Thursday, November 16, 2017

इक बंजारा गाए-4


🔺अपनों पर करम
गैरों पे करम, अपनों पे सितम, ए जाने वफा ये जुल्म ना कर... यह चर्चित गीत गाहे-बगाहे किसी न किसी बहाने से चरितार्थ हो ही जाता है। लेकिन यह गीत इन दिनों यह दूसरे रूप में सटीक बैठ रहा हैं। कहने का आशय यह है कि गीत के बोल व अर्थ दोनों ही बदल गए हैं। मतलब यहां अपनों पर सितम की बजाय करम वाली बात लागू हो रही है। मामला भ्रष्टाचार करने वालों पर कार्रवाई करने वाले विभाग से जुड़ा है। ऐसा नहीं है यह विभाग कार्रवाई नहीं कर रहा है। बाकायदा कार्रवाई हो रही हैं और लगातार हो रही है, लेकिन जिस तरह खाकी के खिलाफ कोई मामला आता है तो पता नहीं क्यों श्रेय श्रीगंगानगर की बजाय बीकानेर वाले ले उड़ते हैं। मामला चाहे घमूडवाली थाने का हो या फिर घड़साना का। श्रीगंगानगर वाले देखते ही रह गए और कार्रवाई बीकानेर वाले करके चले गए। ऐसे में कहने वाले तो कहेंगे ही। आखिर खाकी के प्रति यह प्रेम यूं ही तो नहीं हो सकता। कोई न कोई वजह तो इस प्रेेम की भी होगी ही।
🔺उल्टी गंगा 
उल्टी गंगा बहने का मुहावरा तो कमोबेश सभी ने सुना ही होगा, लेकिन अगर हकीकत में गंगा उलटी बहती दिखाई दे जाए तो क्या हो। यहां उल्टा गंगा बहने से मतलब नियम विरुद्ध काम से संबंधित है। अब जिले के विकास से जुड़े एक विभाग में भी उल्टी गंगा बहने जैसा ही काम हो रहा है। मामला एक भर्ती से जुड़ा है। भर्ती जब विवादों के घेरे में आई तो इसके लिए जांच बैठा दी गई। जांच का परिणाम क्या होगा? कैसा होगा यह तो यह समय ही बताएगा, फिलहाल चर्चा जांच अधिकारी को लेकर हो रही है। दरअसल, इस भर्ती में आरोप विभाग के मुखिया पर ही लगे हैं। अब जांच कोई मुखिया से बड़ा करता या किसी दूसरे विभाग का अधिकारी करता तो समझ में आता था लेकिन हो उल्टा रहा है। यह जांच मुखिया के विभाग का आदमी कर रहा है वह भी उनका अधीनस्थ। वैसे भर्ती पर सवाल उठाने वाले सवाल जांच अधिकारी पर भी उठा रहे हैं, देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है।
🔺अंगद का पांव
अंगद का पैर होना मतलब एक जगह जम जाना। रावण के दरबार में अंगद ने ऐसा पैर जमाया था कि अच्छे-अच्छे सूरमा उसको उठाने में नाकाम रहे थे। यह बात श्रीगंगानगर में एक थानेदार पर भी बिल्कुल जम रही है। वैसे पुराने टाइगर के जमाने में भी इन थानेदार महोदय के जलवे कम नहंीं थे। कथित रूप से इनकी पहुंच सीधे ही जयपुर मुख्यालय तक बताई जा रही है। नए टाइगर आने के बाद भी थानेदार साहब के रुतबे में किसी तरह की कोई कमी नहीं आई है। अब देखिए न, शहर के सभी थानों के प्रभारी बदल दिए गए हैं। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। पिछले साल-दो साल के अंतराल में कई थानों के तो चार प्रभारी बदल गए हैं लेकिन इन थानेदार साहब को इधर से उधर करने में पता नहीं क्यों टाइगर ने हाथ पीछे खींच लिए। अब इस तरह जमे बैठे थानाधिकारी के चर्चे तो हर जगह होने ही हैं। खुद खाकी में भी उसकी अच्छी खासी चर्चा है।
🔺सरकारी संरक्षण
कहीं पर नियम विरुद्ध कोई काम होता पाया जाता है तो यही कहा जाता है कि जरूर ऊपर के स्तर पर कोई शह है या फिर मिलीभगत वरना इस तरह सरेआम कानून व नियमों को ठेंगा कौन दिखा सकता है। श्रीगंगानगर में नियम विरुद्ध कामों की फेहरिस्त लंबी है। चाहे निर्धारित समय के बाद शराब की बिक्री की बात हो या फिर देर रात तक ढाबे या दुकानें खुलने की। किसी को किसी तरह का डर ही नहीं है। अब देखिए न शहर के अंदर ही एक वेज-नॉनवेज भोजन का होटल तो रात बारह बजे के बाद तक बाकायदा ठरके से चलता है। होटल के ग्राहकों के हाव-भाव देखकर सहज की अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनके कदम लडख़ड़ा क्यों रहे हैं। इस ढाबे के पास बाकायदा एक थाना भी है। ऐसा हो नहीं सकता है खाकी की नजर में यह सब नहीं हो? ऐसे में शक की सुई घूमने लगती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 05 अक्टूबर 17 के अंक में प्रकाशित

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