नहीं क्या-क्या कहा गया है। समय बड़ा बलवान, समय को खराब किया तो समय आपको खराब कर देगा। समय किसी का सगा नहीं होता आदि-आदि। इनके सबसे बावजूद सरकारी विभागों में समय की पालना कितनी होती है तथा यहां बैठने वालों के लिए समय कितना मायने रखता है, यह सब जगजाहिर है। वाहनों वाले विभाग में बैठने वालों को भी इसी श्रेणी में गिना जा सकता है। समय की पालना न करने वालों की शिकायत करने पर यहां उल्टे नसीहत मिलती है और कहा जाता है कि समय की पालना करने से कौनसा देश सुधर जाएगा। अब एेसे नासमझों को कौन समझाए।
शिलान्यास के बाद
शक्ति मार्ग पर इन दिनों यूआईटी सड़क बनवा रही है। वैसे शिलान्यास तो चार जुलाई को होना था लेकिन बारिश ने कार्यक्रम पर पानी फेर दिया। दुबारा कार्यक्रम तय होने में भी कम से दस दिन लग गए। तब तक यहां से आवागमन करने वाले ठोकरें खाते रहे और जिम्मेदारों को कोसते रहे। शिलान्यास के बाद भी पत्थर वैसे ही पड़े हैं। दो दिन से मजूदर यहां काम पर लगे हैं। एक तरफ नाली निर्माण भी चल रहा है। विकास वाले विभाग को अब कौन समझाए कि नाली पहले बननी चाहिए या सड़क। नाली बननी थी तो सड़क का काम पहले आधा अधूरा क्यों छोड़ा। खैर, विभाग की इस दूरदर्शिता के चर्चे आम है, क्योंकि जनहित को दुविधा में काम करवाने का यूआईटी का इतिहास पुराना है।
बीच का रास्ता
चाहे कैसी भी परिस्थिति हो या विवाद अक्सर बीच का रास्ता निकालने का प्रयास किया जाता है। अब सरकारी की प्रमुख योजनाओं की ही बात कर लें। इनमें श्रीगंगानगर का स्थान न तो ऊपर में है और न ही सबसे नीचे। मतलब बीच में है। एेसी स्थिति न तो खराब कही जा सकती है और न ही अच्छी लेकिन यह बचाव का बड़ा माध्यम जरूर है। प्रथम आने वाले को सफलता बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण काम होता है तो नीचे वाले को ऊपर आने में जोर आता है। हां इतना जरूर है कि बीच के रास्ते वालों को नुकसान नहीं है तो कोई फायदा भी नहीं होता
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 19 जुलाई 18 के अंक में प्रकाशित। 

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