Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-14

 
मुख्यमंत्री बीजू पटनायक की आदमकद प्रतिमा के ठीक के सामने रुककर बोला.. लीजिए.. चंद्रभागा आ गया है। आप सूर्योदय का नजारा देखिए..। करीब साढ़े पांच बजे थे, उस वक्त। ऑटो से उतर कर हम जैसे ही समुद्र की तरफ बढ़े तो वहां अपार जन सैलाब देखकर आश्चर्य हुआ। सब समुद्र के उस पार टकटकी लगाए पौ फटने का इंतजार कर रहे थे। अलसुबह का मौसम था और समुद्र से आती हवा से सर्दी का आभास हो रहा था। हालांकि अधिकतर लोग गर्म कपड़ों से लकदक थे। फिर भी कुछ उत्साही लोग सर्दी को दरकिनार कर लहरों के साथ अठखेलियां करने में जुटे थे। बच्चों का तो अलग ही संसार था। रंगीन रोशनी वाली गेंद को हवा में उछालकर उसको पकडऩे के खेल में दर्जनों बच्चों लगे थे। इसके अलावा वॉलीबाल भी खेला जा रहा था। घड़ी की सुईयां तेजी से आगे बढ़ रही थी लेकिन सूर्यदेव के दर्शन नहीं हो पा रहे थे। थोड़ा सा उजास हुआ तो यकीन हो गया था कि सूर्योदय हो चुका है। बादलवाही के कारण हम लोग इस प्राकृतिक नजारें को नहीं देख पाए। बहुत निराशा थी लेकिन प्रकृति तो अपनी मर्जी से ही चलती है। उस पर किसी का जोर नहीं चलता। जैसे-जैसे दिन चढ़ रहा था, समुद्र में नहाने वालों की संख्या में भी इजाफा हो रहा था। हम किनारे पर खड़े अपलक पूर्व दिशा को ही देखे जा रहे थे, लेकिन सूरज ने तो जैसे कोई कसम ही खाली थी, दर्शन ना देने की। दरअसल, चद्रभागा कोणार्क के पास एक छोटी नदी है, जो समुद्र में समाहित हो जाती है। माघ सप्तमी को यहां मेला लगता है। उस दौरान लाखों श्रद्धालु नदी में डूबकी लगाते हैं और इसके बाद सूर्य की आराधना करते हैं। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इस नदी में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र शम्बा ने स्नान किया था। इससे उनको कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई थी। इसके बाद उन्होंने 12 साल तक यहां भगवान शिव की पूजा की। मान्यता है कि चंद्रभागा नदी में स्नान करने से रोगों एवं पापों से छुटकारा मिलता है।
इधर, बच्चे हमारी मनोदशा से बेखबर अपनी ही दुनिया में मस्त थे। समुद्र के किनारे पर एक ऊंचा सा टीला था। बस उसके ऊपर चढऩा और उतरना उनके लिए खेल बन गया था। वे मस्ती में मशगूल थे और हम चहलकदमी करते हुए एक चाय की दुकान पर आ गए। नारियल के पेड़ों की टहनियों से तैयार करके झोपड़ी बनाई थी। हम सब उस झोपड़ी में जिसको जहां जगह मिली बैठ गए। समुद्री हवा के विपरीत कई देर खड़े रहने के कारण वैसे भी शरीर में हल्की सी सिहरन थी, जैसे ही गरमा गरम चाय की पहली चुस्की हलक से नीचे उतरी राहत सी मिली। वाकई जोरदार चाय बनाई थी उसने। चाय की कीमत सुनकर तो यकीन ही नही हुआ कि इतनी टेस्टी चाय और कीमत केवल पांच रुपए। अचानक फ्लेश बैक में चला गया.. रेल की चाय याद आ गई। ठण्डी सी, एकदम बेस्वाद चाय और कीमत कहीं सात तो कहीं आठ रुपए। चिल्लर नहीं तो पूरे दस लगने का अंदेशा भी रहता है। हल्का से झटका देकर वर्तमान में लौटा। साथी गोपाल शर्मा पूछ ही बैठे.. इतनी जोरदार चाय....जारी है।

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