Friday, December 25, 2015

लाइलाज होता मर्ज


टिप्पणी.
संभाग का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल पीबीएम किसी न किसी मसले को लेकर वैसे तो हमेशा ही सुर्खियों में रहता है, लेकिन किसी मंत्री और अधिकारी के दौरे के समय यह और अधिक चर्चा में आ जाता है। प्रदेश के स्वास्थ्य एवं चिकित्सा मंत्री शुक्रवार को एक कार्यक्रम के सिलसिले में बीकानेर आए। हो सकता है वे शनिवार को बीकानेर से रवाना होने से पूर्व पीबीएम का निरीक्षण भी कर लें। मंत्री होने के नाते उनको ऐसा करना भी चाहिए। विशेषकर इसीलिए भी क्योंकि पीबीएम को लेकर वे कई तरह की घोषणाएं कर चुके हैं। कुछ घोषणाएं तो ठीक एक साल पहले सरकार आपके द्वार के दौरान की गई थी। उस वक्त पीबीएम को लेकर प्रमुख रूप से तीन बातें कही गई थी। चिकित्सा मंत्री ने कहा था कि पीबीएम में सुपर स्पेशलिटी सुविधाएं शीघ्र चालू होंगी, टर्शरी कैंसर सेंटर शीघ्र बनेगा और सफाई का बजट दुगुना होगा। हर माह सचिव स्तर के दो अधिकारी पीबीएम का दौरा करेंगे। यह दौरा तब तक होगा जब तक व्यवस्थाओं में सुधार नहीं होता।
तीनों ही घोषणाओं की क्रियान्विति कैसी हुई खुद चिकित्सा मंत्री से भी नहीं छिपा होगा। न तो सुपर स्पेशलिटी चालू हुई और न ही टर्शरी कैंसर सेंटर। सचिव स्तर के अधिकारी का दौरा बदस्तूर जारी है लेकिन सुधार अभी भी सपने से कम नहीं है। यह तो हुई घोषणाओं की बात। अब मंत्री के बयानों-निर्देशों की बानगी भी देख लें। एक साल पहले पीबीएम के निरीक्षण के दौरान मंत्री ने कहा था कि पीबीएम बीमार है और सर्जरी की जरूरत है। एक साल बाद भी हालात कमोबेश वैसे ही हैं। यह बात तो सामान्य से आदमी को भी पता है कि किसी मर्ज का समय रहते इलाज ना किया तो उसे लाइलाज होते देर नहीं लगती। न केवल बीकानेर बल्कि श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू, नागौर एवं पड़ोसी राज्य हरियाणा एवं पंजाब से बड़ी संख्या में लोग पीबीएम बड़ी उम्मीद लेकर आते हैं। पीडि़त मानवता की सेवा का जज्बा रखने वाले दानदाताओं ने भी दिल खोल कर पीबीएम में काम करवाए हैं। लेकिन अस्पताल की दशा देखकर यहां आने वालों को यकीनन दुख होता है तो दानदाताओं को अपने किए पर पछतावा। 
पीबीएम में बात सिर्फ चिकित्सकों व नर्सिंग स्टाफ के पद खाली होने तक ही सीमित नहीं है। सर्वाधिक पीड़ादायक यह है कि करीब तेरह करोड़ रुपए खर्च करने के बाद भी सरकार ट्रोमा सेंटर शुरू नहीं कर पाई है। और जिस अंदाज में इसे शुरू करने की कार्ययोजना बनाई जा रही है वह कोढ़ में खाज जैसी है। पीबीएम के आधे-अधूरे स्टाफ में से कुछ स्टाफ ट्रोमा सेंटर में लगाने की तैयारी है। ट्रोमा सेंटर एक अलग इकाई है, इसके लिए पीबीएम का स्टाफ क्यों? इस सवाल का जवाब अभी नहीं खोजा रहा है, लेकिन इससे समस्या बढऩे के बारे में दोराय नहीं है। मौजूदा व्यवस्था में ही लापरवाही सामने आती रहती है। तो फिर आधे अधूरे स्टाफ में ऐसे मामले बढऩे की आशंका ज्यादा है। 
बहरहाल, पीबीएम में जहां हाथ रखो वहीं दर्द है। हृदय रोग विशेषज्ञ ( सर्जन) की सेवाएं लम्बे समय नहीं मिल रही हैं। इसी अस्पताल का चिलिंग प्लांट ढाई साल से ठप है। नि:शुल्क दवा वितरण योजना बेपटरी है। मांग के हिसाब से दवा की आपूर्ति नहीं हो रही है। दवा वितरण काउंटर मंत्री के आदेश के बाद भी नहीं बढ़े। वार्डों में सफाई व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। पेयजल संकट के साथ-साथ दूषित पानी की समस्या का भी कोई समाधान नहीं खोजा गया है। कैंसर मशीन ब्रेकी थैरेपी शुरू नहीं हो पाई। इस तरह के उदाहरण कई हैं। बेहतर हो अब बात निरीक्षणों, फटकारों, निर्देशों से ऊपर उठकर हो, क्योंकि यह सारे नुस्खे पीबीएम के मर्ज को देखते हुए कारगर नहीं रहे।
राजस्थान पत्रिका बीकानेर के 13 जून 15 के अंक में प्रकाशित...

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