Saturday, June 30, 2018

संगीत, शायरी और सरहद-1

पुण्यतिथि पर विशेष
'आंखों का वीजा नहीं लगता, सपनों की सरहद नहीं होती, बंद आंखों से रोज मैं सरहद पार चला जाता हूं, मिलने मेहदी हसन से..। ' प्रसिद्ध गीतकार गुलजार की यह रचना बताती है कि सपनों की कोई सरहद नहीं होती। कुछ इसी तरह के ख्यालात सरहद के उस पार रहने वाले गजल गायक मेहदी हसन के थे। किसी पत्रकार के सवाल के जवाब में उन्होंने एक बार कहा था 'संगीत और शायरी किसी सरहद को नहीं जानतीं। मेरी गज़़लों पर जितना हक़ पाकिस्तान का है, उतना ही हिंदुस्तान का भी है। हिंदुस्तान ने भी मुझे कम प्यार नहीं दिया।' सरहद, शायरी व सपनों की बात इसीलिए क्योंकि 13 जून 2012 को खनकती आवाज का यह फनकार इस दुनिया से रुखसत हो गया था। उनकी पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में उनकी गाई एक गजल मौजूं है। सरहद से इस पार व उस पार उनको मोहब्बत करने वाले लाखों हैं लेकिन हसन साहब के बिना महफिल सूनी हैं। रुमानी आवाज के इस जादूगर को इस दुनिया से विदा हुए छह साल हो गए लेकिन उनकी आवाज गीतों व गजलों में सदा-सदा के लिए अमर है। हिन्दुस्तान में हसन को याद करने की वजह सिर्फ इसीलिए नहीं है वो मकबूल गजल गायक थे, बल्कि इसीलिए भी है कि हसन साहब का जन्म हिन्दुस्तान की सरजमीं पर हुआ था। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के छोटे से गांव लूणा में 18 जुलाई 1927 को जन्मे थे मेहदी हसन। हसन के पिता अजीम खान मंडावा ठाकुर के यहां दरबारी गायक थे, इसीलिए हसन को गीत-संगीत एक तरह से विरासत में मिला था। भारत पाक विभाजन के दौरान हसन पाकिस्तान चले गए तब उनकी उम्र 20 साल थी। भले ही वो पाकिस्तान गए लेकिन हिन्दुस्तान की यादें जिंदगी भर उनके साथ रही हैं। पाकिस्तान जाने के बाद 1978 में वो पहली बार जयपुर में गजल के एक कार्यकम में आए थे। तब उन्होंने जन्मभूमि जाने की इच्छा जताई। तब लूणा तक पक्की सड़क बनी थी। हसन झुंझनूं के डाक बंगले में ठहरे थे।

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