Thursday, July 26, 2018

चंडीगढ़ यात्रा-8

संस्मरण
बीच में व्यस्तता के कारण संस्मरण का क्रम टूट गया। एक बार संस्मरण टूटने के बाद फिर वैसे बात नहीं रहती है। खैर, बात चंडीगढ़ के रॉक गार्डन की हो रही थी। यहां भी पार्किंग के लिए व्यवस्था है। प्रवेश टिकट के माध्यम से है। हम तीनों ने टिकट ली और प्रवेश कर गए एक एेसी दुनिया में जिसको जितनी बार भी देखो कम ही लगती है। यहां सचमुच पत्थर गीत गाते हुए प्रतीत होते हैं। कबाड़, रॉ मैटेरीयल, सीमेंट, टाइल्स, चूडि़यां और भी न जाने क्या-क्या। इनको देखकर कभी आह तो कभी वाह बरबस मुंह से निकलती रहती है। हमने एक नसीहत को नजरअंदाज करने का खमियाजा जरूर भोगा। कहा गया है रॉक गार्डन को देखना है तो सर्दी के मौसम में आना चाहिए। गर्मी का मौसम इसको देखने के लिए कतई सही नहीं है। नसीहत नहीं मानने का असर यह होता है पसीने से आपके कपड़े पानी-पानी हो जाते हैं। इतनी गर्मी और जबरदस्त उमस है इस गार्डन के पत्थरों व तंग रास्तों में। हालांकि यहां पानी की नहर है तो दो तीन जगह झरने भी बनाए गए जो किसी प्राकृतिक नजारे का आभास देते हैं, लेकिन गर्मी के मौसम में वह उमस बढ़ाता है। पत्थरों से गर्म भाप निकलती प्रतीत होती है। चूंकि इस कला को देखने का एक अलग ही आनंद है, लिहाजा गर्मी व उमस अपने आप ही गौण हो जाती है। रॉक गार्डन किसी भूल भूलैया की तरह ही है। पता ही नहीं कौनसा रास्ता किधर मुड़कर किधर खुल जाता है। हां जगह-जगह दरवाजे जरूर बने हैं, जो आपको समय-समय पर सतर्क करते हैं, मतलब दरवाजों से निकलना है तो सिर को नीचे करना ही पड़ेगा। अगर आप अपनी ही धुन में चलते गए तो सिर फूटना तय मानिए। हालांकि भतीजा व भानजा दोनों मेरे से आगे थे और दरवाजा आने पर ध्यान रखना, ध्यान रखना कहकर मुझे सतर्क कर रहे थे। वैसे कहीं सिर टकराया भी नहीं। करीब एक से डेढ़ घंटे तक इधर से उधर सांप सीढ़ी तरह घूमते रहने के बावजूद ईमानदारी से कहूं तो दिल भरा नहीं था लेकिन हिम्मत जवाब दे रही थी। गर्मी ने बुरी तरह से बेचैन कर दिया था। अब तो बस एक ही इच्छा हो रही थी कि किसी ठंडी छांव में बैठकर सुस्ता लिया जाए।
क्रमश :

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