Thursday, November 16, 2017

दो मौतों का जिम्मेदार कौन?

 टिप्पणी
अनूपगढ़ में बुधवार शाम को एक बस में विद्युत तारों को छूने से लगी आग के कारण दो जनों की मौत हो गई। दो परिवारों की खुशियों को अचानक ग्रहण लग गया और दो चिराग असमय ही बुझ गए। हादसा इसीलिए हुआ क्योंकि बस अपने निर्धारित मार्ग की बजाय दूसरे रास्ते से गुजर रही थी, क्योंकि निर्धारित मार्ग पर जाम लगा था। अब मौतों के कारण और जवाब तलाशे जाएंगे। मसलन, जाम था तो बस चली ही क्यों? जाम था तो यात्रा करनी जरूरी थी क्या? जाम लगा था तो दूसरे रास्ते पर बस वाला गया ही क्यों? आदि आदि। इतना ही नहीं, कोई बस वाले को कोसेगा तो कोई यात्रियों को ही कसूरवार ठहरा देगा। सवालों की इस फेहरिस्त में बड़ा सवाल यह भी है कि यह जाम लगा ही क्यों? जिले में जान माल व कानून की हिफाजत करने वाले जिम्मेदार आखिर कर क्या रहे हैं? इतना तो तय है कि यह जाम सरकार के खिलाफ है। प्रशासन के खिलाफ है लेकिन इसका खमियाजा आम लोग ही ज्यादा भुगत रहे हैं। किसी को जरूरी काम से कहीं जाना है तो वह नहीं जा पा रहा है। किसी को किसी साक्षात्कार या नौकरी के सिलसिले में बाहर जाना है लेकिन अटका पड़ा है। और फिर इस तरह के हालात में कोई निकल भी रहा है तो अपनी सुरक्षा का जिम्मेदार खुद ही है। शायद इसीलिए सरकार एवं उसके नुमाइंदे थोड़ी राहत महसूस कर रहे हैं। आमजन को होने वाली तकलीफ से न प्रशासन को सरोकार है और न आंदोलन करने वालों को। जाम को किस तरह खुलवाया जाए या आमजन हो रही तकलीफों को समझाइश से किस तरह से कम किया जाए, इस पर विचार नहीं हो रहा है। लोकतंत्र में मांगें मनवाने वालों के लिए धरना-प्रदर्शन-जाम आदि पहले भी होते रहते हैं। यह सब सरकार पर दबाव बनाने के तरीके हैं। बस देखने की बात यही है कि इस दबाव में जनता का अहित न हो। कल को आंदोलन भी खत्म होगा। आंदोलन करने वाले भी अपने घर चले जाएंगे लेकिन नहीं आएंगे तो अनूपगढ़ में जान गंवाने वाले यह दो शख्स। अब प्रशासन भले ही मुआवजे से मरहम का प्रयास करे लेकिन मृतकों के परिजन जाम से मिले दर्द को जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे। उनको यही सवाल सालता रहेगा कि इन मौतों का जिम्मेदार कौन? सरकार की हठधर्मिता, प्रशासन की भूमिका या फिर जाम, क्योंकि सवालों के जवाब इन्हीं के इर्द-गिर्द छिपे हैं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 14 सितंबर 17 के अंक में प्रकाशित

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