Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-24

 
पछतावा था लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता है। उस काजू वाले को पता नहीं क्या-क्या उपमाए दी जा रही थी। कुछ बोलकर तो कुछ अंदर ही अंदर। वैसे अंदर ही अंदर कोसने वाली उपमाएं ज्यादा थीं, क्योंकि मामला ही ऐसा ही था कि हर किसी के साथ साझा भी नहीं किया जा सकता था। बच्चे और हम सब काजू खा रहे थे। इस दौरान बीच-बीच में चेहरों पर आती मुस्कान से समझा जा सकता था कि इसमें वास्तविकता ना होकर बनावटीपन ज्यादा है। खैर, नाव एक अन्य द्वीप की तरफ तेजी से बढ़ी जा रही थी। सूरज अस्त होने की तैयारी में था। मैंने दो चार नाव में बैठे-बैठे ही खींचे। किसी ने बताया कि चिलका के द्वीपों पर सूर्योदय एवं सूर्यास्त का नजारा बड़ा मनोहारी व रमणीक होता है। नाविक ने नाव द्वीप के किनारे पर रोकते कहा कि चाय-पानी पी लीजिए.. यहां आधा घंटा रुकेंगे। हम नाव से उतरकर पास में बनी एक चाय की दुकान पर आए। बड़ों ने चाय पी तो बच्चों ने दूध के लिए स्वीकृति दी। आखिरकार उनको दूध दिलाया गया। चारों बच्चों ने दूध की बोतलों को चीयर्स वाले अंदाज में टकराया और लगे पीने। शायद बच्चों ने वहीं बगल में बैठे युवाओं के उस समूह को देख लिया था, जो बीयर पीने के साथ झींगा खा रहे थे। बताया गया कि चिलका में पाए जाने वाले झींगा बड़े स्वादिष्ट होते हैं। यह मैं दूसरे से सुनी हुई बता रहा हूं.. क्योंकि मैं शाहाकारी हूं, पिछले 14 साल से। खैर, चाय-पानी होने के बाद हम नाव की तरफ बढऩे लगे। सूरज लगभग अस्त हो चुका था। उसका रंग सुनहरे से अब सुर्ख गुलाबी हो चुका था। तट पर पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी। ऑटो वाला राजू वहीं खड़ा हमारा इंतजार कर रहा था। हम तेजी से ऑटो की तरफ बढ़े और तत्काल पुरी के लिए रवाना हो गए। वापसी में ग्रामीण क्षेत्रों में एक बात देखी.. बड़ी संख्या में लोग स्नान करने में व्यस्त थे। इनमें महिलाएं भी शामिल थी। शाम के समय स्नान को लेकर विचार आया शायद कृषक परिवार रहे होंगे...। दिन भर काम करने के बाद घर लौटे होंगे, इसलिए नहा रहे हैं। अपने तर्क से संतुष्ट न होकर फिर दुबारा सोचा शायद शाम को ग्रामीण क्षेत्रों में नहाने की कोई परम्परा होगी। लेकिन वास्तविक कारण क्या है नहीं जान पाया। वैसे छत्तीसगढ़ और ओडिशा में तालाबों पर महिलाओं एवं पुरुषों का सामूहिक स्नान आम बात है। इतना जरूर है कि महिलाओं एवं पुरुषों के लिए अलग-अलग स्थान तय हैं लेकिन नहाने व कपड़े धोने का काम तालाबों में ही होता है। तालाबों का यही पानी निस्तारी के लिए भी उपयोग किया जाता है। कहने का आशय है कि एक ही तालाब कई तरह की जरूरतों को पूरा कर देता है। चलते-चलते अंधेरा हो चुका था। वाहनों की रोशनी से आंखें चुंधिया रही थी। मेरी नजर किलोमीटर दर्शाने वाले पत्थरों पर लगी थी। हम जल्दी से जल्दी से पुरी पहुंचना चाह रहे थे। सुबह जल्दी निकले थे और दिन भर के सफर के कारण थककर हालत
खराब हो चली थी। आखिरकार रात के पौने नौ बजे हमने पुरी की सरहद में प्रवेश किया। ... जारी है।

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