Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-25

 
राजू को कह दिया था कि किसी भोजन की दुकान के पास ऑटो को रोक दे। शहर के बीचोबीच राजू ने ऑटो रोक दिया। इसके बाद हमने भोजन पैक करवाया और होटल के लिए रवाना हो गए। होटल पहुंचने के बाद राजू को अगले दिन सुबह रेलवे स्टेशन छोडऩे की कहकर हम अपने कमरों की तरफ बढ़ गए।
जेहन में अब भी चिलका ही घूम रही थी। वैसे चिलका भारत की सबसे बड़ी एवं विश्व की दूसरी बड़ी झील है। यह 70 किलोमीटर लम्बी और 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह कुल 11 सौ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली हुई है। दरअसल चिलका समुद्र का ही हिस्सा है लेकिन महानदी के द्वारा लाई मिट्टी के कारण यह समुद्र से अलग हो गई है। चिलका में अनेक छोटे-छोटे द्वीप हैं, जो बेहद खूबसूरत है। चिलका मछली पकडऩे का भी बड़ा केन्द्र है। यहां मछलियों की करीब 225 प्रजातियां पाई जाती हैं। सर्दी के मौसम में यहां विदेशी पक्षी लाखों की संख्या में प्रवास करने आते हैं। थोड़ी सी जानकारी जुटाई तो पता चला कि चिलका के तट पर मछुआरों के करीब 145 गांव हैं। इन गांवों में लगभग ढाई लाख मछुआरे निवासरत हैं। सूर्योदय होने के साथ ही यहां हजारों की संख्या में मछुआरे चिलका में प्रवेश करते हैं। वैसे चिलका में हर साल रिकार्डतोड़ मछली उत्पादन होता है। बताया गया है कि चिलका
झील छोटी-बड़ी करीब 52 नदियों का जल अपने में समेटे हुए हैं। खास बात यह है कि चिलका मीठे पानी की झील है। समुद्र की तरफ वाला पानी जरूर नमकीन है।
इधर, होटल में भोजन करने के बाद सोने का उपक्रम करने लगे, चूंकि क्रिसमिस का दिन था, इसलिए बड़ी संख्या में पहुंचे पर्यटक न केवल हो हल्ला कर रहे थे बल्कि पटाखों एवं आतिशबाजी का लुत्फ भी उठा रहे थे। देर रात पटाखों का शोरगुल होता रहा लेकिन हम लोग थकान से इतने चूर थे कि कब आंख लगी पता ही नहीं चला। होटल वाले को रात को ही बोल दिया था कि चेक आउट सुबह आठ की बजाय साढ़े नौ बजे तक करेंगे। बड़ी मुश्किल से वह तैयार हुआ था। खैर, सुबह फिर जल्दी उठकर पहले तो सारे बिखरे सामान व कपड़ों को व्यवस्थित किया। सिर्फ जरूरत वाले कपड़े ही ऊपर रखे, बाकी सामान व्यवस्थित करके जमा दिया ताकि लौटने पर होटल जल्दी से खाली किया जा सके। सामान जमाने के बाद हम होटल से निकले। बच्चे तो जैसे इंतजार में ही थे। दौड़ते हुए समुद्र तक पहुंचे और घुस गए पानी में। बादलवाही होने एवं हल्की हवा चलने के कारण पिछले दो दिनों के मुकाबले इस दिन कुछ ज्यादा सर्दी थे, लेकिन बच्चों के हौसले के आगे वह हार गई थी। धर्मपत्नी भी तैयारी के साथ गई थी लिहाजा वह भी लहरों से अठखेलियां करने लगी, हालांकि वह ज्यादा अंदर तक नहीं गई। इधर गोपाल जी, आज पूरे रंग में थे। अपनी धर्मपत्नी के साथ वे करीब तीस-फीट अंदर तक चले गए थे। मैं बाहर खड़ा उनको कैमरे में कैद करने की कोशिश कर रहा था कि लेकिन दूरी ज्यादा थी, लिहाजा जूम करके फोटो खींचने पड़े। ... जारी है।

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