Friday, December 25, 2015

अब बातें नहीं, काम हो

 टिप्पणी

शहर की सरकार ने दौड़ते-हांफते आखिरकार एक साल का समय पूरा कर ही लिया। सियासी उठापटक एवं विरोध प्रदर्शनों के बीच बीते साल में निगम के हिस्से में उपलब्धि कम विवाद ज्यादा आए। शहर के हालात के मद्देनजर कार्यकाल को लेकर किए जा रहे दावे, प्रतिदावे एवं सर्वे कुछ मायने नहीं रखते, क्योंकि बीमार, खस्ताहाल एवं विकास की बाट जोह रहे शहर की सूरत में रत्ती भर का भी बदलाव किसी भी स्तर पर नजर नहीं आता है। विशेष एवं बड़ी उपलब्धि के नाम पर पूर्ववर्ती बोर्ड की कथित अव्यवस्थाओं को सुधार कर व्यवस्था को पटरी पर लाने की बात भी गले नहीं उतरती। रोडलाइट का काम देखने वाली एजेंसी जरूर बदली है लेकिन शहर की राहें कितनी जगमग है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। जिन गली एवं मोहल्लों में साल भर पहले अंधेरा पसरा था, वहां आज भी अंधेरा ही है। आवारा पशुओं की समस्या यथावत है। समाधान के लिए जो बातें साल भर पहले कही गई, वैसी ही अब की जा रही है। अंतर इतना है कि पहले जमीन देखने की बात कही गई और अब कांजी हाउस की। सीवरेज लाइन बदलने की बात साल भर पहले भी कही गई और अब भी की जा रही है। मतलब आवारा पशुओं व सीवरेज पर सिवाय बयानबाजी के कोई काम नहीं हुआ। अब आगामी प्राथमिकताओं में शहर में सिटी बस चलाने एवं ऐलीवेटेड रोड बनाने की बात सामने आ रही है, लेकिन मौजूदा हालात एवं निगम के कामकाज करने के अंदाज से यह काम करवाना बड़ी चुनौती है। चुनौतीपूर्ण इसलिए भी है कि छिटपुट समस्याएं मसलन, सफाई व्यवस्था, नालियों की सफाई, टूटे चै बर आदि ठीक करवाने में ही अधिकारियों के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती।
शहर में अतिक्रमण एवं अवैध कब्जों को लेकर निगम प्रशासन कभी गंभीर नजर नहीं आया। कभी-कभार रस्मी तौर पर की गई कार्रवाई भी विवादों की भेंट चढ़ गई। फड़बाजार का उदाहरण सामने है। रिहायशी मकानों में व्यवसायिक गतिविधियां संचालन होने की शिकायतों पर लगाम नहीं लगी। निगम की आय बढ़ाने के गंभीरता से प्रयास नहीं हुए। पार्किंग व्यवस्था बदहाल है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि दो-दो साल से खुदी हुई सड़कों की सुध तक नहीं ली जा रही है। निगम में कमेटियों का गठन भी काफी विल ब से हुआ। जैसे-तैसे हुआ भी तो 16 में से मात्र तीन कमेटियों की बैठकें हो पाई हैं। शहर में खर्च की गई राशि भी ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। काम भी नाली, सीसी ब्लॉक जैसे ही हुए हैं। जनहित से जुड़ी समस्याओं को लेकर विपक्ष ने साल भर महापौर एवं अधिकारियों को खरी- खोटी सुनाने तथा प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन उनके विरोध भी को भी दरकिनार कर दिया गया।
बहरहाल, बोर्ड के गठन के समय महापौर ने जनता के बीच सक्रिय रहकर जनता के साथ मिलकर काम करने की जो बात कही थी, वह एक साल बाद भी पूरी होती नजर नहीं आ रही। समन्वय एवं सहयोग का अभाव हर जगह दिखाई दिया। विपक्ष ही नहीं सत्ता दल के लोग भी अंदरखाने शह-मात का खेल खेलते नजर आए। विकास व सकारात्मक राजनीति के बजाय सस्ती वाहवाही लूटने के प्रयास ज्यादा हुए। अब उ मीद की जानी चाहिए कि शहर हित में पक्ष-विपक्ष दोनों सहयोग करेंगे, ताकि बीमार शहर की हालात में सुधार हो। अभी भी काफी समय शेष है। बस काम करने के लिए दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है। जनहित को दरकिनार कर अगर निगम इसी तरह सियासी अखाड़ा बना रहा तो फिर विकास की बात करना बेमानी है। विकास कार्यों को हमेशा राजनीतिक चश्मे से देखने की आदत छोडऩी होगी, यही शहर के हित में है और जनता के भी।

राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 28 नवम्बर 15 के अंक में प्रकाशित

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