Thursday, November 16, 2017

इक बंजारा गाए -3

अहम का टकराव
दशहरे पर रावण के पुतले का दहन अच्छाई पर बुराई की जीत के प्रतीक के रूप में किया जाता है। वैसे रावण के पुतले को अहंकार का पुतला भी कहा जाता है। कहने का तात्पर्य यही है कि इस दिन बुराई के साथ अहम का भी दहन किया जाता है। लंबे समय से इसी परंपरा का निर्वहन हो रहा है। इसी कड़ी में श्रीगंगानगर में बड़े स्तर पर रावण दहन एक ही जगह होता आया है, लेकिन इस बार दो जगह रावण के पुतले का दहन होगा। इसके लिए शहर में बाकायदा पोस्टर व होर्डिंग्स वार चल रहा है। दोनों ही दशहरों में भीड़ खींचने के लिए और भी कई तरह के उपक्रम हो रहे हैं। यह एक तरह का शक्ति प्रदर्शन है, जो दशहरे की तिथि नजदीक आने के साथ-साथ गहरा रहा है। ऐसे में बाजार में कई तरह की चर्चाएं हैं। इस शक्ति प्रदर्शन पर चटखारा यह भी लिया जा रहा है कि जब अहंकार के पुतले के दहन को ही अहम (प्रतिष्ठा का सवाल) बना लिया तो फिर अहम का दहन कैसे हुआ?
गधे-घोड़े सब बराबर
भले-बुरे मतलब सभी तरह के लोगों से जब समान व्यवहार किया जाता है तो सवाल उठने शुरू हो जाते हैं। ऐसा ही कुछ इन दिनों खाकी की कार्रवाई पर हो रहा है। वाहन चालक ने नशा कर रखा है या नहीं, यह जांचने के लिए चालक के मुंह से मशीन को सटाया जाता है। इसके बाद उसको जोर से सांस लेने व खांसने को कहा जाता है। खाकी की इस कार्रवाई पर कई लोग आपत्ति जता चुके हैं। आपत्ति की वजह यह है कि खाकी सभी को एक ही लसे हांक रही है। आपत्ति जताने वालों का तर्क है कि जब अस्पताल में एक मरीज की सुई दूसरे मरीज पर इस्तेमाल नहीं होती है। इसके पीछे संक्रमण से बचाव ही होता है तो फिर एक ही मशीन को संक्रमण रहित किए बिना क्यों सभी पर इस्तेमाल किया जा रहा है? वैसे आपत्ति में दम नजर आता है। जरूरी थोड़े ही है कि जिनकी जांच हो रही है, उनमें सभी पीने वाले ही हों? खैर, इस मसले का हल तो खाकी को ही खोजना है।
अपने-अपने हित
वह जमाना अब हवा हो गया जब बिना किसी मतलब या स्वार्थ के किसी कार्यक्रम में अतिथि बुलाए जाते थे। अब तो हर कार्यक्रम के होने तथा उसमें अतिथि बनाने में कई तरह के अर्थ छिपे हुए हैं। जैसा अतिथि वैसा ही अर्थ। मसलन, अधिकारी, पुलिस अधिकारी, समाजसेवी, व्यापारी, जनप्रतिनिधि आदि-आदि। इन सबसे हित व अर्थ जुड़े हुए हैं। किसी तरह की अधूरी मांग को पूरी करवाने की बात हो, तब भी सार्वजनिक मंच पर किसी को अतिथि बनाकर वह मांग रख दी जाती है। रामलीला मैदान पर चल रही कमेटी वाले भी एक भूखंड की मांग करते आ रहे हैं। पिछले साल भी मंच पर उन्होंने यह मांग रखी और इस साल भी। एक साल बीतने के बावजूद मामला फिर भी अटका हुआ है। मांग पूरी करने वाले जनप्रतिनिधि ने रामलीला आयोजकों से यह कहते हुए अपनी बात पूरी कर दी कि आपने तो केवल मांग ही की थी भूखंड लेने आए ही कब? ऐसे में आयोजक सार्वजनिक रूप से कही गई इस बात का क्या जवाब देते, लिहाजा चुप्पी साधने में ही गनीमत समझी।
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राजस्थान पत्रिका श्रीगंगानगर संस्करण के 28 सितंबर 17 के अंक में प्रकाशित

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