Friday, August 31, 2018

बदहाल सौर ऊर्जा संयंत्र

प्रसंगवश
सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने तथा बिजली की बचत करने के मकसद से प्रदेश के ग्राम पंचायत मुख्यालयों व पंचायत समितियों के अटल सेवा केन्द्रों पर लगाए गए सौर ऊर्जा संयंत्र दम तोडऩे लगे हैं। अकेले श्रीगंगानगर जिले में ही पचास फीसदी के करीब संयंत्र उपयोग में नहीं आ रहे हैं। कमोबेश प्रदेश के दूसरे स्थानों पर भी हालात कोई खास संतोष-जनक नहीं कहे जा सकते।
उल्लेखनीय है कि ग्राम पंचायत मुख्यालयों पर संयंत्र लगाने में करीब दो लाख रुपए जबकि अटल सेवा केन्द्रों पर दस लाख रुपए खर्च हुए थे। इस तरह श्रीगंगानगर जिले के 336 ग्राम पंचायत मुख्यालयों व नौ अटल सेवा केन्द्रों पर साढ़े सात करोड़ से भी ज्यादा की राशि खर्च की गई थी। श्रीगंगानगर जैसे हालात कमोबेश प्रदेश के सभी जिलों में हैं। पूरे प्रदेश के परिपे्रक्ष्य में देखें तो मामला और चौंकाता है। प्रदेश में करीब तीन सौ पंचायत समितियां व दस हजार के करीब ग्राम पंचायतें हैं। सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि सभी जगह संयंत्र लगाने में कितनी राशि खर्च हुई। विडम्बना यह है कि जिस मकसद से संयंत्र स्थापित किए गए थे, वह पूरा ही नहीं हो रहा है। संयंत्रों को ठीक करने की उम्मीद की कोई किरण भी नजर नहीं आती है। इन संयंत्रों का भविष्य क्या होगा? इनका रखरखाव कैसे किया जाएगा तथा खराब होने की स्थिति में इनको ठीक कौन करेगा व कैसे करेगा, इसको लेकर भी कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश दिखाई नहीं देते। इन संयंत्रों का रखरखाव करने वाली कंपनी का अनुबंध भी पांच साल तक ही था। वह भी पूरा हो चुका है। सौर ऊर्जा संयंत्रों की सुध न लेना एक तरह से सरकारी राशि का दुरुपयोग जैसा ही है। जिम्मेदारों के अव्यावहारिक व अदूरदर्शिता भरे फैसले के कारण न तो सरकारी राशि का सदुपयोग हुआ और ना ही सौर ऊर्जा से ग्राम पंचायत मुख्यालय रोशन हुए। ऐसे हालात में बिजली बचत की बात तो बिल्कुल ही बेमानी ही हो गई। ऐसे में सौर ऊर्जा संयंत्रों की कहानी एक तरह से 'माया मिली न राम' वाले मुहावरे को ही चरितार्थ कर रही है। सरकार को इस समूचे प्रकरण की न केवल जांच करवानी चाहिए बल्कि इससे सबक भी लेना चाहिए ताकि भविष्य में तात्कालिक वाहवाही के बजाय ठोस काम हों और सरकारी राशि का सदुपयोग हो। तभी आमजन सरकारी योजनाओं से लाभान्वित हो सकेगा।
एक तरफ सरकार वैकल्पिक ऊर्जा को बढ़ावा देने की बात करती है, वहीं दूसरी ओर सौर ऊर्जा संयंत्रों की यह बदहाली है। बहरहाल, सरकार को खराब संयंत्रों को ठीक करने का कोई रास्ता खोजना चाहिए। इनका रखरखाव किस तरह से किया जाए ताकि इनका लाभ लंबे समय तक मिल सके। अन्यथा ये संयंत्र केवल अतीत की कहानी बन कर रह जाएंगे
 
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18 अगस्त 18 को राजस्थान पत्रिका के राजस्थान के तमाम संस्करणों में संपादकीय पेज पर प्रकाशित 

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