Friday, August 31, 2018

पचास साल के युवा

बस यूं ही
सुधीर भाईजी। गांव में इनको हर युवा इसी नाम से पुकारता है। एक बार मैंने भाईसाहब कहा था तो टोक दिया और बोले भाईजी ही ठीक है। सुधीर भाईजी पेशे से अध्यापक होने के साथ-साथ न केवल खेल प्रेमी हैं बल्कि युवाओं जैसी ऊर्जा व फुर्ती भी रखते हैं। पचास साल के होने के बावजूद इनकी स्टेमना गजब की है। इनका परिवार पहले कोलकाता रहता था। छुट्टियों में यह लोग जब गांव आते थे तो क्रिकेट खेलते थे। इनको देखकर ही क्रिकेट के प्रति मोह पैदा हुआ। मैदान से बाहर बैठकर उनको खेलते देखता था। स्थायी रूप से गांव आने के बाद सुधीर भाईजी का क्रिकेट नियमित हो गया। आसपास के गांवों में जब भी क्रिकेट प्रतियोगिता होती सुधीर भाईजी का नाम सबसे पहले होता। सुधीर भाईजी सलामी बल्लेबाज की भूमिका में उतरते। धीरे-धीरे मैं भी अच्छा खेलने लगा। फिर तो सुधीर भाईजी के साथ ही खेलना होने लगा। हमने लंबे समय तक केहरपुरा कलां की क्रिकेट टीम की सलामी जोड़ी की भूमिका निभाई। गांव के खेल मैदान पर हम काफी समय तक साथ-साथ खेले हैं। वैसे सुधीर भाईजी को गांव के साथी सचिन भी कहते थे। यह भी एक संयोग है कि सुधीर भाईजी पहले कीपिंग भी करते थे। बाद में यह जिम्मेदारी मैंने संभाली। पत्रकारिता में आने के बाद मेरा क्रिकेट छूट गया लेकिन सुधीर भाईजी की पोस्टिंग नजदीकी गांवों में होने के कारण उनको खेल जारी रखने में दिक्कत नहीं हुई। फिलहाल गांव में वॉलीबाल पर जोर ज्यादा है। इस खेल में भी सुधीर भाईजी की फुर्ती देखने लायक होती है।
हाल ही में गांव के खेल मैदान को समतल किया गया है। इस पर ट्रेक बनाया जाना प्रस्तावित है। पिछले सप्ताह स्वाधीनता दिवस पर गांव गया था। ट्रेक निर्माण के सिलसिले में सरपंच प्रदीप झाझडि़या व युवा नेता बबूल चौधरी युवाओं के साथ मैदान पर पहुंचे थे। मैं भी खेल मैदान गया था। वहां सुधीर भाईजी के साथ एक फोटो ली। उसी मैदान की जहां हम साथ-साथ खूब खेले हैं। तेज धूप और दोपहर होने के कारण हम पसीने से लथपथ थे। हमको देखकर भाई राजेश भी पास आ गया। कहने लगा कि मैं भी तो आपकी टीम का हिस्सा रहा हूं। राजेश सेना की नौकरी से सेनानिवृत्त हो चुका है। उस वक्त राजेश का थ्रो बड़ा गजब का हुआ करता था। वह थ्रो इतनी तेजी से फेंकता कि मैदान के एक छोर से दूसरे छोर तक गेंद हवा में ही पहुंचा देता था। एेसा करना हर किसी के बस ही की बात नहीं होती है। बहरहाल, खुशी की बात यह है कि सुधीर भाईजी न केवल खुद खेलते हैं बल्कि खेलने वालों को प्रोत्साहित भी करते हैं। उनका यह जज्बा कायम रहे।

No comments:

Post a Comment