Thursday, July 26, 2018

चंडीगढ़ यात्रा- 7

संस्मरण
भानजे ने सुखना झील के ठीक विपरीत दिशा में सड़क किनारे पार्र्किंग में गाड़ी खड़ी करके रसीद कटाई और हम तीनों सड़क पार सुखना की तरफ बढ़े। उस वक्त तेज धूप व उमस जबरदस्त थी। इस कारण झील के किनारे पर चहल-पहल बेहद कम थी। पेड़ों के नीचे बैठे लोग जरूर सुस्ता रहे थे। सन्नाटा सा छाया था। पेड़ों के झुरमुटों में दुबके कोवों की कांव कांव जरूर इस सन्नाटे में खलल डाल रही थी। फुड जोन व झूलों पर जरूर बच्चे व महिलाएं कुछ खाने व खेलने में मगन थे। हम झील की तरफ बढ़े। इसके किनारे दो साइड में लम्बा फुटपाथ बना है, जहां सुबह-शाम लोग घूमने भी आते हैं। दोपहर की वजह से यह पूरा फुटपाथ सूना पड़ा था। दरअसल, यह झील प्राकृतिक न होकर कृत्रिम है। यह हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बनी हुई है। झील का क्षेत्र करीब तीन किलोमीटर है। इसकी औसत गहराई आठ व अधिकतम सोलह फुट के करीब है। इस झील का निर्माण 1958 में किया गया था। वर्तमान में यह चंडीगढ़ का प्रमुख पर्यटक स्थलों में से एक है। पहले इस झील में एशियन रोइंग चैंपियनशिप भी होती थी। एशिया के सबसे लंबे रोइंग और याटिंग चैनल के रूप में भी यह झील प्रसिद्ध है। यह झील स्कीइंग, सर्फिंग और स्कलिंग जैसी अन्य वाटर स्पोट्र्स गतिविधियों के लिए भी लोकप्रिय है। ठंड के दौरान यहां विदेशी प्रवासी पक्षियां भी बड़ी संख्या में आते हैं।
हम तीनों झील के किनारे चहलकदमी कर थे लेकिन धूप में हमारा बुरा हाल कर रखा था। इधर झील में मात्र दो या तीन नाव ही चल रही थी, बाकी किनारे पर टायरों से बंधी पर्यटकों के इंतजार में थी। इतनी तेज धूप में भला कौन बोटिंग करे। बोटिंग भी अधिकतर पैडल वाली ही दिखाई दी, लिहाजा गर्मी में श्रम का पसीना बहाना हर किसी के बस की बात नहीं। झील का पानी भी मेरे को उतना साफ नहीं लगा, जितना बाकी झीलों का होता है। यह बिलकुल बरसाती पानी की तरह मटमैला ही नजर आया। घूमते-घूमते हम नावों की तरफ आए। लगभग सारी एक जैसी पैडल वाली ही थी। एक बड़ी नाव थी, जिस पर करीब बीस लोग बैठने की क्षमता थी। इसको ऊपर छत भी थी। शायद इसका नाम शिकारा था, यहां एक व्यक्ति का किराया चार सौ रुपए लिखा था। बोटिंग करने की इच्छा तेज धूप व गर्मी की वजह से वैसे ही नहीं थी, ऊपर से इतना किराया देखकर माथा ठनका। हमने यहां यादगार के लिए दो चार फोटो जरूर खींची और वापस मुड़ लिए। वैसे भी मूड बहुत कुछ मौसम पर निर्भर करता है। मौसम अनुकूल हो तो सब अच्छा और सुकूनदायक लगता है लेकिन मौसम की तल्खी मिजाज को गर्म कर देती है। यह सुखना पर प्रत्यक्ष महसूस हुआ। खैर, यहां से हमारा अगला स्थान रॉक गार्डन था। रॉक गार्डन का काफी नाम सुना था..। चंडीगढ के साथ रॉक गार्डन नाम इस तरह जुड़ गया है दोनों एक दूसरे की पहचान बन गए हैं।
क्रमश:

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