Friday, December 25, 2015

वो आमों का बगीचा


मेरे संस्मरण-7

यह बात 1961 की है। उसी समय भारत ने गोवा से पुर्तगालियों का खदडऩे का अभियान शुरू किया था। हालांकि यह ऑपरेशन ज्यादा दिन नहीं चला था। जल्द ही भारतीय जवानों ने पुर्तगालियों को गोवा, दमन एवं दीव से खदेड़ दिया था। फिर भी इस बात की आशंका थी कि पाकिस्तान ऐसे हालात में भारत पर हमला कर सकता था। इसलिए हमको बॉर्डर पर जाने के लिए तैयार रहने को कह दिया गया था। ऐसे में मैंने घर पर पत्र लिखा कि मैं कभी भी बार्डर पर जा सकता हूं। मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि गांव आकर धर्मपत्नी को छोड़ सकूं। ऐसा करो आप गांव से किसी को भिजवा दो। मेरा पत्र मिलने के बाद गांव से मिश्रूराम को भेजा गया। उसके साथ धर्मपत्नी को गांव भिजवा दिया गया। आखिरकार वो घड़ी भी आ गई जब हमको पंजाब इलाके में जाने का आदेश मिला। हमारी रेजीमेंट फस्र्ट फील्ड रेजीमेंट एसपी (सेल्फ प्रीपेयर्ड) तत्काल पंजाब के लिए रवाना हो गई। पंजाब पहुंचने के बाद हमने अमृतसर-जालंधर के बीच अपना डेरा जमाया। संयोग से यहां आमों का बगीचा था। आम खाने के लिए हम सब लालायित रहते थे। जैसे ही पेड़ से कोई आम गिरता हम उस और लपकते। करीब पन्द्रह दिन हम यहां रहे। खूब आम खाए। लेकिन पेड़ पर चढ़कर या तोड़ कर एक भी नहीं खाया, जो पककर नीचे गिरा उसी को उठाया। इन पन्द्रह दिनों के बीच एक रोचक वाकया जरूर हुआ। हम जहां कैंप किए हुए थे, वहां पर एक सरदारजी अपनी गाड़ी में आए। शक्ल सूरत एवं पहनावे से सिविल में अधिकारी प्रतीत होते थे। बड़े गुस्से में थे। आते ही कहने लगे कि यह फसलों को बर्बाद करने का अधिकार आपको किसने दिया है? मैं आपके खिलाफ रिपोर्ट करूंगा। हमारे मेजर साहब ने कहा कि हम तो देश की रक्षा के लिए हैं ना कि फसल बर्बाद करने। हमारा मकसद आपकी फसलें नष्ट करना है भी नहीं। लेकिन सरदारजी कानून के कुछ ज्यादा ही जानकार लगे। कहने लगे आपको इस फसल को हर्जाना देना पड़ेगा। आपने बिना अनुमति के यह सब किया है। सरदारजी को समझाने के प्रयास जब विफल हो गए तो फिर उनको उनके ही अंदाज में जवाब देने की तैयारी कर ली गई। मेजर साहब ने इशारा किया। इसके बाद दो गाडिय़ां उनके पास पहुंच गई। उन्होंने सरदारजी से कहा अब बताते हैं आपको कैसे होता है नुकसान? यह कहकर उन्होंने गाडिय़ों को खेत में घूमाने के लिए कह दिया। दोनों गाडिय़ों ने अभी खेत में दो ही चक्कर लगाए थे कि सरदारजी ने हाथ जोड़ दिए। बोले ओ परहा अब बस करो। मैं किसी को रिपोर्ट नहीं करता। मेरे को पता नहीं था। मेरी गलती हो गई मेरे को ऐसा नहीं बोलना चाहिए था। आप तो जितनी मर्जी करे उतने आम खाओ लेकिन फसल को बख्श दो। सरदारजी की हालात पर मेजर साहब को तरस आ गया। उन्होंने गाड़ी रुकवा दी। इसके बाद सरदारजी कभी नहीं आए। ऑपरेशन गोवा सफल रहा, इधर पाकिस्तान की तरफ से कोई मूवमेंट नजर नहीं आया तो हमको वापस लौटने को कहा गया। हमारी रेजीमेंट वापस लौट आई। इस बार हम झांसी की बजाय बबीना आ गए थे। पन्द्रह दिन का यह पंजाब प्रवास अनूठा रहने के कारण हमेशा जेहन में रहता है। 

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