Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-8


कमोबेश यही कहानी हिन्दी में लिखे निर्देश की थी। बानगी देखिए... 'जुता, चपल, बाहर की खाना, चमड़े की सामग्रियों, मादक द्रव्य, क्यामेरा, छत्री, मोबाइल फोन और विस्फोटक सामग्री इत्यादि श्री मंदिर के अंदर लेना मना है।' इस निर्देश से अर्थ का अनर्थ हो रहा था। कहने का आशय है कि उक्त सभी चीजें मंदिर के अंदर ले जाना मना है। लेकिन निर्देश के हिसाब से तो यह जाहिर हो रहा है कि उक्त चीजें आप बाहर से खरीद सकते हैं लेकिन मंदिर में लेने पर मनाही है। क्यामेरा का मतलब यहां कैमरे से है और छत्री से तात्पर्य छतरी/ छाता से है। अब बात मुख्य दरवाजे पर तैनात सुरक्षाकर्मियों की। यह लोग तलाशी लेने में केवल औपचारिकता ही बरतते हैं। हां, किसी के हाथ में मोबाइल दिखाई देता है तो रोक लेते हैं और कोई जेब में रखकर चला गया तो कोई पूछने वाला नहीं है। चूंकि फोन मेरे हाथ में था इसलिए सुरक्षाकर्मी को दिखाई दे गया। वह बोला, मोबाइल बाहर छोड़ दीजिए। ऐसे में धर्मसंकट खड़ा हो गया क्या किया जाए। साथ में गए गोपाल जी शर्मा ने रास्ता सुझाया बोले, आप लोग पहले दर्शन करके आ जाइए। हम बाद में चले जाएंगे। मेरा एवं धर्मपत्नी का फोन उनको देकर हमने मंदिर में प्रवेश किया। इस दौरान बहुत सी महिलाएं पर्स लटकाए हुए दिखाई दी तो कई महानुभव ऐसे भी थे जो बाकायदा बेल्ट लगाए हुए थे। लेकिन इनको कोई रोकने या टोकने वाला नहीं था। बेल्ट तो मैंने भी लगा रखा था लेकिन किसी ने कुछ कहा ही नहीं। अंदर प्रवेश करने के साथ सीढिय़ों पर चिपचिपाहट सी महसूस हो रही थी। मुख्य मंदिर तक पहुंचने तक आजू-बाजू में कई छोटे-छोटे मंदिर थे। कहीं कोई तिलक लगाकर आशीर्वाद दे रहा था तो कहीं कोई छड़ी हाथ में लिए खड़ा था। श्रद्धालु बड़े आराम से उनके सामने सिर झुका रहे थे। और वो छड़ी को सिर पर धीरे से छुआ भर देते जैसे आशीर्वाद दे रहे हों। लोग ऐसा करवाकर खुद को धन्य समझ रहे थे। चूंकि हम बिना किसी गाइड और पण्डे के अंदर पहुंचे थे, इस कारण हर तरफ के नजारे को किसी जिज्ञासु की तरह देख रहे थे और साथ में समझने का प्रयास भी कर रहे थे। हम मंदिर के बांयी तरफ से आगे बढ़ रहे थे कि पान चबाता हुआ हट्टा-कट्टा एक पण्डा हमारी तरफ लपका। आंखों में काजल और हल्की दाढ़ी में सचमुच वह खतरनाक किस्म का लग रहा था। मुंह में पान की पीक को अंदर रखे-रखे ही वह बड़बड़ाया। प्रसाद ले लो, प्रसाद। मंदिर में अगर आपको प्रसाद चढ़ाना है तो आप बाहर से लेकर नहीं जा सकते। मंदिर परिसर के अंदर ही आपको प्रसाद खरीदना पड़ता है। प्रसाद से पहले रसीद कटवानी पड़ती है। वह पण्डा हम को रसीद काटने वाले कक्ष तक लेकर चला गया। अंदर काउंटर पर बैठे शख्स को उसने इशारा किया तो उसने झट से एक प्रिण्टेड सूची मेरे सामने रख दी। प्रसाद की सूची और उसकी कीमत देखकर मेरी आंखें फटी की फटी रह गई। अलग वैरायटी और सभी की उसी अनुपात में कीमत..। मैंने बिलकुल अनजान बनते हुए काउंटर वाले शख्स से पूछा.. प्रसाद लेना जरूरी है क्या? तो वह पलटकर बोला दर्शन करना है तो... जारी है।

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