Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-26

 
मौसम वाकई सर्द था, ऐसे में मेरी हिम्मत पानी में घुसने की नहीं हो रही थी। वैसे मेरे को फोटोग्राफी करने में ही आनंद आ रहा था। सूर्योदय होने ही वाला था, लेकिन इससे पहले ही बीच पर चहल-पहल बढ़ गई थी। हल्की सी कंपकंपी छूटने लगी थी। कभी कैमरे को जेब में डालकर दोनों हाथों को परस्पर रगडऩे का उपक्रम करता तो कभी तेजी से चहलकदमी। वैसे इतनी भी सर्दी नहीं थी कि सहन नहीं की जाए चूंकि मैं पानी में नहीं था, नहीं तो सर्दी नहीं लगती। बच्चे मस्ती करने में मशगूल थे। बादलों के बीच सूर्यदेव हल्के से झांके तो मैंने नजारा कैमरे में कैद कर लिया। वाकई समुद्र के किनारे सूर्योदय का नजारा बड़ा ही मनोहारी होता है। बच्चे और खेलना चाह रहे थे लेकिन वक्त इजाजत नहीं दे रहा था। मैंने जोर से आवाज लगाई तो छोटा बेटा एकलव्य बाहर आया। बाहर आते ही वह कांपने लगा था। वैसे नहाते-नहाते उसके होठ नीले हो चुके थे लेकिन वह लोभ संवरण नहीं कर पा रहा था और सर्दी को बर्दाश्त करते हुए नहा रहा था। खैर, बाहर आते ही उसको गर्म कपड़ा ओढ़ाया और एक कप चाय पिलाई तो वह थोड़ा सामान्य हुआ। इसके बाद एक-एक करके सब बाहर आ गए और तत्काल होटल की तरफ दौड़े। होटल में सभी ने बारी-बारी से स्नान किया। तैयार होकर नीचे आए। होटल वाले का हिसाब किया और इसके बाद राजू से रेलवे स्टेशन छोडऩे के लिए कहा। वैसे तय कर लिया गया था कि सामान रेलवे के लैगेज रूम में जमा करवाकर दिन भर पुरी के शेष रहे मंदिरों के दर्शन करेंगे। स्टेशन पहुंचे तो राजू ने कहा कि उसका एक किराया आ गया है, सामान जमा करवा दो और फोन कर देना, वह लौट आएगा। हमने स्टेशन के लैगेज रूम में सामान जमा करवाया। वहां बताया गया कि सभी सामान के ताला होना चाहिए, तभी सामान जमा होगा। मैं तत्काल स्टेशन से एक दुकान से छोटे तीन ताले खरीद लाया। इसके बाद सामान की तरफ से निश्चिंत होकर हम केन्टीन पहुंचे। भर पेट नाश्ता करने के बाद स्टेशन से बाहर निकले।
अब हमने राजू को फोन करने के बजाय वहीं स्टेशन के आगे खड़े ऑटो वाले से जगन्नाथ मंदिर के पास छोडऩे के लिए कहा। उसने किराया पचास रुपए बताया तो हम चौंक गए। हमें राजू की शराफत पर संदेह होने लगा था। भोली सी सूरत बनाकर करीब दिन तीन वह हमारे साथ रहा था और उसने जैसा किराया मांगा वह दिया.. उसके बातचीत के अंदाज पर। खैर, यहां सबक यही मिला कि किसी की सूरत या बातचीत से प्रभावित हुए बिना दो तीन जगह और मोलभाव करने में कोई हर्ज नहीं है। हमने उसी ऑटो से पुरी शहर के सभी मंदिर दिखाने का किराया पूछा तो उसने 450 रुपए बताए। हमने उससे ज्यादा मोलभाव नहीं किया और मंदिर आ गए। वास्तव में किसी जगह की हकीकत देखनी हो तो दिन में ही जाना चाहिए। मंदिर के बाहर तो जो चौड़ा मार्ग है, इस पर कतार से दीन-हीन व निशक्त भिखारी बैठे थे। यह आलम सड़क के दोनों तरफ था। पुरी के पण्डे ही नहीं आम लोग भी पान खाने के शौकीन कुछ ज्यादा ही हैं। .... जारी है।

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