Thursday, November 16, 2017

इक बंजारा गाए -8

सोशियल इंजीनियरिंग
चुनाव नजदीक आते ही राजनीतिक दलों के साथ-साथ चुनावी मैदान में कूदने वालों को सोशियल इंजीनियरिंग का सहारा लेना ही पड़ता है। इस बहाने समाज के नेताओं से संपर्क करने या उनको किसी कार्यक्रम में बुलाकर यह दिखाने का प्रयास किया जाता है कि इस नेता का समर्थन तो उसी के साथ ही है। अभी श्रीगंगानगर में एक कार्यक्रम में समाज के बड़े नेता को बुलाने के भी अलग-अलग अर्थ निकाले जा रहे हैं। सबसे बड़ी हैरानी तो यह है कि बुलाने वाले दूसरे समाज के हैं और नेताजी दूसरे के। अब भले ही नेताजी के समाज से चुनाव की तैयारी करने वालों की पेशानी पर बल पड़ें लेकिन नेताजी के दौरे ने समाज की राजनीति में हलचल जरूर शुरू कर दी है। वैसे बताते चलें कि इन नेताजी के समाज का श्रीगंगानगर में अच्छा खासा वोट बैंक है। देखने की बात यह है कि नेताजी का दौरा कितना कारगर होता है तथा कितने वोट दिलाने में सफल होता है। खैर, नेताजी को बुलाने वाले महाशय को टिकट मिलती है या नहीं, फिलहाल तो यह भी दूर की बात है।
चुनावी जुनून
अक्सर चौक चौराहों या नुक्कड़ पर राजनीति की चर्चा सुनने को मिल ही जाएगी। लोग भले ही राजनीतिज्ञों को कितना ही कोसें लेकिन बात जब खुद की आती है तो लड्डू फूटने लगते हैं क्योंकि राजनीति का चस्का ही ऐसा है। समर्थकों की भूमिका भी इसमें बड़ा स्थान रखती है। वे समर्थक ही होते हैं जो सपना दिखाते हैं, उम्मीद जगाते हैं। श्रीगंगानगर में भी एक महाशय ऐसे हैं जिन पर चुनाव लडऩे का जुनून सवार है। वैसे तो वे सतारूढ़ दल से हैं और टिकट मिलेगी या नहीं यह भी तय नहीं है लेकिन तैयारी देखकर लग रहा है कि उन्होंने मानस पूरा बना लिया है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, इन महाशय की सक्रियता बढ़ती जा रही है। छोटे से छोटे कार्यक्रम में इनकी सहभागिता देखी जा सकती है। महाशय का कहना है कि इस बहाने जमीनी स्तर पर सभी से मिलना हो जाता है। फिलहाल समाचार पत्रों में भी महाशय छाए हुए हैं। इनका मीडिया मैनेजमेंट भी गजब का है। बताते चले यह वही महाशय हैं जिन्होंने एक बड़े होटल में पिछले दिनों प्रेस वार्ता कर कैम्पर बांटे थे।
शक्ति प्रदर्शन
त्योहार तो हर साल ही आते हैं और स्नेह मिलन भी कमोबेश हर वर्ष ही होते हैं लेकिन चुनाव के आसपास आने वाले त्योहारों की रंगत की कुछ और नजर आती है। चुनावी साल के चक्कर में स्नेह मिलनों में न केवल भीड़ बढ़ती है बल्कि इस बहाने एकजुटता के साथ शक्ति प्रदर्शन भी किया जाता है। चुनावों के दौरान समाजों का कितना भला होता है यह बात दीगर है लेकिन इस बहाने राजनीतिक दलों या चुनाव लडऩे वालों की नजर तो पड़ ही जाती है। वैसे इन शक्ति प्रदर्शनों के भी अलग-अलग मायने हैं। कोई समाज के सहारे सियासत की सीढ़ी चढऩे के लिए यह सब करता है तो कोई राजनीतिक दलों में अपनी पहुंच बनाता है। एक बात और है समाजों से दूरी बनाकर रखने वाले नेता भी चुनावी मौसम को देखकर नजदीकियां बढ़ाने लगते हैं। समाजों के द़ुख-दर्द भी इनको याद आने लगते हैं। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि नेता लोग समाजों को हर साल ही साथ लेकर चलें तो इस तरह नजदीकियां बढ़ाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।
अपनों की खातिर
श्रीगंगानगर की एसीबी टीम बाकी सब पर तो कार्रवाई करती है लेकिन पुलिस व आबकारी के मामले में पता नहीं क्यों इसके हाथ कांप जाते हैं। घमूड़वाली, घड़साना के बाद अब रायसिंहनगर में ऐसी ही कार्रवाई हुई है, जिसे बीकानेर की टीम ने अंजाम दिया है। कार्रवाई न करने के वैसे तो कोई भी कारण हो सकते हैं। लगातार तीन मामले और वे भी आबकारी या पुलिस से संबंधित तो सवाल उठना लाजिमी है। वैसे कार्रवाई न करने के मोटे तौर पर तीन-चार कारण ही गिनाए जाते हैं। या तो शिकायतकर्ताओं के पास श्रीगंगानगर टीम का सपंर्क या पता ठिकाना नहीं है। या श्रीगंगानगर टीम उनकी शिकायतों पर गौर नहीं करती है। या फिर श्रीगंगानगर टीम अपने ही लोगों का मामला समझ कर रियायत करती है। खैर, यह आरोप तब तक चस्पा रहेंगे जब तक एसीबी कोई पुलिस या आबकारी का मामला पकड़ नहीं लेती। आबकारी व पुलिस पर लगातार होती कार्रवाई यह भी साबित करती है कि प्रिंट रेट से ज्यादा कीमत तथा देर रात बिकने के पीछे भी दोनों विभागों की शह का ही कमाल है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 2 नवम्बर 17 के अंक में प्रकाशित

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