Friday, December 25, 2015

लिहाज

मेरी दसवीं कहानी 

बाजार में उस दुकान पर काफी भीड़ थी। ग्राहकों की बारी भी देर से आ रही थी। निर्मल भी कतार में खड़ी थी। वाकई दुकानदार एवं उसके नौकर बहुत व्यस्त थे। इसी बीच राह चलती एक महिला ने बड़ी बेफिक्री के साथ पूछा, भईया बादाम क्या भाव दिए? दुकानदार बोला 220 रुपए के पाव। वह 210 के लिए बोली लेकिन दुकानदार नहीं माना तो वह नाक भौं सिकोड़ती हुई आगे बढ़ गई। इसी बीच एक ट्रैफिक पुलिस का जवान आया। बिना कतार में लगे वह ऊंची आवाज में बोला, सेठजी एक पाव बादाम देना। सेठजी ने तत्काल नौकर को इशारा किया। नौकर ने सारे काम छोड़े और बादाम का डिब्बा ले आया। जल्दबाजी में नौकर ने पलड़े में बादाम कुछ ज्यादा डाल दिए थे। वह एक-एक बादाम को उठाकर पलड़े का संतुलित करने का उपक्रम कर रहा था। यह सब देख जवान से रहा नहीं गया, वह जोर से बोला, अरे दस-बारह फालतू दे दोगे तो क्या बिगड़ जाएगा। नौकर के कानों तक बात नहीं पहुंची लेकिन सेठजी ने मौके की नजाकत ताड़ ली थी। वहीं से बोले, अरे रामू जल्दी करो, हवलदार जी को लेट हो रही हैं। बस फिर क्या था, रामू ने झूलते पलड़े से ही बादाम निकाले और पॉलिथीन की थैली में डालकर जवान की तरफ बढ़ा दी। जवान ने चुपके से उसे दो सौ रुपए थमाए और चल पड़ा। निर्मल मंद-मंद मुस्कुरा रही थी। बारी से पहले, भाव से कम और तौल में भी ज्यादा। वह सोच रही थी आखिर पुलिस के प्रति इतना लिहाज क्यों है 

No comments:

Post a Comment