Wednesday, January 15, 2014

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ


पुरी से लौटकर-22

 
वही प्रक्रिया दोहराई, लेकिन इस बार भी कुछ नहीं निकला। वह लगातार सीप के बारे में बताता जा रहा था। यही कि स्वाति नक्षत्र में बूंद जब सीप के अंदर जाती है तो वह मोती बन जाती है,लेकिन हर सीप में मोती मिलना संभव नहीं है। यह बहुत दुर्लभ चीज होती है। मोती दो तरह के होते हैं। एक चमकीला तो दूसरा काला। वह लगातार बोले ही जा रहा था, इस बीच उसका करतब भी जारी था। अचानक एक सीप को उसने तोड़ा और सीप के अंदर निकले गाढ़े पानी से मोती चमक उठा। उसने मोती दिखाया और इसके बाद नाव के लकड़ी के फट्टे पर रखकर एक दूसरा फट्टा उठाया और तीन-चार बार जोर से मारा। मोती का कुछ नहीं बिगड़ा, अलबत्ता लकड़ी के फट्टे पर निशान बन गया। वैसे फट्टे पर काफी निशान थे, जो यह बता रहे थे कि मोती का खेल यहां कई बार दिखाया जा चुका है। फट्टे से मोती उठाकर वह बोला.. जो मोती ओरिजनल होता है, वह टूटता नहीं है। यही उसकी पहचान होती है। इतना कुछ करने के बाद वह मुख्य मुद्दे पर आया.. कहने लगा कि बाहर शोरूम से यही मोती खरीदेंगे तो काफी महंगा पड़ेगा। यहां पर आपको काफी सस्ता पड़ जाएगा। दरअसल, पहले दो सीपों को तोड़कर उनको खाली दिखाना और इसके बाद यकायक एक सीप से मोती निकाल कर दिखा देना, उसकी कलाकारी थी। दिन में पांच-सात ग्राहक भी फंस गए तो मान लो उसने बड़ा मैदान मार लिया। करीब पन्द्रह मिनट के इस घटनाक्रम के बाद नाविक ने दुबारा जनेरटर स्टार्ट किया और नाव पूरी गति के साथ दौड़ा दी..।
इस बार हम डॉलफिन वाले क्षेत्र के लिए रवाना हुए थे। वैसे चिलका में विरल प्रजाति की इरावाड़ी डॉलफिन पाई जाती हैं। नाव तेजी से दौड़े जा रही थी। इतनी रफ्तार से कि हमारी नाव ने रास्ते में कई दूसरी नावों को ओवरटेक भी किया। करीब डेढ़ घंटे का सफर हो चुका था। हर तरफ पानी ही पानी और नाव ही नाव। सभी की उत्सुकता डॉलफिन देखने में ही थी। पुरी के होटलों में भी चिलका झील का प्रचार डॉलफिन के नाम से ही ज्यादा है। वैसे भी यहां आने वाले अधिकतर पर्यटक नौकाविहार करने कम बल्कि डॉलफिन देखने ज्यादा आते हैं। यह बात दीगर है कि डॉलफिन के लिए नौकाविहार करना पड़ता है। आखिर दूर हमको कुछ नाव पानी के बीच रुकी हुई दिखाई दी। बच्चे खुशी से चहक उठे। हम सब की टकटकी अब पानी पर ही लगी थी। पता नहीं कब कहां डॉलफिन दिखाई दे जाए। मेरे मन में अमिताभ बच्चन की अजूबा फिल्म की डॉलफिन की हल्की सी याद थी। मैं भी वैसी ही कल्पना लगाए बैठा था। वैसे चिलका झील की डॉलफिन कोई प्रशिक्षत नहीं है। यह उन डॉलफिन जैसे भी नहीं है, जैसी हम टीवी या फिल्मों में देखते हैं। यह डॉलफिन पालतू भी नहीं है, लिहाजा मानवीय दखल उसको पसंद नहीं है। वह न तो प्रशिक्षित डॉलफिन की तरह ऊपर उठती है और ना ही पास आती है। बच्चों को धैर्य जवाब दे रहा था कि लेकिन डॉलफिन का कहीं नामोनिशान तक नहीं था।...... जारी है।

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