Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-21

 
उसके फूले हुए नथूने इस बात की गवाही दे रहे थे। होटल से हम सीधे नारियल वाले के पास पहुंचे और नारियल पानी पीया। मैंने भी यहां इस यात्रा में पहली बार नारियल लेकर पानी पीया था। इतने में राजू हमारे पास आया बोला.. साहब चलो कुछ रियायत करवा देता हूं। हमने कहा कि नहीं अब रियायत नहीं करवानी..ढाई बज गए हैं। लौटते-लौटते ही पांच बज जाएंगे, इसलिए आप तो ऐसा करो कि अब यहां से चलो, लेकिन राजू जिद पर अड़ा रहा। उस वक्त मैं यही सोच रहा था कि 1850 रुपए प्रत्येक परिवार के हैं और नियम भी है लेकिन काउंटर वाला हम सब को एक ही परिवार नहीं मान रहा। मुश्किल से दो घंटे के नौकाविहार के लिए 1850 रुपए देना मेरा दिल गवारा नहीं कर रहा था। अचानक गोपाल जी ने बताया कि बन्ना जी, 1850 तो हम सभी के हैं। खैर, मोलभाव अपने चरम पर था। काउंटर वाला नियमों का हवाला देकर तथा ठेकेदार के डर से मोलभाव से डर रहा था। आखिरकार राजू ने मध्यस्थता करते हुए अप्रत्याशित रूप से मामला 13 सौ रुपए में तय करवा दिया। हमने भी नौकाविहार के तय रूट में कुछ कटौती कर दी थी। दरअसल राजू का गांव भी चिलका झील के पास ही था। इसलिए वहां अधिकतर लोग उसकी जान-पहचान के थे। यहां से टिकट लेने के बाद हम नाव रवानगी वाले स्थान पर पहुंचे। वहां दो चरणों में टिकट को चैक करवाने के बाद हमको नाव का नम्बर दिया गया। संतुलन बनाए रखने के लिए नाव वाले ने अपने हिसाब से हमको बिठाया। जनरेटर में एक जरीकेन तेल डालने के बाद उसने उसे स्टार्ट किया। बच्चे रोमांच से चिल्ला रहे थे। धीरे-धीरे में हम उस जगह पहुंच गए जहां सिर्फ पानी ही पानी था। धरती का कहीं पर कोई छोर दिखाई नही दे रहा था। गोपाल जी ने तत्काल कैमरा निकाला और लगे क्लिक पर क्लिक करने। बीच-बीच में मैंने भी कुछ फोटोग्राफ्स खींचे। अचानक एक द्वीप दिखाई दिया..। मांझी ने नाव की दिशा उस तरफ मोड़ दी है और द्वीप के किनारे पर ले जाकर रोक दी। मैं जैसे ही नीचे उतरने के लिए आगे बढ़ा नाव वाले टोक दिया, बोला.. आप यहीं बैठिए.। सामने वाला नाव में ही आ जाएगा। इसके बाद एक व्यक्ति नाव में चढ़ा। उसके पास चाय के भगोने जैसा पात्र था, उसके ऊपर जाल लगा था। अंदर देखा तो लाल रंग का केकड़ा था। उसके छोटे-छोटे बच्चे भी थे। केकड़े को देख बच्चे बेहद उत्साहित हो रहे थे।
इसके बाद एक दूसरा युवक आया। पूछने लगा आप किस भाषा में जानने चाहेंगे। हमने जब हिन्दी के लिए अपनी सहमति दी तो वह टूटी-फूटी हिन्दी में हमको समझाने लगा। वह युवक सीप से भरा एक पात्र लेकर आया। वह हमको सीप से मोती निकालने की प्रक्रिया समझा रहा था। उसने भी पात्र हम सब के बीच में रखा और एक सीप उठाई, उसको तोड़ा तो अंदर से गाढ़ा पानी निकला। उसने सीप को दो भागों में विभक्त कर दिया लेकिन अंदर कुछ नहीं था। इसके बाद दूसरी सीप उठाई और फिर ... जारी है।

No comments:

Post a Comment