Friday, December 25, 2015

वो ऐतिहासिक सफर

मेरे संस्मरण-3

रात भर का सफर करने के बाद मैं और नेमीचंद आगरा के राजा की मंडी स्टेशन पर पहुंच गए। यहां से हमको नासिक के लिए ट्रेन पकडऩी थी। हम दोनों रेलवे स्टेशन पर नासिक की ट्रेन की तलाश में भटकते रहे लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। दरसअल, नासिक वाली ट्रेन आगरा छावनी से मिलनी थी लेकिन न तो हमको उसको जानकारी थी और ना ही किसी ने बताया। हमने स्टेशन पर कई लोगों से पूछा लेकिन कोई बताने को तैयार ही नहीं था। हम दोनों मन मसोस कर रहे गए। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। दोपहर हो चुकी थी। आखिर नेमीचंद ने स्टेशन पर खड़ी गाड़ी की तरफ इशारा किया और कहा कि चलो इसमें बैठ जाते हैं, यह कहीं तो जाएगी ही। और हम उस गाड़ी में बैठ गए। पता चला यह तो कानपुर जा रही है। हम रवाना हो चुके थे। मन में यही उम्मीद थी कि चलो कोई कानपुर में तो बताएगा। रात आठ बजे हम कानपुर पहुंच गए। शाम हो गई थी। हम प्लेटफार्म पर ही एक बैंच पर सो गए। रात 11.30 बजे टीटीई आया और बोला, कौन हो आप लोग। हमने परिचय दिया। उसने पूछा कहां जाना है। हमने नासिक जवाब दिया तो कहने लगा है पता भी है क्या नासिक कहां है और कौनसी रेल जाएगी। हमने असहमति में सिर हिलाते हुए कहा पता नहीं जो मिल जाएगी उसी में बैठ जाएंगे। टीटीई हमारा जवाब सुनकर हंसा। उसने कहा कि यहां रात को आपको कोई सोने नहीं देगा। पूछताछ के नाम पर आपको जगाया जा सकता है। ऐसा करो यह जो रेल खड़ी है, उसी में वापस चढ़ जाओ। यह यहां से यार्ड में जाकर खड़ी हो जाएगी। रात भर वहीं खड़ी रहेगी। ऐसा करो आप इसमें सो जाओ। आपको रात भर कोई परेशान नहीं करेगा। टीटीई हमको भला आदमी लगा। हम दोनों रेल के एक डिब्बे में चढ़ गए। खिड़की बंद कर ली और दरवाजों पर अंदर से कुंडी लगा ली। सुबह ट्रेन वापस स्टेशन आई। घर से रवाना हुए तीसरा दिन हो चुका था। मैं और नेमीचंद नहाने के लिए पास के ही नल पर चले गए। इतने में एक व्यक्ति हमारे पास आया और पूछा कहां के रहने वाले हो और कहां जा रहे हो। हमने उसके सवाल का जवाब दे दिया तो कहने लगा, अरे कहां फौज में भर्ती हो गए। जिंदगी भर परेशान हो जाओगे। ऐसा करो आप देानों मेरे साथ आ जाओ। मैं आपको बढिय़ा नौकरी दिलवा दूंगा। लेकिन हम दोनों ने उसकी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। वह कई देर तक उसने हमको बरगलाने की कोशिश करने के बाद बड़बड़ाता वहां से चला गया। नहाने के बाद हम गाड़ी के पास आ गए। बताया कि यहां से आपको झांसी जाना है, वहां से आपको नासिक जाने वाली रेल मिल जाएगी। मैं और नेमीचंद गाड़ी में बैठ गए। डिब्बे लगभग खाली ही थे। हम दोनों सीट पर लेट गए। दोपहर बाद हम दोनों झांसी पहुंच गए थे। अब तक सफर छोटी रेल लाइन पर ही किया था। झांसी में रेलवे लाइन भी बड़ी थी। यहां से हमको मुंबई जाने वाले ट्रेन पकडऩी थी। 

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