Friday, December 25, 2015

वो ऐतिहासिक सफर


मेरे संस्मरण-4 

आखिरकार इंतजार के बाद झांसी रेलवे स्टेशन पर हमारी गाड़ी आ गई। नाम था पंजाब मेल। फिरोजपुर से मुंबई के बीच चलती थी। जीवन में पहली बार बड़ा सा इंजन देखा था। बड़े-बड़े टायर। उसको देखकर मैंने दांतों दले अंगुली दबा ली थी। गाड़ी में काफी भीड़ थी। मैं और नेमीचंद बारी-बारी से सभी डिब्बों तक गए लेकिन कहीं भी जगह दिखाई नहीं दी। आखिर में एक डिब्बे में चढऩे लगे तो अंदर बैठे फौजियों ने झिड़क दिया। बोले यह फौजियों का डिब्बा है। इसमें हम ही बैठ सकते हैं। आप दूसरी जगह जाओ। कोई रास्ता नहीं सूझा तो एक डिब्बे में जबरन चढ़ गए। नेमीचंद बोला, सीट नहीं मिली तो कोई बात नहीं अपन यह डंडा पकड़ ही चलते हैं जबकि हमको यह भी नहीं पता था कि झांसी से नासिक की दूरी कितनी है। हम डिब्बे में खड़े थे। अचानक टीटीई आया। उसने पूछा कहां जाना है। हमने परिचय दिया तो वो हमको फौजियो वाले डिब्बे में ले गया और कहने लगा अरे यह आपके ही साथी हैं। नए-नए भर्ती होकर आए हैं। इनको बैठने के लिए जगह दो। फौजी बोले बिना ड्रेस हमको कैसे पता चलता। खैर, टीटीई की मेहरबानी से हमको जगह मिल गई थी। रात भर का सफर था। सुबह हमारी गाड़ी नासिक पहुंच चुकी थी। घर से चले हुए हमको तीन दिन और तीन रात हो चुके थे। जीवन में पहली बार इतना लम्बा सफर तय किया। यह न केवल यादगार बन गया बल्कि ऐतिहासिक भी रहा। तीन दिन की सफर की थकान हावी हो चली थी लेकिन आगे क्या होगा इस उत्सुकता मैं अपनी थकान को भूल चूका था। नासिक रेलवे स्टेशन पर मैं और नेमीचंद उतरे तो वहां सेना के जवान घूम रहे थे। वहां सेना की गाडिय़ा खड़ी थी। फौजियों का हम दोनों से आमना-सामना तो उन्होंने पूछा भर्ती होकर आए हो? हमने स्वीकृति में सिर हिलाया तो हमें गाड़ी में बैठने को कहा गया। आखिर सबसे पहले हमको लंगर ले जाकर भोजन कराया गया। इसके बाद तंगावेलू नामक नायब सूबेदार (उस वक्त जमादार कहा जाता था) से मेरी मुलाकात हुई। वो मेरे को लाइन इंचार्ज नायक प्रहलादसिंह के पास लेकर गए। प्रहलादसिंह राजस्थान के ही जयपुर जिले के रहने वाले थे। चारपाई एवं बिस्तर दे दिए गए और कहा जाकर लाइन में आराम करो। दो दिन के बाद मेरे को आफिस ले जाया। वहां मेरे से भर्ती के कागजात मांगे गए। मैंने मना कर दिया तो कहा गया, कोइ बात नहीं, दुबारा बन जाएंगे। इस प्रकार फौज की भर्ती से बचने का मेरा आखिरी प्रयास भी सिरे नहीं चढ़ और मैं भारतीय सेना का हिस्सा बन गया। दो साल यहीं ब्यॉयज में रहा। सुबह शारीरिक अभ्यास करना होता। स्क्वॉड बनने के बाद परेड शुरू हो गई। दो साल पूर्ण होने के बाद जवान बन गया था। रंगरूट का अभ्यास किया। यह करीब छह माह का था। नासिक में कुल तीन साल रहा। इस बीच मैं दो बार गांव छुट्टी पर आया। नासिक के बाद पहली पोस्टिंग पंजाब के जालंधर आई थी। यहां एक नया क्षेत्र मेरा इंतजार कर रहा था। 

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