Saturday, June 30, 2018

दोहे -1

इन दिनों एक साहित्यिक व्हाहटस एप ग्रुप से जुड़ा हुआ हूं। वहां रोज एक विषय पर अपनी रचना लिखनी होती है भले ही वह दोहा हो, छंद हो, सोरठा हो या फिर कविता...। वैसे अधिकतर रचनाएं राजस्थानी में.ही लिखी जाती हैं। कल का विषय था, रूंख आपणा राम है। इतना सोचने का रोज तो वक्त नहीं.मिलता लेकिन कल मैंने भी तुकबंदी कर कुछ राजस्थानी तो कुछ हरियाणवी में दोहे लिखने का प्रयास किया। आप भी देखें.....
1.
रूंखा री थे करो रुखाली
लागै न कोई दाम...
ठंडी ठंडी छांया आं की
रूंख आपणा राम.....
2.
रूंख आपणा राम है
रूंख ही सांचा मीत
रूंखा सूं ही जीवन है
रूंखा सूं ही संगीत
3.
रूंखा रो मैं भायलो
राखूं रूखां सूं प्रीत
रूंख आपणो राम है
रूख ई म्हारो गीत
4.
रूंख लगाऊं धन्य हो जाऊं
पुण्य कमाऊं चार धाम रो
रूंख आपणो राम सदा सूं
सबनै सहारो इण नाम रो
5.
आओ साथ्यो रूंख लगावां
रूंख आपणो राम है
दो बर नही मिले जिंदगानी
रूंख ही चारों धाम है...
6.
मिलकै पेड़.लगा लो भाई
सब तै बड़ा ओ काम सै
शीतल छाया दे ठंडी हवा
रूंख ही आपणा राम सै
7.
तेरा कै घट ज्यागा बंदे
क्यूं तू जग मं आया
रूंख आपणा राम सै यारा
क्यूं मोहमाया मं भरमाया
8.
कै बिगड़ैगा माणस तेरा
किमीं पुण्य तू भी कमा ले
रूंख आपणा राम सै भाई
बात या तू मन मं रमा ले

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