Friday, December 25, 2015

काउंटर


बस यूं ही
कल व्हाटस एप पर एक हाउस वाइफ के गुणगान करने वाली पोस्ट पढ़ी। बिलकुल महिला की तरफदारी करती हुई पोस्ट। पढ़ते ही दिमाग खटका, सोचा जरूर यह पुरुष विरोधी मानसिकता का कमाल है, वरना कुछेक अपवाद छोड़ दें तो व्यवहारिक जीवन में यह संभव है? पोस्ट के जवाब में कुछ लिखने का मानस उसी वक्त बना लिया और मात्र आधा घंटे में उसका जवाब तैयार कर उसी गु्रप में पोस्ट कर दिया है। जानकारी के लिए दोनों पोस्ट यहां चस्पां की जा रही हैं। तय आप करें कि हकीकत क्या है।
---व्हाटस एप की पोस्ट --- 
हाउस वाइफ का दुख, हाउस वाइफ ही जाने। आज ससुर तो कल सास बीमार। ससुर को डाक्टर के पास ले जाना है। सास को बैद जी को दिखाना है। मंदिर से लेकर अस्पताल तक साथ निभाना है। पति का सिर दुख रहा है, सिर पर बाम लगाना है। बेटा खांस रहा है, शरीर गर्म हो रहा है, उसे हल्दी मिला मिला दूध पिलाना है। चिड़चिड़ा हो रहा है, इसलिए पास भी बैठना है। स्कूल जाकर छुट्टी के लिए कहना है। गैस खत्म हो गई, कब आएगी पता नहीं, तब तक पड़ोसी से मांग कर काम चलाना है। काम वाली बाई आज आई नहीं, पर खाना तो बनाना है। बर्तनों को साफ करना है। मुंबई से नंदोई आए हैं, दो चार दिन उनका सत्कार करना हे। साथ में शहर दर्शन भी कराना है। कमी रह जाएगी तो महीनों सुनना पड़ेगा। छोटी बहन का फोन आया, ससुराल में विवाह है, शौपिंग के लिए बाजार साथ जाना है। दफ्तर के पति का फोन आया है। रात को अफसर का खाना है बढिया से बढिय़ा इंतजाम करना है। इज्जत का झंडा ऊंचा रखना है। जेठ जी का फोन आया, कल सवेरे की गाड़ी से आएंगे। पतिदेव तो दफ्तर जाएंगे इसलिए स्टेशन से लाना है। आज करवा चौथ का व्रत है, भूखे पेट भजन नहीं होता, हाउस वाइफ को घर तो चलाना है। खुद का बदन दुखे या पेट खाना तो बनाना है। छोटी छोटी बात का भी ख्याल रखना है। मां, बहू, भाभी, पत्नी का धर्म भी निभाना है। सब को खुश जो रखना है मन करता थोड़ा अपने मन का कर लें, इतने में कोई घंटी बजाता है। दरवाजा खोला तो सामने पड़ोसी खड़ा है। पत्नी की तबीयत ठीक नहीं अस्पताल साथ जाना है। इतना कुछ करती है फिर भी जिंदगी भर सुनना पड़ता है, दिन भर करती क्या हो तुम्हे कितना आराम है। काम के लिए तुम्हे दफ्तर नहीं जाना पड़ता। कैसे समझाए किसी को? निरंतर खटते-खटते उम्र गुजर जाती है। हर दिन दूसरों के लिए जीती है, फिर भी जिंदगी भर केवल हाउस वाइफ कहलाती है।--सभी गृहणियों को समर्पित।
---जवाब में लिखी पोस्ट ---
बस कहना ही आसान है
करना उतना ही मुश्किल है
सिर्फ पत्नी ही बेचारी है
पति तो बिलकुल नाकारा है।
बेचारा सुबह से लेकर शाम तक
गधे की तरह पिलता है
तब कहीं जाकर घर का 
चूल्हा मुश्किल से जलता है। 
आज ससुर बीमार है,
तो कभी सास की बारी है।
क्या यह लोग गैर हैं,
जो लगते इतने भारी हैं। 
पत्नी का सिर दुखता है
पति तो लोहे का बना है,
आफिस का तनाव तो
घर तक लाना मना है। 
एम गाड़ी के दो पहिये
फिर क्यों करें शिकायत
एक दूजे की करें मदद
समझें एक दूजे की जरूरत।
घर के काम करना कोई 
बड़ी बात है क्या?
अगर इनमें ही दिक्कत है 
तो फिर पत्नी और करेगी क्या?
जेठ, ससुर, सास से जितनी पीड़ा
क्या उतनी है खुद के मां-बाप से
हाउस वाइफ करे यह सवाल
कभी खुद अपने आप से।
पति भी उतना ही दुखी 
जितनी की पत्नी दुखी 
केवल मन का वहम हैं,
मानें तो दोनों दुखी। 
माना महिला होकर महिला की
पैरवी करना ठीक है,
लेकिन सारा दोष पति को देना
भला कहां की रीत है।
हाउस वाइफ घर संभालती,
पति करता रूजगार है
दोनों चलते साथ-साथ
बढ़ता तभी प्यार है। 
कृपया कर ऐसी 
अफवाहें ना फैलाएं
पति-पत्नी के रिश्ते में
ना कोई दीवार बनाएं।

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