Saturday, June 30, 2018

इक बंजारा गाए-36


श्रीगंगानगर शहर ही नहीं समूचे जिले में शराब प्रिंट रेट से अधिक पर बिक रही है। यह बिक्री कोई आज नहीं बल्कि जब से यह ठेके शुरू हुए तब से है। कई बार शिकायतें हुईं, जांच भी हुई लेकिन प्रिंट रेट से अधिक कीमत पर बिक्री नहीं रुकी। रुकती भी कैसे, आबकारी विभाग ने लक्ष्य पूरे करने के चक्कर में शराब ठेकेदारों को अभयदान दे रखा है। पिछले दिनों एक जने ने इस बाबत संपर्कपोर्टल पर शिकायत की लेकिन वहां से भी वही होना था, जो पहले हुआ। विभाग की दुविधा यह थी कि वह सच स्वीकार करे तो फंसता है, लिहाजा उसने प्रिंट रेट से अधिक पर बिक्री के मामले को सिरे से ही नकार दिया। बिल्ली ही जब दूध की रखवाली करेगी तो दूध कितना और कैसा सुरक्षित रहेगा, सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।
बदले-बदले सुर
परिषद वाले नेताजी लगता है अपने दल में वापसी से नाउम्मीद हो चुके हैं। कभी पार्टी को अपनी मां की संज्ञा देने वाले नेताजी को अब पार्टी से किसी सकारात्मक इशारे की उम्मीद नहीं रही है। नेताजी ने वापसी के तमाम प्रयास कर लिए लेकिन बात अभी तक नहीं बनी। अब नेताजी ने पाला बदल लिया है और पार्टी के खिलाफ बगावती सुर अपना लिए हैं, लेकिन यहां तीर खुद चलाने के बजाय दूसरा कंधा देखा गया है। पिछले ही दिनों नेताजी के निजी सचिव के हवाले से एक प्रेस नोट जारी हुआ है। इसमें नेताजी ने राज्य सरकार को जन विरोधी बताया है। नेताजी ने प्रदेश सरकार पर विकास के लिए बजट न देने का आरोप भी लगाया है। खैर, नेताजी के सुर बदलने के पीछे कोई न कोई राज जरूर है।
श्रेय की लड़ाई
नशामुक्ति के मामले में श्रीगंगानगर के एनजीओ को राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार मिला है। वैसे इस एनजीओ के सर्वेसर्वा का मीडिया मैनेजमेंट कैसा है यह किसी से छिपा नहीं है। शायद ही ऐसा कोई दिन होगा जब एनजीओ के मुखिया चर्चा में न हो। खैर, इस एनजीओ ने किसी तरह के काम किए और वो सम्मान के दायरे में कैसे आए यह अलग विषय है लेकिन सोशल मीडिया पर एक चर्चा पर जोरों पर चली। राष्ट्रीय स्तर के सम्मान में नाम एनजीओ के मुख्य कर्ताधर्ता का न होकर उनके नीचे के किसी पदाधिकारी का है। ऐसा किसी के साथ भी हो तो भला कैसे स्वीकार होगा। और तो और पुरस्कार भी नीचे वाले पदाधिकारी को ही मिल गया। सत्तारूढ़ दल में वापसी करने वाले नेताजी के नाम से इस पुरस्कार के मामले में चटखारे खूब लिए जा रहे हैं। मामला श्रेय का जो था पर नेताजी चूक गए।
सेठजी का बचपन
मेडिकल कॉलेज वाले सेठजी जिनको उनके विरोधी अक्सर सपनों का सौदागर भी कहते हैं, एक बार फि र से चर्चा में हैं। इस बार चचाज़् का विषय है सेठजी का एक टीवी चैनल को दिया गया साक्षात्कार। एंकर के रूप में उनके सामने एक युवक व युवती ने जिस अंदाज में सवाल किए सेठजी ने भी उसी अंदाज में उत्साहित होकर जवाब दिए। मसलन, मधुमक्खियों के छत्ते शहद खाने, जोहड़ में भैंस को नहलाने, पेड़ से जोहड़ में छलांग लगाने जैसे संस्मरण सेठजी बड़े चटखारे के साथ सुनाते हैं। हंसी तो उस वक्त नहीं रुकती जब सेठजी काले कुत्तों को गुलगुले खिलाने पर इतने उत्साहित हो जाते है जब खुद को डॉगवाच की संज्ञा से यह साक्षात्कार किसी कॉमेडी फिल्म से कम नहीं लगता।


राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 28 जून 18 के अंक में प्रकाशित

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