Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-15

 
और कीमत केवल पांच रुपए कैसे..? चाय वाला बोला साहब.. मैं इसके आपसे सात या आठ रुपए भी वसूल सकता हूं लेकिन अगर ऐसा किया तो आप चाय की मात्रा में कटौती कर देंगे। मतलब छह की आठ में करवा लेंगे या दो की पांच में। पांच रुपए वाजिब कीमत है, इसलिए परिवार के सभी सदस्य कटौती न करवाकर पूरी चाय ही पीना चाहते हैं। वाकई चाय वाले का दर्शन भी गजब का था। उसकी इस शैली में हम खासे प्रभावित हुए। पकोड़े वगैरह भी उसी से पैक करवा लिए। झोपड़ी में बाकायदा बिजली वाला इनडेक्स चूल्हा भी लगाकर रखा था उसने। पकोड़े बनाने का काम स्टोव पर और चाय आदि को गरम करने में चूल्हे की मदद ली जा रही थी। करीब नौ बजने को आए थे। सूर्यदेव बादलों के बीच चुपके से झांके। अनायास ही नजर आसमान की तरफ गई और मोबाइल से नजारा कैद किया। चाय पीने के बाद बच्चे एक बार फिर बीच की तरफ दौडऩे लगे। बड़ी मुश्किल से उनको डांट-डपट कर ऑटो तक लाया। इस बीच तय हुआ कि सभी लोग नारियल का पानी पीएंगे। नारियल वालों की समझ भी गजब की होती है। वे नारियल देखकर ही बता देते हैं कि किस में केवल पानी है। किसमें मलाई में है और किस में अंदर से पकना शुरू हो गया है। हम में से किसी ने मलाई वाला नारियल लिया तो किसी ने केवल पानी वाला। सुबह-सुबह नारियल पानी पीने की मेरी इच्छा नहीं हुई, इसलिए मैंने पीने वालों को देखकर ही संतोष कर लिया।
इसके बाद हम लोग कोणार्क मंदिर की तरफ बढ़ गए। चंद्रभागा से कोणार्क मंदिर की दूरी यही कोई दो या तीन किलोमीटर ही होगी। सपाट एवं चिकनी सड़क के दोनों तरफ नारियल के पेड़ तथा वहां छाई हरितिमा एक अलग ही प्रकार की सुकून दे रही थी। कुछ लोग तो चंद्रभागा से कोणार्क तक पैदल ही चले जा रहे थे। नैसर्गिक सौन्दर्य को देखकर मैं बेहद रोमांचित था। आखिर प्रकृति प्रेमी जो ठहरा। बचपन में खूब पेड़ लगाए हैं। आस पड़ोस एवं जान-पहचान वाले भी पौधारोपण के लिए मेरे को ही बुलाते थे। कहते थे आपके हाथ से लगा पौधा जलता नहीं है, जल्दी पनप जाता है। यकीन मानिए प्रकृति की गोद में अलग प्रकार की आनंद की अनुभूति होती है।
राजू ने फिर ऑटो के ब्रेक लगाए..। बोला.. सर, कोणार्क आ गया है। आगे ऑटो नहीं जाएगा। यहां से आपको पैदल ही जाना पड़ेगा। हम उतर कर सूर्य मंदिर की तरफ बढऩे लगे। बचपन से जिस मंदिर की ख्याति किताबों में पढ़ी, आज उसको साक्षात देखने का अवसर जो मिला था। मन बेहद रोमांचित था। बस जल्द से जल्द हम मंदिर तक पहुंचना चाह रहे थे। मंदिर जाने वाले रास्ते पर कई तरह की दुकानें सजी थी। छोटे से लेकर बड़ों तक का हर सामान था। किसी दुकान पर तो नाना प्रकार की टोपियों व हैट आदि रखे थे। चश्मों की भी कई दुकानें सजी थी। इसके अलावा बच्चों के खिलौने, कोर्णाक मंदिर की मूर्तियां, बैग, सौन्दर्य प्रसाधन संबंधित साजोसामान तो कमोबेश हर दुकान पर उपलब्ध था। ... जारी है।

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