Friday, August 31, 2018

अटल जी : न भूतो न भविष्यति

स्मृति शेष 
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे। उनके निधन के बाद संवेदनाओं का सैलाब, भावनाओं का भूचाल तथा श्रद्धांजलि का सिलसिला इस कदर है कि शायद ही पहले कभी ऐसा देखा गया हो। नेताओं को जी भर के गरियाने वाले इस दौर में शायद ही कोई नेता एेसा लोकप्रिय हुआ होगा, जिसके लिए आज समूचा देश गमगीन है। अपने दिवंगत नेता को सारा देश दल विशेष की राजनीति से ऊपर उठकर अश्रुपूरित श्रद्धांजलि दे रहा है। सोशल मीडिया पर कमोबेश आज हर पोस्ट अटलजी के नाम है। सचमुच देश ने आज एक प्रखर वक्ता व करिश्माई नेता खो दिया। उदारवादी चेहरा, चिंतक, राजनीति का चमकता चेहरा हमारे बीच से हमेशा हमेशा के लिए चला गया है। यह बात दीगर है कि राजनीतिक परिदृश्य से गायब होने बाद अटलजी सुर्खियों में रहे तो मौत की अफवाहों के कारण। साल में तीन चार बार तो उनकी मौत की खबर वायरल हो ही जाती लेकिन अपनी ही कविता मौत से ठन गई की तरह अटल मौत की अफवाहों के सामने अटल रहे, लेकिन इस बार इस जंग में जिंदगी हार गई और मौत जीत गई। 
उनके निधन की खबर से मन विचलित है। राजनीतिक पत्र-पत्रिकाओं को शुरू से पढऩे के कारण राजनीतिक समझ जल्द विकसित हो गई थी। यही कारण था राजनीति में रुचि बढऩे लगी। वाजपेयी की विद्वता, आंखें मूंदकर व सिर हिलाकर बोलने का अंदाज इतना लुभाता था कि मैं कब उनका फैन बना पता ही नहीं चला। टीवी रेडि़यों पर उनके कई भाषण सुने हैं लेकिन दो बार उनको साक्षात सुनने का मौका भी मिला है। सीकर के आईटीआई मैदान में अटलजी की सभा थी। तारीख व सन को लेकर थोड़ा असमंजस है, कि यह 1989 की बात है या फिर 1993 की। खैर, अटल जी को सुनने की उत्सुकता कई दिनों से थी। सभा की जानकारी तो मिल गई थी पर सुनने कैसे जाऊं, यही दुविधा में मन में घर किए हुए थी। आखिर पता चला कि पड़ोसी कस्बे सुलताना से सीकर के लिए बस जाएगी। मैं गांव से सुलताना चला गया और बस में बैठ गया। सीकर में जहां अटलजी की सभा थी, उससे काफी दूर ही वाहनों की पार्किंग दी गई थी, लिहाजा बस से उतर कर पैदल ही सभास्थल की ओर रवाना हुआ। इतनी भीड़ पहली बार देखी थी। भीड़ में धक्के खाता हुआ आखिर मैं भी सभा स्थल पहुंच गया। मैं जिनके साथ गया था, उनको किसी को नहीं जानता था। घर वालों को भी बिना बताए ही निकला था। सभा खत्म हुई तब तक शाम को चुकी थी। मैं भीड़ में धक्के खाता सुलताना की बस को तलाश रहा था। संयोग से बस मिल गई लेकिन तब तक वह अंदर से फुल हो गई थी। अकेला बस की छत पर बैठा। सीकर से उदयपुरवाटी होते हुए रात को बस सुलताना पहुंची। वहां से पैदल गांव आया तब तक रात के दो बज चुके थे। इस बात को लेकर जितनी डांट पड़ी उसका तो कहना क्या लेकिन अटल जी को साक्षात सुनने की हसरत जरूर पूरी कर ली। इसके बाद अटलजी, झुंझुनूं के सेठ मोतीलाल कॉलेज स्टेडियम में विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी के समर्थन में चुनावी सभा को संबोधित करने आए थे, तब उनको सुना। यह शायद 1998 की बात है और तब भाजपा की टिकट पर चुनाव मोहम्मद गुल ने लड़ा था।
बहरहाल, लंबे समय से बीमारी से जूझते हुए अटल आज अनंत में समा गए, लेकिन देश के प्रति उनका योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। वो सबको साथ लेकर चलने वाले नेता थे। दलगत विचारधारों के अलावा व्यक्तिगत जीवन में शायद ही कोई अटल जी का विरोधी होगा। पड़ोसी देश पाक से रिश्ते मधुर बनाने के लिए अटल जी ने हमेशा प्रयास किए। खैर, अटल जी जैसा नेता मुझे अतीत या वर्तमान दौर में कोई नजर नहीं आता है। राजनीति के पुरोधा अटल जी को मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि। वो एक राजनेता के साथ साथ कवि और पत्रकार.भी थे। उनके विराट व्यक्तित्व के लिए इतना ही कहा जा सकता है कि ...
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