Friday, December 25, 2015

मजबूरी

मेरी आठवीं कहानी

लम्बे समय के बाद भाई का फोन आने पर बादामी बेहद खुश थी। भाई-बहन ने एक दूसरे के हाल-पूछे। बातों का सिलसिला आगे बढ़ा तो भाई ने भानजे की रिश्ते के बारे में पूछ लिया। बड़ी उत्सुकता से चहकती हुई बादामी बोली, बस आठ माह बाद शादी करने का विचार है। बहन की खुशी देख भाई ने सवाल दागा, कहीं शादी जल्द तो नहीं? बस फिर क्या था। बादामी कहने लगी। भाई तेरे को क्या पता। दुनियादारी क्या होती है। आस-पडा़ेस की महिलाओं ने ताने मार-मारकर शर्मिन्दा कर रखा है। जितने मुंह उतनी ही बात। कोई कहती है लड़का सुंदर नहीं है, इसलिए रिश्ता नहीं आ रहा है? कोई कहती है सगाई ही नहीं आ रही है, बेचारा कुंवारा ही रहेगा शायद? तो कोई कहती है कोई मोटा मुर्गा नहीं फंसा होगा, दहेज में कार चाहिए ना इसलिए। और भी ना जाने क्या-क्या? बहन एक ही सांस में काफी कुछ गई थी। वैसे भाई उम्र के लिहाज से काफी छोटा था लेकिन बहन कीमजबूरी उसको समझ में आ गई थी। बहन की बातें इस तरह गूंज रही थी जैसे किसी ने गर्म शीशा कानों में डाल दिया हो। उसे रह-रहकर बहन की बातों का ख्याल आ रहा था। वह मन ही मन बुदबुदाया वाह री दुनिया।

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