Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-16

 
खिलौनों को देख कर बच्चों को मचलना स्वाभाविक था, लेकिन समझाने पर वे मान गए। लेकिन धर्मपत्नी, गोपाल जी एवं उनकी धर्मपत्नी एक काजू की दुकान पर रुक गए। ओडिशा में काजू उपेक्षाकृत सस्ता है। बस इसी सस्ते की मानसिकता ने उनको मोलभाव करने पर मजबूर कर दिया। दाल भात में मूसलचंद बनते हुए मैंने धर्मपत्नी को टोक दिया.. कि मैं काजू खाता ही नहीं हूं तो फिर क्यों ख्वामखाह ही खरीददारी की जा रही है, लेकिन वो मानने को तैयार ही नहीं.. बोली.. आप नहीं खाते तो क्या बच्चे तो खाते हैं। जवाब सुनकर मैं निरूतर था। अचानक सभी को पता नहीं क्या सूझी और सब बिना खरीददारी किए हुए आगे बढ़ गए। मैं मन ही मन अपनी पीठ थपथपा रहा था कि आखिर मेरे टोकने का असर हो गया। करीब आधा किलोमीटर दूर ही उतार दिया था ऑटो वाले, क्योंकि भीड़ भाड़ न हो इस लिहाज से पार्किंग की व्यवस्था वहीं कर दी गई थी। आगे बढ़े तो एक फोटोग्राफर बहुत सारी फाइल फोटो लिए हमारे साथ हो लिया.. और फोटो खिंचवाने का आग्रह करने लगा। हम उसको मना करते रहे लेकिन वह पीछा छोडऩे को तैयार ही नहीं। आखिरकार टिकट खिड़की आ गई। वहां से टिकट लेने के बाद हम आगे बढ़ गए।
जबरदस्त जन सैलाब उमड़ा हुआ था। भीड़ ज्यादा होने की प्रमुख वजह शीतकालीन अवकाश और साल का अंतिम सप्ताह भी था। अधिकतर लोग तो नए साल का जश्न मनाने के मकसद से ही पहुंचे थे। लाइन में लगकर हमने मंदिर परिसर में प्रवेश किया। पत्थरों पर गजब की नक्काशी। विशालयकाय पत्थरों को उकेरी गई कलाकृतियों को देख मेरी आंखें फटी की फटी रह गई। तय नहीं कर पा रहा था कि क्या देखूं और क्या छोडूं। अंदर घुसते ही बच्चों का फोटो सेशन शुरू हो गया था। वह फोटोग्राफर अब भी हमारे साथ ही था। आखिरकार साथी गोपाल शर्मा ने उसको कह दिया। इसके बाद उसने बच्चों से कई तरह के एंगल बनवाए फिर ग्रुप फोटो भी खींचे। वैसे कोणार्क के फोटोग्राफरों का एक एंगल सर्वाधिक लोकप्रिय है। चाहे छोटे हों या बड़े,वे एक स्थान विशेष से हाथ की मुद्रा इस प्रकार से बनवाते हैं, जिससे आभास होता है कि मंदिर की शिखर को आपने अपने हाथ से पकड़ रखा है। दोनों बच्चों ने भी उसी अंदाज में फोटो खिंचवाया। इसके बाद बाकी सभी को नीचे छोड़ मैं मंदिर की सीढिय़ों से ऊपर चढ़ गया। चारों तरफ घूमकर बारिकी से हर जगह का अवलोकन किया। वैसे मंदिर बहुत ही भव्य एवं विशाल है लेकिन इसको बाहर से ही घूमकर देखा जाता है। अंदर जाने का रास्ता मुझे तो कोई दिखाई नहीं दिया। एक तरफ जीर्णोद्धार काम भी चल रहा था। उस तरफ पर्यटकों का जाना प्रतिबंधित था। सूर्य मंदिर के चारों तरफ हरियाली खूब है जो एक बड़े पार्क का आभास देती है और थके मांदे पर्यटकों को सुस्ताने के लिए सुकून भी। वैसे मंदिर शिल्प कला का बेजोड़ नमूना है। कोणार्क मंदिर में पत्थरों पर अद्भुत नक्काशी के बारे में रविन्द्रनाथ टेगौर ने भी कहा है कि कोणार्क में पत्थरों की भाषा मनुष्यों की भाषा से श्रेष्ठतर है। ... जारी है।

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