Thursday, November 16, 2017

पटाखों से ज्यादा प्रतिक्रियाओं का शोर-3

बस यूं ही
न चाहते हुए भी प्रतिक्रियाओं के शोर का क्रम एक दिन के लिए टूटा। कारण कल अति व्यस्तता रही। दिन भर बेहद व्यस्त कार्यक्रम। खैर, इस प्रतिक्रियाएं इस पोस्ट पर भी आ रही हैं। ठीक उसी तरह की जैसी पटाखों की बिक्री पर प्रतिबंध के बाद से ही आ रही है। मतलब दोनों ही तरह की प्रतिक्रियाएं। इन प्रतिक्रियाओं में सूजानगढ़ के श्रीमान बृजगोपाल जी शर्मा की एक प्रतिक्रिया मौजूं हैं। वैसे बताता चलूं कि आदरणीय शर्मा से परिचय फेसबुक के माध्यम से ही हुआ। करीब दो तीन साल बाद आभासी दुनिया का यह परिचय हकीकत में भी बदला। मेरा सुजानगढ़ जाना हुआ तो शर्मा जी ने ससम्मान घर आने का न्यौता दिया और फिर चाय की चुस्कियों, रसगुल्लों की मिठास व नमकीन तरह खट्ठी मीठा हमारी मुलाकात और परवान चढ़ी। बहरहाल बात प्रतिक्रियाओं की। शर्माजी ने मेरी पिछली पोस्ट पर लिखा कि 'आप सही हो लेकिन....सोशल मीडिया पर आप किसी को रोक नहीं सकते। किसी की जुबान नहीं पकड़ सकते।' बिलकुल मैं उनकी बात से सहमत हूं। यह भी जरूरी नहीं कि मैं जो लिख रहा हूं वह सभी के गले उतरे। सभी उससे सहमत हों। एेसा संभव भी नहीं है। विचार जबरन किसी पर थोपे भी नहीं जा सकते। मतभेद हमेशा से ही रहा है। भले ही बात तर्क संगत हो या विवेक संगत। किसी परिचित ने एक बार मुलाकात में यूं ही कहा था कि धर्म को कभी बहस को मुद्दा नहीं बनाना नहीं चाहिए। दरअसल, यहां धर्म पर जोर इसीलिए दे रहा हूं क्योंकि पटाखों के साथ न केवल धर्म का घालमेल कर दिया गया है बल्कि इसमें दूसरों धर्म से तुलना भी कर ली गई है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस विषय को दिमाग की बजाय दिल का विषय बना दिया गया है। और दिल हमेशा भावनाओं पर निर्भर है। पटाखों को भावनाओं-धर्म के साथ इस तरह के मिला दिया गया है कि कमोबेश हर तीसरा या चौथा आदमी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से नाखुश नजर आता है। धर्म खतरे में है। सारे फैसले एक ही धर्म के खिलाफ आ रहे हैं। अन्य धर्मों को कुछ नहंीं का जा रहा है। यह हमारे त्योहारों को खत्म करने का साजिश है ।और भी न जाने कितनी ही बातें जो धर्म के साथ जोड़ दी गई। वैसे भी धर्म के नाम पर हम भारतीयों की भावनाएं जरूरत से ज्यादा ही उबाल मारने लगती हैं।
क्रमश:......

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