Saturday, June 30, 2018

स्तर सुधरे तो बात बने

बस यूं ही
दृश्य नंबर एक
पिछले साल अगस्त में गांव गया था। इस दौरान गांव के राजकीय बालिका उमा विद्यालय में स्वाधीनता दिवस समारोह देखने चला गया। समारोह के दौरान गांव के लोगों ने प्रतिभावान छात्राओं को दिल खोलकर प्रोत्साहन राशि दी। कई घोषणा भी हुई हैं। बताया गया कि स्कूल में आसपास की ढाणियों से छात्राओं को एक गाड़ी के माध्यम से लाया जाता है जो निशुल्क है। गाड़ी का खर्चा ग्रामीण ही उठाते हैं। समारोह में मुझे भी संबोधित करने के लिए आग्रह किया तो मैंने सुझाव दिया कि सिर्फ छात्राएं ही नहीं बल्कि उन अध्यापकों को भी पुरस्कार दिया जाए जिनका परिणाम शत-प्रतिशत रहता है। इससे पढ़ाई का स्तर सुधरेगा। हालांकि स्कूल प्राचार्य मेरी बात से सहमत नजर नहीं आए और उन्होंने अपने संबोधन में कहा भी कि अध्यापकों को सम्मान की क्या जरूरत है।
दृश्य दो
इसी साल अप्रेल के आखिर में फिर गांव गया तो एक अध्यापक व एक मैडम को बच्चों वाले घरों में दस्तक देते देखा। वे दोनों अभिभावकों को समझा रहे थे कि आप प्राइवेट के ही पीछे क्यों पड़े हैं। बच्चों को सरकारी स्कूल में भेजो। वहां हम मेहनत करते हैं। आप अपने बच्चों को चैक करते रहो। हमारी मेहनत में कोई कमी दिखाई दे तो अभिभावक मीटिंग में आकर अपनी बात रखो। हम सुधार करेंगे। हम दावा करते हैं कि अच्छा परिणाम देंगे। दरअसल, यह सारी कवायद स्कूल में नामांकन बढ़ाने को लेकर थी। मैं इस समूचे वाकये का साक्षी रहा। मैंने भी सरकारी स्कूल का समर्थन करते हुए एक तरह से उनका सहयोग किया लेकिन एक सुझाव भी दिया कि सारे अध्यापक भी अगर अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाने लग जाएं तो माहौल व मानसिकता में बदलाव आएगा।
दृश्य तीन
अभी कल परसों राजस्थान बोर्ड दसवीं का परीक्षा परिणाम आया है। अधिकतर निजी स्कूलों में अव्वल आने वाले विद्यार्थियों का सम्मान हो रहा है। दरअसल, यह प्रचार ही अभिभावकों को बताएगा कि कौनसे स्कूल का परिणाम कैसा रहा है। इसी सम्मान के बीच झुंझुनूं के शहीद जेपी जानू राउमा विद्यालय के एक छात्र को पचास हजार रुपए नकद पुरस्कार देने की जानकारी मिली है। यह राशि विद्यालय स्टाफ ने दी है। स्टाफ ने घोषणा की थी कि जिस बच्चे के 90 प्रतिशत से ऊपर आएंगे उसको पचास हजार तथा 95 प्रतिशत से अधिक अंक आए तो एक लाख रुपए का नकद इनाम दिया जाएगा। संयोग देखिए एक छात्र ने उपलब्धि हासिल की और विद्यालय स्टाफ ने कलक्टर के हाथों से राशि छात्र को दिलवाकर उसका सम्मान करवाया।
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उक्त तीनों दृश्यों में कई तरह की समानताएं भी हैं और विरोधाभास भी हैं। और तीनों में एक-एक मैसेज भी छिपा है। पहले दृश्य में मैसेज है अध्यापकों को सम्मानित करने का। इससे कौन सा अध्यापक कितनी मेहनत कर रहा है? पता चलेगा। अध्यापकों के बीच प्रतिस्पर्धा भी होगी। साथ ही एेसा करने से कमजोर कड़ी का पता लगेगा और उसका समाधान भी होगा। दूसरे दृश्य का मैसेज है सरकारी अध्यापक अपने बच्चों को भी सरकारी स्कूल में पढाएं तो उनको अपनी बात रखने में आसानी होगी। वो अभिभावाकों के सामने खुद का उदाहरण रखेंगे तो निसंदेह अभिभावकों की मानसिकता में बदलाव आएगा। तीसरे दृश्य में मैसेज यह है कि अध्यापक सिर्फ अभिभावकों के भरोसे नहीं रहें। वो खुद भी बच्चों को प्रोत्साहित करने के लिए इनाम आदि कुछ दें ताकि माहौल प्रेरणादायी बने और बच्चों में पढ़ाई के प्रति और अधिक ललक पैदा हो।
दूसरी बात यह है कि सिर्फ आर्थिक प्रोत्साहन ही नहीं बच्चों के सर्वांगीण विकास के प्रयास होने चाहिए। व्यवस्थाओं व सुविधाओं के मामले में भले ही सरकारी स्कूल निजी स्कूलों का मुकाबला नहीं कर पाए लेकिन वो पढ़ाई का स्तर तो सुधार ही सकते हैं। मान भी लिया जाए सुविधाओं व व्यवस्थाओं के मामले में सरकारी स्कूल निजी स्कूलों के समकक्ष नहीं हैं। वो उनके आगे पीछे कहीं नहीं टिकते है लेकिन बात सरकारी व निजी स्कूलों के अध्यापकों को मिलने वाले वेतन की जाए तो निजी स्कूल के अध्यापक आसपास ही नहीं ठहरते। खैर, यह लंबी बहस का विषय है लेकिन सोचने पर मजबूर करता है। अभिभावक कैसा भी हो। आर्थिक रूप से संपन्न हो, औसत हो या निम्न तबके का। अधिकतर अभिभावकों की पहली पसंद स्कूल के पढाई के स्तर पर रहती है। सुविधाओं व व्यवस्थाओं को वह बाद में देखता है उसका पहला ध्यान वहां के शैक्षणिक माहौल पर रहता है। हालांकि कई सरकारी स्कूलों में वाहन, भोजन, स्कूल गणवेश, पाठयपुस्तकें आदि का खर्च भी ग्रामीण उठाते हैं। फिर भी स्कूल में पढ़ाई का स्तर सुधारने का जिम्मा तो अध्यापका का ही है। वो पढ़ाई का स्तर सुधारेंगे तो निसंदेह नामांकन के लिए उनको घर-घर जाने की आवश्यकता नहीं होगी। विद्यार्थी व उनके अभिभावक खुद ब खुद चलकर स्कूल आएंगे।

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