Friday, December 25, 2015

नमन बूढ़ी मां


दादी मां आज ही के दिन हमको छोड़कर गई थी। एक साल बीत गया। सांस-सांस में समाई बूढीमां को याद करके आंख न जाने कितनी ही बार नम हुई है। पापाजी तो इस हादसे से अभी तब उबर नहीं पाए हैं। जब भी अकेले होते हैं, तो मां को याद करके रोने लगते हैं। कितनी ही बार मैंने खुद को संभालते हुए उनको भी दिलासा दिया है। लेकिन अपनों के जाने का दुख भला कभी कम होता है। मैं खुद ही एक दिन आफिस में इतना भावुक हो गया कि आंखों से टपाटप आंसू गिरने लगे। चाह कर भी खुद रोक नहीं पाया। अविरल धारा बहती रही। कई बार तो महसूस होता है कि बूढ़ी मां यहीं है हमारे आस पास। अभी दीपावली पर गांव गया तो पता नहीं क्यों यही लगता रहा कि बूढी मां अपने कमरे में ही सोई हुई है और अभी अंदर से आवाज लगाएगी। वैसे दादी मां के बिना घर में पहली दिवाली थी। हर बार दीपावली पर बूढी मां के नेतृत्व में ही पूजन होता था। खैर, इस सच्चाई को दिल कभी मानेगा भी नहीं। अब भी आंसू बह निकले हैं। पहली पुण्यतिथि पर बड़े भाईसाहब केशरसिंह जी ने श्रद्धांजलि स्वरूप कवितांजलि भेजी है।
हरपल रहती यादों में, संबल साथ सहारा हो,
ना भूले, ना भूलेंगे, मां तुम तो प्यार हमारा हो।
स्वाभिमान, स्नेह, नेकी का पथ हरदम ही दिखलाया,
नमन आपको प्यारी मां, जीने का पाठ पढ़ाया।
चांद सितारों की संगत से नेकी की राह दिखाना,
सुख-दुख हो या ऊंच-नीच धीरज का पाठ पढ़ाना।
प्यारी बूढी मां को दिल की गहराइयों से पहली पुण्यतिथि पर...
नमन बूढी मां, आपको भावभीनी श्रद्धांजलि मां।

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