Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-19

 
इसके बाद हम चिलका झील के लिए रवाना हो गए। रास्ते में कई गांव आए। हाल ही बस्तर जाकर आया था। वैसे भी ओडिशा और छत्तीसगढ़ पड़ोसी राज्य हैं, इसलिए दोनों की संस्कृति और पहनावे में समानता होना स्भाविक भी है। पुरुष केवल धोती (लूंगी) ही पहने हुए थे। अर्धनग्न। महिलाएं भी यहां अकेली साड़ी ही पहनती हैं, लेकिन उनका पहनावा इस प्रकार का होता है कि पूरा शरीर ढक जाता है। सबसे खास बात यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में बालिकाएं पर साइकिलों घूमती हैं। शायद स्कूलों में बालिकाओं को साइकिल देने वाली योजना का कमाल है। बहुतायत में मकान कच्चे ही दिखाई दे रहे थे। रास्ते में एक दुकान दिखाई दी तो हमने ऑटो सड़क के बगल में रुकवाकर दोपहर का भोजन पैक करवा लिया। तय किया इसको चिलका पहुंचने के बाद ही ग्रहण किया जाएगा। इस रास्ते पर वाहनों की चहल-पहल ज्यादा थी। यह कोणार्क मार्ग के तरह सूना-सूना नहीं था।
बड़े वाहनों की आवाजाही भी खूब थी। ऑटो में 50 किलोमीटर की दूरी के सफर में बच्चों को परेशान होना लाजिमी था। बार-बार पूछ बैठते अब कितनी दूर और है, और हम उनको सिवाय यह कहने कि बस आने ही वाला है, दिलासा देते रहे। ऑटो अपनी रफ्तार से दौड़ा जा रहा था। अचानक सड़क के दोनों तरफ खेतों में पानी ही पानी दिखाई देने लगा। बीच-बीच में कहीं जमीन दिखाई दे रही थी। अचानक राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रावतसर कस्बे व श्रीगंगानगर जिले के श्रीबिजयनगर की तस्वीर जेहन में आई। इन दोनों स्थानों को मैंने प्रत्यक्ष एवं कई बार देखा है। यहां का जलस्तर इतना ऊपर हो गया है कि पानी जमीन से भी ऊपर आ गया है। इसको वहां की स्थानीय भाषा में सेम कहते हैं। यह पानी इतना खराब व दूषित होता है कि पेड़ों पौधों का दुश्मन होता है। इस पानी की जद में आने से अधिकतर पेड़ सूख जाते हैं। आदमी भी अगर भूल से इसका सेवन कर ले तो हैपटाइटिस बी होने की आशंका रहती है। मैंने सोचा हो न हो यह सेम जैसी ही कोई समस्या है, लेकिन थोड़ा सा आगे चलने पर मैंने देखा कि पानी में कई हरे-भरे पेड़ खड़े हैं। खेतों में मछलियों के एक-दूसरे के खेत में जाने से रोकने के लिए जाल लगाए गए हैं। यह देखकर यकीन हुआ कि यह पानी दूषित नहीं हो सकता। होता तो पेड़ सुरक्षित नहीं बचते।
इतना ही मैंने यहां की भैंसों में एक अजीब ही तरह की खासियत देखी। ऐसी बात जो राजस्थान, हरियाणा या पंजाब में नहीं देखी। यहां की भैंस पानी के अंदर मुंह डालकर अंदर उगी वनस्पति खा रही थी। ठीक सूअर की तर्ज पर। मैं हतप्रभ था। सोच रहा था कि किस प्रकार प्रकृति के हिसाब जानवर भी अपने आप को ढाल लेते हैं। हालांकि भैंस पानी में ज्यादा देर तक मुंह नहीं रख पा रही थी लेकिन जितनी भी देर वे ऐसा कर रही थी हमारे लिए बिलकुल नया एवं अनोखा था। हम चिलका की तरफ बढ़े जा रहे थे। अचानक राजू ने मुख्य सड़क को छोड़कर एक टूटी-फूटी सड़क पर ऑटो को दौड़ा दिया। ...जारी है।

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